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गणतंत्र दिवस बचपन की यादों के लिहाज से भी हम सबके लिए एक खास दिन है। जब भी गणतंत्र दिवस से जुड़ी बचपन की यादों की बात होती है तो कहीं बूंदी वाले लड्डू की महक ताजा हो जाती है तो कहीं राष्ट्रगान के साथ सुर मिलाना याद आता है। बचपन की गलियों से जब भी गुजर होती है तो यादों के ऐसे कई झरोखे खुल ही जाते हैं। इस गणतंत्र दिवस पर हमने यूपी के कुछ कलाकारों के साथ उनकी गणतंत्र दिवस की यादों को ताजा किया। भले ही आज ये कलाकार बॉलिवुड में अपना खास मुकाम रखते हों, लेकिन बचपन वाले गणतंत्र दिवस के जिक्र पर किसी को लड्डू तो किसी को रंग दे बसंती गीत की याद आ गई।
हाफ डे पर घूमता था
मेरा स्प्रिंगडेल स्कूल भूतनाथ मार्केट में था। तीसरी क्लास से बारहवीं तक मैंने वहीं पढ़ाई की। मैं एवरेज स्टूडेंट था। अक्सर टीचर फ्रंट और बैक बेंचर्स को जानते हैं लेकिन मैं दोनों उन बीच के बच्चों में था, जिन पर किसी का ध्यान ही नहीं जाता था। मैं किसी भी ऐक्टिविटी में हिस्सा ही नहीं लेता था। 26 जनवरी को स्कूल में लड्डू मिलते थे और हाफ डे होता था। मुझे इसी बात की खुशी होती थी। ग्यारहवीं क्लास में जब मेरे दोस्त ने हीरो पुक खरीद ली तब हमारी जिंदगी बहुत हसीन हो गई थी। 26 जनवरी को जैसे ही हाफ डे होता, हम हजरतगंज घूमने निकल जाया करते थे। हालांकि, आज मैं समझता हूं कि यह दिन हमारे लिए कितना महत्वपूर्ण है। मैं बच्चों से यही कहना चाहता हूं कि हमारे देश का संविधान बहुत ही शिद्दत और मेहनत से लिखा गया है। यह बात हमें हमेशा याद रखनी चाहिए। मुझे लगता है कि उस वक्त जो हम नहीं कर पाए, वह आज के बच्चों को करना चाहिए। उन्हें सवाल करने चाहिए।
- हिमांशु शर्मा, फिल्म राइटर
स्टेज पर गाता था 'मेरा रंग दे बसंती चोला...'
अमेठी के एचएएल स्कूल कोरवा से मेरी पढ़ाई हुई है। हमारा स्कूल इंग्लिश मीडियम था तो 26 जनवरी पर हमें चॉकलेट मिला करती थी। एक मिडिल क्लास फैमिली से होने की वजह से चॉकलेट मिलना मेरे लिए इस दिन की सबसे खास बात होती थी। साल में कुछ ही मौकों पर हमें चॉकलेट खाने को मिलती थी। इसके अलावा इस दिन हमारे लिए दूसरा एक्साइटमेंट का पल होता था सबके साथ मिलकर राष्ट्रगान गाना। आज भी मैं उन पलों को काफी मिस करता हूं। मैं उन बच्चों में से था, जो हर कार्यक्रम में पूरी शिद्दत से भाग लेते थे। मुझे उस वक्त भी देशभक्ति के 15 से 20 गाने मुंहजबानी याद थे। मुझे याद है स्कूल में हर साल 26 जनवरी के दिन मैं स्टेज पर 'मेरा रंग दे बसंती चोला...' गाना गाया करता था। मैं अच्छा सिंगर नहीं था लेकिज जज्बा बहुत था। आज जब मैं देखता हूं कि 26 जनवरी और 15 अगस्त को लोग सिर्फ एक छुट्टी समझ कर घर पर बैठते हैं या फिर घूमने का प्लान बनाते हैं तो बहुत शर्मिंदगी महसूस होती है। क्या एक दिन अपने देश के लिए हम थोड़ा सा वक्त निकालकर उसके सम्मान में कुछ नहीं कर सकते हैं?
