रोहित मिश्रा, लखनऊ
बुंदेलखंड सूखे की मार झेल रहा है। तीन साल से यहां के खेतों में इतनी भी फसल नहीं हुई कि किसान हर रोज दो जून की रोटी खा सकें। सरकारों ने यहां सूखे से राहत देने के लिए विशिष्ट मंडी स्थल बनवाए हैं। ये मंडियां सातों जिलों में बुंदेलखंड राहत पैकेज के तहत बनवाई गई हैं।
2010 में यूपीए सरकार ने बुंदेलखंड की स्थिति को देखते हुए 3600 करोड़ रुपये का विशेष राहत पैकेज दिया था। जानकारों के मुताबिक इस राहत पैकेज का इस्तेमाल छोटे बांध बनाने, पेड़ लगाने, चेक डैम बनाने, कुएं खोदने और पुराने कुओं की मरम्मत करने के लिए होना था। तत्कालीन बीएसपी सरकार ने अलग-अलग विभागों को इसकी जिम्मेदारी दी, लेकिन काम बस कागजों पर ही हुआ। जमीनी हकीकत जो छह साल पहले बुंदेलखंड की थी, उससे अब और बिगड़ चुकी है। यहां बनीं विशिष्ट मंडियां और बड़े गोदाम साफ तौर पर राहत पैकेज की बरबादी की तरफ इशारा करते हैं।
बांदा के किसान जियाराम कहते हैं कि इतना पैसा लगाकर मंडियां केवल अपने ठेकेदारों के लिए बनवाई गईं। जब किसी घर में खाने को नहीं है तो मंडियों का क्या फायदा। मुझे तो नहीं याद पड़ता कि यहां एक भी दाना आया होगा।
नहीं दिखता एक भी नया कुआं
सूखे की मार झेल रहे प्यासे बुंदेलखंड को फौरी राहत के लिए नए कुओं की जरूरत बताई जा रही थी। बताया जाता है कि प्रदेश सरकार ने 20 हजार नए कुएं खोदवाने और पुराने कुओं की मरम्मत के लिए 500 करोड़ रुपये की सीमा तय की थी। हालांकि हालत ये है कि बुंदेलखंड में एक भी नया कुआं नहीं दिखता। इसके अलावा पुराने कुओं की स्थिति देखकर भी ऐसा नहीं लगता है कि इनके रखरखाव पर बजट खर्च किया गया होगा। यहां के लोगों की मानें तो अगर इस रकम का आधा भी सही से खर्च किया गया होता तो बुंदेलखंड की सूरत बदल गई होती।
चेक डैम की जगह बस रख दिए पत्थर
राहत पैकेज के पैसे से जहां चेक डैम बनाने थे वहां विभागों ने केवल पत्थर रखकर खानापूर्ति कर दी। कुछ एक तो इतने कमजोर चेकडैम बनवाए गए कि पहली ही बरसात में खंडहर हो गए। पशुपालन को भी यहां समृद्ध किया जाना था कि ताकि कमाई के वैकल्पिक स्रोत विकसित किए जा सकें। बकरियां खरीदने के लिए स्वयं सहायता समूहों को 100 करोड़ रुपये जारी किए गए थे। हालांकि यहां पशुपालन की स्थिति देखकर लगता है कि खरीददारी केवल कागजों पर हुई।