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Lucknow News: 'उर्दू हटाकर अंग्रेजी शामिल करना असंवैधानिक', भाषा विश्वविद्यालय में लोगो से उर्दू हटाने के मामले पर आलोचक और शायरों ने की निंदा

भाषा विश्वविद्यालय में लोगो और लेटर पैड से उर्दू हटाने के मामले में सोमवार को लखनऊ के शायर, आलोचक और सामाजिक स्तंभकारों ने निंदा की। इसे न सिर्फ गैर संवैधानिक बताया, बल्कि उर्दू को खत्म करने की एक कोशिश भी करार दिया।

नवभारत टाइम्स 2 Mar 2021, 7:20 am

हाइलाइट्स

  • लखनऊ के ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय का मामला
  • लोगो, लेटर पैड से उर्दू हटाने की शायरों और आलोचकों ने की निंदा
  • प्रदेश की दूसरी राजभाषा, संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल उर्दू
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नवभारतटाइम्स.कॉम ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय
लखनऊ
ख्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती भाषा विश्वविद्यालय में लोगो और लेटर पैड से उर्दू हटाने के मामले में सोमवार को लखनऊ के शायर, आलोचक और सामाजिक स्तंभकारों ने निंदा की। इसे न सिर्फ गैर संवैधानिक बताया, बल्कि उर्दू को खत्म करने की एक कोशिश भी करार दिया। आलोचक वीरेंद्र यादव ने तो लोगो से अरबी हटाकर संस्कृत शामिल करने को संकीर्ण राजनीति दुराग्रह से प्रेरित करार दिया है।
'अपनों जैसा सुलूक करें उर्दू के साथ'
उर्दू के शायर नवाज देवबंदी ने कहा कि उर्दू मुश्तर्का तहजीब की जबान है। मुल्क की पेशानी का झूमर है उर्दू। हमारे राजनेता और समाज के लोगों की जिम्मेदारी है कि उर्दू के साथ ऐसा सुलूक करें जैसा अपनों (हिंदी) के साथ करते हैं। लोगो या पैड से हिंदी को तो नहीं निकाला गया तो उर्दू को क्यों।

'दूसरी राजभाषा उर्दू है अंग्रेजी नहीं'
आलोचक वीरेंद्र यादव का कहना है कि उर्दू प्रदेश की दूसरी राजभाषा है और संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल है। ऐसे में उर्दू की जगह अंग्रेजी शामिल करना असंवैधानिक है। लखनऊ अवध का हृदय हैं जहां प्रेम चंद, फिराक गोरखपुरी जैसे बड़े लेखकों ने उर्दू में लेखन शुरू किया। दुनिया में मशहूर मुंशी नवल किशोर प्रेस यहीं है तो यह बहुत ही गलत है।
पहले उर्दू अरबी फारसी विवि नाम था अब भाषा विवि नाम है इसलिए यह परिवर्तन किया गया है। हमारा किसी धर्म या भाषा को लेकर कोई विरोध नहीं है।
प्रफेसर वीरेंद्र पाठक, वीसी, भाषा विश्वविद्यालय

'उर्दू को खत्म करने की साजिश'
सामाजिक कार्यकर्ता नाइश हसन का कहना है कि यह यूपी से उर्दू को खत्म करने की कोशिश है। इसकी जितनी निंदा की जाए उतनी ही कम है। जिन संस्थानों पर इन भाषाओं को बढ़ाने आगे ले जाने का जिम्मा है वो ही इस तरह उसे बेदखल करेंगे तो हम कैसे उम्मीद करें कि समाज में इन भाषाओं को उनका दर्जा मिलेगा।

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