- मनोज मुंतशिर, गीतकार, डायलॉग राइटर
कविता सुनाने पर मिली थी रबर
मैं मुजफ्फरनगर के कुंडरा प्राथमिक स्कूल में पढ़ता था। भले ही साल के बाकी दिनों में स्कूल जाऊं या ना जाऊं लेकिन 26 जनवरी को स्कूल जरूर जाता था। एक तो इस दिन पढ़ाई नहीं होती थी और लड्डू भी खाने को मिलते थे। मुझे शुरू से ही मंच से लगाव रहा है तो ऐसे खास दिनों पर मुझे मंच पर जाने का मौका भी मिलता था। मुझे याद है कि एक बार मैंने 26 जनवरी पर कविता सुनाई थी। कविता सुनाते वक्त मेरे पैर कांप रहे थे, लेकिन सबने खूब तालियां बजाई थीं और इनाम में मुझे रबर मिली थी। कुछ बच्चे एक बार लड्डू लेने के बाद दोबरा लाइन में लगकर लड्डू लेते तो मैं फौरन टीचर से शिकायत कर देता था। आज वह सारी बातें याद करता हूं तो मन करता है कि काश बचपन के वो दिन फिर से मिल जाएं।
- राजपाल यादव, बॉलिवुड एक्टर
मैं तो बहुत शर्मीला था
मेरी पढ़ाई बलरामपुर में हुई है। मैं बालभारती स्कूल में पढ़ता था। बचपन में मैं बहुत ही शर्मीला लड़का हुआ करता था। बस चुपचाप स्कूल जाता, पढ़ाई करता था और घर वापस आता था। मुझे इतना याद है कि बाकी पूरे साल स्कूल जाने में उतना उतावला नहीं होता था जितना 26 जनवरी के दिन स्कूल जाने के लिए खुश होता था। शर्मीला होने की वजह से स्कूल की किसी भी ऐक्टिविटी में हिस्सा नहीं लेता था लेकिन झंडा फहराने के वक्त मैं लाइन में आगे खड़े होकर उसे देखने के लिए जरूर बेचैन रहता था। उसके बाद राष्ट्रगान होता, जिसे मैं बहुत ही मन से सुना करता था। इसके बाद जो इस दिन का सबसे स्पेशल पार्ट होता था, वह था लड्डू मिलना। बचपन के गणतंत्र दिवस की यादें आज भी उस वक्त ताजा हो जाती हैं, जब यह दिन आता है।
श्रीनारायण सिंह, राइटर डायरेक्टर
शर्मा जी लड्डू बनाते थे
झांसी में मेरे स्कूल का नाम था एम एल पांडे एंगलो वैदिक जूनियर हाईस्कूल। यह नाम इतना लम्बा था कि कोई पूरा नाम नहीं लेता, सब इसे पांडे जी का स्कूल ही बोलते थे। मैं हमेशा ही कल्चरल ऐक्टिविटी में हिस्सा लेता था। मुझे याद है कि 26 जनवरी को जब मैं पांचवीं में पढ़ता था तो पहली बार स्कूल के मंच पर ऐक्ट किया था। यह राजा मोरध्वज की कहानी थी, जिसके लिए जूलरी भी मैं घर से बनाकर लाया था। चाय की पत्ती का सिल्वर पैकेट काटकट कर मैंने राजा का मुकुट भी बनाया था। फिर तो कोई भी ऐसा दिन हो, मैं मंच पर जरूर जाता था। सबसे खास बात यह थी कि स्कूल में मेरे तीन और दोस्त थे, वह भी शर्मा थे। हम चारों शर्मा मिलकर पहले लड्डू बनाते, स्कूल को तिरंगी झंडियों से सजाते थे। दरअसल, हम लड्डू बनाते थे इसलिए हमें एक्स्ट्रा लड्डू मिलते थे। उस वक्त हम बच्चे थे और 26 जनवरी हमारे लिए एक कल्चरल इवेंट हुआ करता था, लेकिन उस महौल, उस तिंरगे को देखकर बचपन में भी दिल में एक अजीब सा जज्बा पैदा होता था। आज इतनी मसरूफ जिंदगी के बावजूद जब वह बचपन का गणतंत्र दिवस याद आता है तो अजीब सी खुशी मिलती है।
राज शांडिल्य, फिल्म राइटर
स्कूल से ही पड़ी थी नींव
पुराना किला में मेरा लखनऊ मॉन्टेसरी इंटर कॉलेज हुआ करता था। इसकी बुनियाद डाली थी फ्रीडम फाइटर दुर्गा देवी वोहरा ने। यही वजह थी कि हमारे स्कूल में 26 जनवरी और 15 अगस्त पूरे जोश के साथ मनाया जाता था। मुझे याद है कि 26 जनवरी को परेड भी हुआ करती थी। मुझे याद है कि जब मैं आठवीं क्लास में था तब मैंने 26 जनवरी को नाटक में हिस्सा लिया था। इस नाटक का नाम था बिशप्स कैंडल स्टिक्स। इस नाटक में मैंने चोर का रोल किया था। मैंने इस नाटक का निर्देशन भी किया था। इस नाटक को लिखा था मेरी मासी आशा यशवंत ने। मैं कह सकता हूं कि आज जिस क्षेत्र में काम कर रहा हूं उसकी नींव हमारे स्कूल में ही पड़ी थी।
-अतुल तिवारी, स्क्रिप्ट, डायलॉग राइटर