एनबीटी ब्यूरो, इलाहाबाद : इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि अधीनस्थ न्यायालय के तथ्यात्मक निष्कर्ष पर हाई कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 227 के तहत हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं है। तथ्यों पर दिए गए फैसले के खिलाफ याचिका पर हाई कोर्ट को अपील की तरह तथ्यों व साक्ष्यों के निष्कर्ष पर विचार करने का अधिकार नहीं है। इसके साथ ही कोर्ट ने किराएदारी के एक विवाद को लेकर दाखिल याचिका पर हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है।
यह आदेश जस्टिस एस पी केशरवानी ने नाथूराम बिलराम गेट कासगंज, एटा के आनन्द कुमार बनाम दिनेश कुमार के बीच दुकान की किराएदारी के विवाद को लेकर दाखिल याचिका पर दिया है। याची को दुकान का किराया बकाया रखने के आधार पर बेदखल करने के आदेश को चुनौती दी गई थी।
कोर्ट ने कहा कि, संविधान के अनुच्छेद 227 के अधिकारों का प्रयोग सीमित है। यह न्याय रूपी रथ के पहिये को गतिमान रखने, न्यायिक व्यवस्था कायम रखने व न्याय व्यवस्था पर जनविश्वास बनाए रखने तक ही सीमित है।
हाई कोर्ट अधीनस्थ न्यायालयों की गलतियों को दुरुस्त करने के लिए अपनी अर्न्तनिहित शक्तियों का प्रयोग करता है। ऐसा तब जब न्यायालय ने बिना क्षेत्राधिकार के आदेश दिया हो, क्षेत्राधिकार का प्रयोग करने में विफल रहा हो या कोर्ट ने जबरन क्षेत्राधिकार अर्जित कर आदेश दिया हो। कहा कि, न्याय देने मे विफल रहने पर हाई कोर्ट, अधीनस्थ न्यायालय के आदेश पर हस्तक्षेप कर सकता है।