लखनऊ
मतदान के लिए जैन समाज का विशेष प्रयास की गई है। इसके लिए पीजीआई में नर्व स्टिम्युलेटर मशीन मंगाई गई है। इस मशीन की मदद से सर्जरी का सफलता प्रतिशत बढ़ने के साथ ही वेटिंग भी कम हो रही है। अब महीने में तीन से चार सर्जरी की जा रही हैं। जबकि इसके पहले चार महीने में एक सर्जरी होती थी।
केजीएमयू के प्लास्टिक सर्जरी विभाग के प्रो. अंकुर भटनागर ने बताया कि कई बार सड़क दुर्घटना में घायल कई मरीजों के हाथ-पैर व शरीर के कई अंग बेजान हो जाते हैं। हादसे में ऐसे मरीजों की कई नर्व और मसल्स डैमेज हो जाती हैं। इनको रिपेयर करने के लिए जटिल सर्जरी की जाती है। क्योंकि छोटी-छोटी डैमेज नर्व और आर्टरी को ढूंढ़ने में काफी वक्त लगता था। इस दौरान हड्डी और मसल्स को भी हटाना पड़ता था। इसमें कई अच्छी मसल्स भी प्रभावित होती थीं।
चार महीने में होती थी एक सर्जरी
प्रो. अंकुर भटनागर ने बताया कि अभी तक चार महीने में एक सर्जरी की जाती थी। इस मशीन के आने के बाद एक महीने में तीन से चार सर्जरी हो रही है। उन्होंने बताया कि नर्व स्टिम्युलेटर मशीन से सर्जरी के दौरान नर्व तलाशने में ज्यादा मशक्कत नहीं करनी पड़ती है। मशीन को प्रभावित अंग के पास सेट कर दिया जाता है। इसके बाद मशीन के तार को अंदर डाल दिया जाता है। प्रभावित नर्व का पता चलते ही बीप-बीप की आवाज आने लगती है। मशीन में लगे डिस्प्ले बोर्ड में प्रभावित नर्व या आर्टरी को ऑपरेट कर दिया जाता है।
ऐसे करते हैं ऑपरेट
प्रो. अंकुर भटनागर ने बताया कि यह सर्जरी फ्री फंक्शनल मसल्स ट्रांसफर टेक्निक से की जा रही है। इसमें शरीर के जो अंग काम कर रहे होते हैं उसमें से मसल्स को कट करके बेजान अंगों में लगा दिया जाता है। वहीं डैमेज आर्टरी को हटाकर नई आर्टरी से जोड़ दिया जाता है। इसके बाद छह महीन में प्रभावित अंग में जान आने लगती है। वहीं दो साल में अंग नॉर्मल काम करने लगता है।
सिर्फ 30 हजार रु. आएगा खर्चा
प्रो. अंकुर भटनागर ने बताया कि संस्थान में बेजान अंगों की सर्जरी में महज तीस हजार रुपये का खर्चा आता है। जबकि प्राइवेट अस्पतालों में यही सर्जरी लाखों रुपये में होती है। उन्होंने बताया कि ऑपरेशन के बाद मरीज को 15 दिन तक भर्ती रखा जाता है। इसके बाद 6 महीने तक मरीज को रूटीन चेकअप के लिए बुलाया जाता है।