लखनऊ
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश के आईजी जेल को नोटिस जारी किया है। इसमें आईजी जेल से कहा गया है कि वह 6 हफ्ते में बताएं कि जरूरत से ज्यादा भरी राज्य की जेलों में पिछले 5 साल में कैसे 2000 कैदियों की मौत हो गई।
पढ़ेंः RTI से खुलासा, हर 26 घंटे में उत्तर प्रदेश में होती है एक कैदी की मौत
उत्तर प्रदेश के आगरा के रहने वाले वाले आरटीआई ऐक्टिविस्ट नरेश पारस ने आयोग के पास शिकायत दर्ज कराई है। इसके बाद आयोग ने नोटिस जारी किया। शिकायत में उन्होंने 60 पेज के सरकारी दस्तावेज भी लगाए हैं। सरकार से मिले इन दस्तावेजों से सामने आया कि जेलों में जरूरत से ज्यादा कैदी रखे जा रहे हैं। उन्हें मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। इससे उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा है। इसी के चलते पिछले पांच वर्षों में 2,000 कैदियों को मौत हो गई।
आरटीआई ऐक्टिविस्ट ने एनएचआरसी को भेजी गई शिकायत में बताया कि जुलाई 2012 से जुलाई 2017 के बीच सेंट्रल जेल, जिला जेल, महिला जेल और विशेष जेल में 1, 960 कैदियों की मौत हो गई।
पढ़ेंः नैनी जेल में दो बंदियों पर जानलेवा हमला
इनमें से सर्वाधिक मौतें बरेली की जेलों में हुईं। यहां 170 मौतें जिला और 129 मौतें सेंट्रल जेल में हुईं। फतेहपुर में 140 कैदियों की मौत हो गई। इनमें 110 मौतें सेंट्रल जेल में हुईं। आगरा के जिला जेल में 43 और सेंट्रल जेल में 79 कैदियों की मौत हुई। इलाहाबाद सेंट्रल जेल में 98, वाराणसी में 83 और लखनऊ में 70 कैदियों की मौत हुई।
टीबी से मर रहे कैदी
ऐक्टिविस्ट नरेश पारस ने बताया कि कैदियों की मौत का सबसे बड़ा कारण मरीजों को टीबी जैसी गंभीर बीमारियों का होना है। जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों को रखे जाने के कारण उन्हें टीबी हो रहा है। उन्होंने बताया कि जेल में एक महिला कैदी के नवजात बच्चे की मौत गंदगी के कारण हो गई।
इस खबर के अंग्रेजी में पढ़ें
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने उत्तर प्रदेश के आईजी जेल को नोटिस जारी किया है। इसमें आईजी जेल से कहा गया है कि वह 6 हफ्ते में बताएं कि जरूरत से ज्यादा भरी राज्य की जेलों में पिछले 5 साल में कैसे 2000 कैदियों की मौत हो गई।
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उत्तर प्रदेश के आगरा के रहने वाले वाले आरटीआई ऐक्टिविस्ट नरेश पारस ने आयोग के पास शिकायत दर्ज कराई है। इसके बाद आयोग ने नोटिस जारी किया। शिकायत में उन्होंने 60 पेज के सरकारी दस्तावेज भी लगाए हैं। सरकार से मिले इन दस्तावेजों से सामने आया कि जेलों में जरूरत से ज्यादा कैदी रखे जा रहे हैं। उन्हें मूलभूत सुविधाएं नहीं मिल रही हैं। इससे उनका स्वास्थ्य खराब हो रहा है। इसी के चलते पिछले पांच वर्षों में 2,000 कैदियों को मौत हो गई।
आरटीआई ऐक्टिविस्ट ने एनएचआरसी को भेजी गई शिकायत में बताया कि जुलाई 2012 से जुलाई 2017 के बीच सेंट्रल जेल, जिला जेल, महिला जेल और विशेष जेल में 1, 960 कैदियों की मौत हो गई।
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इनमें से सर्वाधिक मौतें बरेली की जेलों में हुईं। यहां 170 मौतें जिला और 129 मौतें सेंट्रल जेल में हुईं। फतेहपुर में 140 कैदियों की मौत हो गई। इनमें 110 मौतें सेंट्रल जेल में हुईं। आगरा के जिला जेल में 43 और सेंट्रल जेल में 79 कैदियों की मौत हुई। इलाहाबाद सेंट्रल जेल में 98, वाराणसी में 83 और लखनऊ में 70 कैदियों की मौत हुई।
टीबी से मर रहे कैदी
ऐक्टिविस्ट नरेश पारस ने बताया कि कैदियों की मौत का सबसे बड़ा कारण मरीजों को टीबी जैसी गंभीर बीमारियों का होना है। जेलों में क्षमता से अधिक कैदियों को रखे जाने के कारण उन्हें टीबी हो रहा है। उन्होंने बताया कि जेल में एक महिला कैदी के नवजात बच्चे की मौत गंदगी के कारण हो गई।
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