लखनऊ
उत्तर प्रदेश की तकरीबन आधी गर्भवतियों का प्रसव अब भी अस्पतालों में नहीं हो रही है। यह आंकड़ा नीति आयोग की दो दिन पहले जारी स्वास्थ्य रिपोर्ट में आया है। रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में संस्थागत प्रसव के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे निचले पायदान पर है। इसके अलावा आयोग की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के जिला स्तर के अस्पतालों में कहीं भी दिल के मरीजों के लिए कार्डियक केयर यूनिट (सीसीयू) नहीं है। इस वजह से मरीजों को बेहतर इलाज के लिए टर्शरी केयर हॉस्पिटल जाना पड़ता है। नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स जारी होने के बाद स्वास्थ्य मंत्री ने बैठक कर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं का जायजा लिया और अधिकारियों को इसमें और तेजी लाने के निर्देश दिए।
नीति आयोग की रिपोर्ट ने सबसे बड़ा सवाल प्रदेश में होने वाली संस्थागत डिलीवरी पर उठाया है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश की महज 52 फीसदी गर्भवती ही सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में प्रसव करवाती हैं जबकि 48 फीसदी महिलाओं को अब भी अस्पतालों में प्रसव की सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। आयोग ने प्रदेश सरकार को इस दिशा में और बेहतर काम करने को कहा है। पूरे देश में 97 फीसदी के साथ गुजरात पहले नंबर पर है।
दिल के मरीजों के लिए सीसीयू ही नहीं
नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उत्तर प्रदेश से भेजे गए आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के किसी भी जिला स्तर के अस्पतालों में वर्किंग कार्डियक केयर यूनिट नहीं थी। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखंड, तेलंगाना, झारखंड और बिहार समेत असम के जिला अस्पतालों का यही हाल था। इसका मतलब यह है कि दिल के गंभीर मरीजों को इलाज के लिए टर्शरी केयर अस्पताल पर ही निर्भर रहना पड़ता है। रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश को सबसे ऊंचे पायदान पर रखा गया है।
16 ट्रेंड और 20 एक्सपर्ट कर रहे दिल का इलाज
प्रदेश में जिस सीसीयू का जिक्र करते हुए नीति आयोग ने यूपी को बदहाल बताया है। दरअसल उसके पीछे प्रमुख वजह कार्डियॉलजिस्ट की कमी अहम वजह है। प्रांतीय चिकित्सा संवर्ग अससोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक पूरे प्रदेश में इस वक्त सभी सीएचसी, पीएचसी और जिला अस्पतालों में महज 35 एक्सपर्ट दिल के डॉक्टर ही मरीजों को विशेषज्ञ इलाज दे पा रहे हैं। इसमें से 16 डॉक्टर कार्डियॉलजी में डिप्लोमाधारक हैं जबकि 14 वरिष्ठ डॉक्टर अनुभव से फैमिली फिजिशन के पैटर्न पर दिल का इलाज करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के प्रांतीय चिकित्सा संवर्ग में एक भी कार्डियॉलजिस्ट अपनी विधा में डीएम नहीं है।
उत्तर प्रदेश की तकरीबन आधी गर्भवतियों का प्रसव अब भी अस्पतालों में नहीं हो रही है। यह आंकड़ा नीति आयोग की दो दिन पहले जारी स्वास्थ्य रिपोर्ट में आया है। रिपोर्ट के मुताबिक पूरे देश में संस्थागत प्रसव के मामले में उत्तर प्रदेश सबसे निचले पायदान पर है। इसके अलावा आयोग की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के जिला स्तर के अस्पतालों में कहीं भी दिल के मरीजों के लिए कार्डियक केयर यूनिट (सीसीयू) नहीं है। इस वजह से मरीजों को बेहतर इलाज के लिए टर्शरी केयर हॉस्पिटल जाना पड़ता है। नीति आयोग की हेल्थ इंडेक्स जारी होने के बाद स्वास्थ्य मंत्री ने बैठक कर प्रदेश की स्वास्थ्य सेवाओं का जायजा लिया और अधिकारियों को इसमें और तेजी लाने के निर्देश दिए।
नीति आयोग की रिपोर्ट ने सबसे बड़ा सवाल प्रदेश में होने वाली संस्थागत डिलीवरी पर उठाया है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रदेश की महज 52 फीसदी गर्भवती ही सरकारी और प्राइवेट अस्पतालों में प्रसव करवाती हैं जबकि 48 फीसदी महिलाओं को अब भी अस्पतालों में प्रसव की सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं। आयोग ने प्रदेश सरकार को इस दिशा में और बेहतर काम करने को कहा है। पूरे देश में 97 फीसदी के साथ गुजरात पहले नंबर पर है।
दिल के मरीजों के लिए सीसीयू ही नहीं
नीति आयोग ने अपनी रिपोर्ट में कहा कि उत्तर प्रदेश से भेजे गए आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के किसी भी जिला स्तर के अस्पतालों में वर्किंग कार्डियक केयर यूनिट नहीं थी। रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश समेत उत्तराखंड, तेलंगाना, झारखंड और बिहार समेत असम के जिला अस्पतालों का यही हाल था। इसका मतलब यह है कि दिल के गंभीर मरीजों को इलाज के लिए टर्शरी केयर अस्पताल पर ही निर्भर रहना पड़ता है। रिपोर्ट में हिमाचल प्रदेश को सबसे ऊंचे पायदान पर रखा गया है।
16 ट्रेंड और 20 एक्सपर्ट कर रहे दिल का इलाज
प्रदेश में जिस सीसीयू का जिक्र करते हुए नीति आयोग ने यूपी को बदहाल बताया है। दरअसल उसके पीछे प्रमुख वजह कार्डियॉलजिस्ट की कमी अहम वजह है। प्रांतीय चिकित्सा संवर्ग अससोसिएशन के आंकड़ों के मुताबिक पूरे प्रदेश में इस वक्त सभी सीएचसी, पीएचसी और जिला अस्पतालों में महज 35 एक्सपर्ट दिल के डॉक्टर ही मरीजों को विशेषज्ञ इलाज दे पा रहे हैं। इसमें से 16 डॉक्टर कार्डियॉलजी में डिप्लोमाधारक हैं जबकि 14 वरिष्ठ डॉक्टर अनुभव से फैमिली फिजिशन के पैटर्न पर दिल का इलाज करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश के प्रांतीय चिकित्सा संवर्ग में एक भी कार्डियॉलजिस्ट अपनी विधा में डीएम नहीं है।