- कार्डियोथोरेसिक ऐंड वैस्कुलर सर्जनस प्रोग्रेसिव वेलफेयर असोसिएशन की कॉन्फ्रेंस में विशेषज्ञों ने दी जानकारी
- मरीजों की सहूलियत के लिए कार्डियक और सीवीटीएस की ओपीडी एक ही छत के नीचे अगल-बगल होनी चाहिए
\Bएनबीटी, लखनऊ: \Bकार्डियोथोरेसिक ऐंड वैस्कुलर सर्जनस प्रोग्रेसिव वेलफेयर असोसिएशन की ओर से रविवार को गोमतीनगर स्थित एक निजी होटल में एक कॉन्फ्रेंस का आयोजन हुआ। कॉन्फ्रेंस का शुभारंभ करते हुए लोहिया संस्थान के निदेशक डॉ. एके त्रिपाठी ने कहा कि हार्ट टीम एप्रोच से हार्ट के मरीजों का इलाज आसान हो जाएगा। इस व्यवस्था में कार्डियोलॉजिस्ट और कार्डियॉलजी सर्जन को आसपास बैठक कर मरीजों का इलाज करना होगा। इससे मरीजों को इलाज के लिए इधर-उधर दौड़ नहीं लगानी पड़ेगी।
डॉ. त्रिपाठी ने कहा कि वर्तमान में हार्ट सर्जरी के लिए मरीजों को लंबी-लंबी डेट दी जा रही हैं। इसके चलते मरीज काफी परेशान हैं। इस समस्या से निपटने का एक ही रास्ता है। हार्ट टीम एप्रोच। इस व्यवस्था में कार्डियक ओपीडी और सीवीटीएस की ओपीडी एक ही छत के नीचे अगल-बगल होनी चाहिए। अगर किसी मरीज को सर्जरी की जरूरत पड़े तो वह सीवीटीएस विभाग के डॉक्टरों को दिखाकर तत्काल इलाज करवा सके। यह सुविधा अभी कई अस्पतालों में नहीं है। कॉन्फ्रेंस के आयोजक डॉ. डीके श्रीवास्तव ने बताया कि मेदांता हॉस्पिटल से डॉ. अनिल भान, डॉ. राजीव, गुड़गांव से डॉ. अखिल ने हार्ट से जुड़ी बीमारियों पर अपना विचार रखें। इस मौके पर पीजीआई से डॉ. शांतनु पांडे, डॉ. भुवन तिवारी, डॉ. असीम आर श्रीवास्तव समेत कई विशेषज्ञ मौजूद रहे।
\Bबीटिंग सर्जरी से जल्दी सुधार
\Bमैक्स हॉस्पिटल से आए डॉ. रजनीश मल्होत्रा ने बताया कि वाल्व रिप्लेसमेंट, ब्लाकेज या फिर दिल के छेद के ऑपरेशन के दौरान पहले हार्ट को हार्ट लंग मशीन पर लगाकर उसकी धड़कन को बंद कर दिया जाता है, इसमें फेफड़े का काम मशीन करने लगती है। लेकिन आधुनिक तकनीक से ऐसे मरीजों का इलाज और आसान हो गया है। अब ऐसे मरीजों की सर्जरी बीटिंग सर्जरी विधि से की जा रही है। इस विधि में धड़कते हार्ट की सर्जरी की जाता है। इससे मरीज पहले की अपेक्षा जल्दी ठीक हो रहे हैं।
\Bछोटे छेद से हो रहा दिल का इलाज
\Bदिल्ली से आए डॉ. युगल मिश्रा ने बताया कि अब दिल की बीमारियों का इलाज छोटे से छेद के जरिए हो रहा है। मिनिमल इनवेसिव कार्डियक सर्जरी से मरीज में इंफेक्शन का खतरा कम रहा है। क्योंकि इस विधि में 2 से 4 सेमी का चीरा लगता है। जबकि पहले करीब आठ सेमी का चीरा लगता था, जिससे काफी ब्लड निकल जाता था।