किसी की शिकायत से अब शिकायत नहीं होती। अब बेरुखी से दिल्लगी की आदत सी हो गई है। वक्त ने तकदीर के साथ मिलकर ऐसी साजिश की कि अब ख्वाहिशों में कुछ शामिल ही नहीं है। तुम्हारे जाने से मैंने जाना है कि किसी का जाना इतना बुरा क्यों होता है? दरअसल, जाने वाले चले जाते हैं पर उनकी यादें नहीं जाती हैं। वो गुजरे वक्त के खंडहर में जालों की तरह उलझ कर रह जाती हैं और इंसान जब भी बीते वक्त को महसूस करता है, उन यादों के जालों में फंस जाता है। मैं भी अक्सर तुम्हारी यादों में उलझ कर ठहर जाता हूं। तुम्हारी दोस्ती, तुम्हारे प्यार से कहीं ज्यादा यादें आती हैं मुझे तुम्हारी शिकायतें। मैं बेपरवाह था, तुम जिम्मेदार थी। मैं लापरवाह था, तुम समझदार थी। मैं बेफिक्र था तुम्हें कल की फिक्र थी। मैं बस अपनी खातिर जीना चाहता था और तुम्हें अपनों की ख्वाहिशें पूरी करनी थीं। तुम मेरा साथ चाहती थी और मैं बस साथ रहना चाहता था। हमारी चाहत तो एक थी पर वहां तक पहुंचने का रास्ता शायद अलग था। यही वजह थी कि जिंदगी ने हमें अलग-अलग रास्तों पर धकेल दिया। तुमने जाते वक्त कहा था, 'तुम रोज कहते हो कि मैं शिकायतें बहुत करती हूं। हर बात पर तुम्हें टोकती हूं। हर गलती पर तुम्हें अहसास कराती हूं। दरअसल, मैं चाहती हूं कि तुम फिक्र करना सीखो, तुम जिंदगी में गंभीर होना सीखा। तुम प्यार की जिम्मेदारी लेना सीखो पर तुम्हारा प्यार मेरे प्यार जैसा नहीं है। मुझे जिंदगी भर का साथ चाहिए और तुम कल के बारे में सोचना नहीं चाहते इसलिए अब हमारे रास्ते अलग होंगे।' तुम जब मुझे यह बोलकर जा रही थी तब भी मुझे यकीन नहीं था कि तुम मुझसे हमेशा के लिए दूर चली जाओगी। मैं तो बस यह सोचता रह गया कि तुम मुझसे प्यार करती हो पर यह भूल गया कि मैंने खुद प्यार की जिम्मेदारी नहीं निभाई। अब यकीन मानो तुम्हारी शिकायत को न समझने की सजा खुद को दे रहा हूं। यही वजह है कि किसी और की शिकायत से अब शिकायत नहीं होती।
- राहुल यादव, अलीगंज