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बॉडी बिल्डिंग के चक्कर में मिल रहा दिल का रोग

केजीएमयू के डॉ. प्रवेश विश्वकर्मा ने बताया कि किडनी रोगियों में हार्ट अटैक पड़ने का खतरा अधिक होता है। किडनी की बीमारी हार्ट डैमेज करती है, जिससे कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉकेज की प्रबल आशंका रहती है। हार्ट के 30 से 40 प्रतिशत मरीज ऐसे हैं, जिनमें किडनी की बीमारी पहले से होती है।

नवभारत टाइम्स 27 Feb 2017, 2:31 pm
लखनऊ
नवभारतटाइम्स.कॉम bodybuilding is growing as main reason for damage heart
बॉडी बिल्डिंग के चक्कर में मिल रहा दिल का रोग

देश में छह करोड़ हार्ट पेशेंट की तुलना में इलाज के लिए मात्र छह हजार डीएम कार्डियॉलजिस्ट हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में इलाज के लिए डॉक्टर ही नहीं हैं। इस कारण देश में दिल के रोगियों की संख्या बढ़ती जा रही है। यह बात रविवार को केजीएमयू के साइंटिफिक कन्वेंशन सेंटर में कार्डियॉलजिकल सोसाइटी के वार्षिक अधिवेशन कार्डिकॉन-2017 के दूसरे और अंतिम दिन दिल्ली एम्स के डॉ. राकेश यादव ने कही।

डॉ. राकेश यादव ने बताया कि 18 से 25 साल के युवाओं में जिम जाकर बॉडी बनाने का खासा क्रेज है। यहां युवाओं को हैवी न्यूट्रीशंस लेने की सलाह दी जाती है। न्यूट्रीशंस के चक्कर में युवा एम्बोलिक स्टेरॉयड का सेवन करने लगते हैं। इसके प्रयोग से हार्ट अटैक की आशंका रहती है और युवा हृदय रोगी हो रहे हैं। बेहतर यही रहता है कि अच्छी सेहत के लिए प्राकृतिक न्यूट्रीशंस को तरजीह दी जाए। उन्होंने कहा कि देश में हार्ट पेशेंट की संख्या बढ़ने का मुख्य कारण लाइफ स्टाइल, फास्ड फूड और प्रदूषण है। वाहनों, फैक्ट्री और गांवों में चूल्हे का धुआं, सांस के साथ फेफड़ों में जा रहा है, जिससे दिल भी बीमार हो रहा है। पहले मामूली लक्षण शुरू होते हैं, जिन्हें मौसमी विकार समझ कर नजरअंदाज कर दिया जाता है और परिणाम गंभीर हृदय रोग के रूप में सामने आता है।

साधारण अल्ट्रासाउंड से भी पता चलता है ब्लॉकेज

कार्डियॉलजिस्ट डॉ. अक्षय प्रधान ने बताया कि गले में कैरोटिड आर्टरी होती है। इस आर्टरी की साधारण अल्ट्रासाउंड जांच करके पता लगाया जा सकता है कि दिल में नस ब्लॉक है या नहीं। इसके लिए एंजियोग्रफी और टीएमटी जांच करवाने की जरूरत नहीं पड़ती। उन्होंने बताया कि स्टेम सेल तकनीक आने से हृदय रोगियों के इलाज में क्रांतिकारी परिवर्तन आएगा। इस तकनीक से उन मरीजों को भी ठीक किया जा सकेगा, जिन्हें लाइलाज मानकर भगवान भरोसे छोड़ दिया जाता है। इस तकनीक में मरीज के बोन मैरो से स्टेम सेल लेकर, क्षतिग्रस्त आर्टरी या नॉन वाइबल टिश्यू पर प्रत्यारोपित किया जाता है। इसके कुछ माह बाद नई आर्टरी या नए टश्यू का निर्माण शुरू हो जाएगा। अस्पतालों में इस तकनीक के प्रयोग के लिए अभी ट्रायल चल रहा है।

किडनी को डैमेज करता है हार्ट

केजीएमयू के डॉ. प्रवेश विश्वकर्मा ने बताया कि किडनी रोगियों में हार्ट अटैक पड़ने का खतरा अधिक होता है। किडनी की बीमारी हार्ट डैमेज करती है, जिससे कोरोनरी आर्टरी में ब्लॉकेज की प्रबल आशंका रहती है। हार्ट के 30 से 40 प्रतिशत मरीज ऐसे हैं, जिनमें किडनी की बीमारी पहले से होती है। किडनी के मरीजों पर दिल की दवाइयों का असर कम रहता है। उन्होंने बताया कि किडनी रोगियों में रोग से लड़ने की क्षमता भी कम होती है और हार्ट ब्लॉकेज की आशंका बढ़ जाती है।

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