स्पाइनल कॉर्ड के न्यूरॉन सेल दोबारा नहीं बनते
स्टेम सेल से न्यूरॉन सेल बनाने का दावा करने वालों से बचें, केजीएमयू में हुए शोध रहे असफलस्पाइनल कॉर्ड इंजरी पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में ...
स्टेम सेल से न्यूरॉन सेल बनाने का दावा करने वालों से बचें, केजीएमयू में हुए शोध रहे असफल
स्पाइनल कॉर्ड इंजरी पर आयोजित जागरूकता कार्यक्रम में न्यूरो सर्जरी विभाग के हेड ने दी जानकारी
\Bएनबीटी संवाददाता, लखनऊ
\Bस्पाइनल कॉर्ड में अगर एक बार इंजरी हो जाती है तो जल्दी ठीक नहीं होती। दरअसल, स्पाइनल कॉर्ड में मौजूद न्यूरॉन सेल अगर एक बार खराब हो जाएं तो वे दोबारा नहीं बनते। आज कई निजी अस्पतालों में स्टेम सेल से न्यूरॉन सेल बनाने का दावा किया जा रहा है। एक से डेढ़ लाख रुपये में इसकी सर्जरी भी की जा रही है। लेकिन यह अब तक साबित नहीं हुआ है कि इससे न्यूरॉन सेल बनते हैं। केजीएमयू में भी इस पर शोध हुआ लेकिन रिजल्ट अच्छे नहीं आए। इसलिए मरीज इससे बचें। यह बात शुक्रवार को न्यूरो सर्जरी विभाग के हेड डॉ. बीके ओझा ने शताब्दी अस्पताल में आयोजित कार्यक्रम के दौरान कही।
केजीएमयू में स्पाइनल कॉर्ड इंजरी पर आयोजित कार्यक्रम में कई स्कूलों के छात्रों को भी इसके प्रति जागरूक किया गया। डॉ. क्षितिज श्रीवास्तव ने कहा कि सिर्फ ट्रैफिक नियमों का पालन कर इस तरह की इंजरी से बचा जा सकता है। इसकी इंजरी से हाथ पैर और शरीर के दूसरे हिस्से काम करना बंद कर देते हैं। इससे मरीज हमेशा के लिए दूसरों पर निर्भर हो जाता है। मौके पर स्कूलों के बच्चों ने एक्सिडेंट से जागरूकता के लिए नाटक का मंचन किया। सात स्कूलों की टीमों ने इसमें प्रतिभाग किया।
\Bएक्सिडेंट के स्पॉट से ही शुरू होता है इलाज
\Bडॉ. सोमिल जायसवाल ने बताया कि एक्सिडेंट की जगह से ही मरीज का इलाज शुरू हो जाता है। कई बार अस्पताल लाने में ही स्पाइन टूट जाती है। एक्सिडेंट होने पर अगर मरीज के गर्दन या पीठ में दर्द हो या वो मूर्क्षित हो तो उसे ऐसे उठाएं ताकि पीठ और गर्दन न मुड़े। घायल को उठाकर किसी ऐसी चीज पर लेटाएं जो सपाट हो। गर्दन के बगल में तकिया या तौलिया रख दें जिससे वो हिले न। ऐसा करने से उसे सेकंड्री इंजरी से बचाया जा सकता है।
\Bन्यूरोसर्जन और फीजियोथेरेपिस्ट की है कमी
\Bडॉ. ओझा ने बताया कि वर्तमान में महज ढाई हजार न्यूरोसर्जन पूरे देश में हैं। ऐसे में साढ़े पांच लाख की आबादी पर एक न्यूरोसर्जन काम कर रहा है। इसमें कई की पोस्टिंग सीएचसी, पीएचसी जैसी जगहों पर है, जहां न्यूरोसर्जरी की सुविधा ही नहीं है। ऐसे में वो सर्जरी कर ही नहीं पाते। वहीं, सर्जरी के बाद रीहैबिलिटेशन के लिए फीजियोथेरेपिस्ट की जरूरत होती है। हमारे देश में उनकी भी कमी है। जब तक इस कमी की पूर्ति और पर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं मुहैया कराया जाएगा तब तक सुधार संभव नहीं है।