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आजमगढ़, रामपुर लोकसभा उपचुनाव: सिर्फ अखिलेश ही नहीं भाजपा के लिए भी जीत-हार में छिपे हैं बड़े संदेश

उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और रामपुर में होने वाले लोकसभा उपचुनाव को लेकर बीजेपी और सपा ने अपना पूरा जोर लगा रखा है। सपा के लिए जहां दोनों सीटें साख का सवाल हैं, वहीं साल 2022 के आम चुनाव के मद्देनजर मनोवैज्ञानिक बढ़त हासिल करने के लिए बीजेपी ये सीटें जीतना चाहेगी।

Curated byराघवेंद्र शुक्ला | नवभारतटाइम्स.कॉम 21 Jun 2022, 1:15 pm
लखनऊः उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ और रामपुर में लोकसभा के उपचुनाव की घड़ी जैसे-जैसे नजदीक आ रही है, वैसे-वैसे ही प्रदेश में सियासी पारा गरमाता जा रहा है। यूं तो दोनों ही सीटें समाजवादी पार्टी का गढ़ मानी जाती हैं। आजमगढ़ वह सीट है, जहां से पूर्व मुख्यमंत्री और सपा संरक्षक मुलायम सिंह और उनके बेटे सपा मुखिया अखिलेश यादव खुद चुनाव लड़कर संसद पहुंच चुके हैं। वहीं दूसरी सीट सपा का कद्दावर मुस्लिम चेहरा माने जाने वाले आजम खान की सीट है, जिनका इस इलाके में दबदबा माना जाता है लेकिन आम चुनाव से तीन साल पहले हो रहे उपचुनाव में बीजेपी ने सपा के खिलाफ अपना पूरा जोर लगा दिया है। यह कोई सामान्य बात नहीं है बल्कि दोनों ही उपचुनावों के नतीजों में बीजेपी की दृष्टि से भी कई अहम संदेश छिपे हैं।
नवभारतटाइम्स.कॉम आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव
आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा उपचुनाव


आजमगढ़ में उतरे दिग्गज
आजमगढ़ लोकसक्षा क्षेत्र की बात करें तो अखिलेश यादव के इस्तीफे के बाद खाली हुई सीट पर मुलायम परिवार के ही धर्मेंद्र यादव उम्मीदवार हैं। बीजेपी ने भोजपुरी सिने स्टार दिनेश लाल यादव पर दांव लगाया है। बीएसपी ने गुड्डू जमाली को उतारकर लड़ाई को एक बार फिर दिलचस्प बना दिया है। बीते चुनाव की बात करें तो 2019 में सपा को यहां से 60 फीसदी वोट मिले थे लेकिन इस बार हालात अलग हैं। पहले तो पिछली बार उम्मीदवार अखिलेश यादव थे लेकिन इस बार लोकप्रियता के पैमाने पर दिनेश लाल यादव धर्मेंद्र यादव से कहीं आगे हैं।

आजमगढ़ के एमवाई समीकरण पर बीएसपी की सेंधमारी से भी यहां की सियासत बदलाव की करवट ले सकती है, ऐसा माना जा रहा है। गुड्डू जमाली इलाके में लोकप्रिय नेता हैं और मुस्लिम वोटों में सेंधमारी कर सकते हैं। इसके अलावा बीजेपी के उम्मीदवार दिनेश लाल यादव यादव सपा के यादव वोटों को अपनी ओर खींच सकते हैं। सपा के लिए यह सीट प्रतिष्ठा का सवाल तो है ही लेकिन बीजेपी के लिए भी यह रण उसकी सियासी धमक के लिटमस टेस्ट की तरह से है।

परिवारवाद के खिलाफ
बीजेपी लगातार यह दावा करती है कि उत्तर प्रदेश में उसने परिवारवाद को खत्म कर दिया है। ऐसे में आजमगढ़ चुनाव जीतकर वह अपने इस दावे को और पुख्ता करने की कोशिश करना चाहती है। इसमें वह अमेठी में राहुल गांधी की हार जैसा कुछ कारनामा दोहराने के मूड में है। यही वजह है कि मुस्लिम-यादव बहुल इलाके में अपनी जीत तय करने के लिए पार्टी ने अपने सभी दिग्गजों को चुनाव प्रचार के मैदान में उतार दिया है। केशव मौर्य से लेकर योगी आदित्यनाथ ने तो वहां रैली की ही है। इसके साथ ही पार्टी के पूर्व प्रदेश अध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही को क्षेत्र में चुनाव की कमान संभालने को दे दिया गया है। इसी से अंदाजा लगाया जा सकता है कि पार्टी आजमगढ़ चुनाव को लेकर कितनी गंभीर है।

बीजेपी अगर आजमगढ़ का चुनाव जीतती है तो यह जीत साफ संदेश देगी कि उसकी लहर ने उत्तर प्रदेश में कथित परिवारवादी राजनीति का सफाया कर दिया। वहीं अगर चुनाव हारती है तो यह 2022 के चुनाव से पहले अपने गढ़ों में सपा और अखिलेश यादव के कायम जलवे का सबसे सशक्त उदाहरण होगा।

अग्निपथ योजना पर मुहर
ताजा राजनीतिक घटनाक्रम को देखें तो आजमगढ़ जिस बेल्ट में आता है, वहां से भारी संख्या में युवा सेना में जाने की तैयारी करते हैं। केंद्र सरकार की हालिया अग्निपथ योजना को लेकर देश भर में विरोध चल रहा है। ऐसे में आजमगढ़ का चुनाव बीजेपी की इस नई स्कीम को लेकर जनमत का टेस्ट भी कर देगा कि वोट देते समय लोग इस स्कीम को ध्यान में रखकर फैसला लेंगे या नहीं?

रामपुर में आजम के करीबी पर दांव
रामपुर लोकसभा सीट से आजम खान सांसद थे और उन्होंने रामपुर से ही विधानसभा सीट जीतने के बाद लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था। अब यह सीट खाली हुई तो बीजेपी ने इस पर अपनी नजर गड़ा ली। सपा का गढ़ और मुस्लिम बहुल होने के बावजूद रामपुर में बीजेपी अपनी पूरी शक्ति के साथ चुनाव लड़ रही है। बीजेपी के उम्मीदलार घनश्याम लोधी हैं, जो पहले सपा में रह चुके हैं। वह आजम खान के करीबी भी माने जाते रहे हैं।

रामपुर में अब तक अजेय रहे आजम खान की बीजेपी सरकार के मुखिया योगी आदित्यनाथ से अदावत के चर्चे सियासी गलियारों में आम हैं। सरकार बनने के बाद से ही योगी ने आजम खान पर शिकंजा कसना शुरू कर दिया था। आजम को जेल भी जाना पड़ा था। ऐसे में रामपुर की जंग इस अदावत में शक्ति प्रदर्शन का अखाड़ा भी बन सकती है। हालांकि, बीजेपी के लिए यह आसान नहीं होगा। आजम खान का इस क्षेत्र में दबदबा ऐसा है कि वह जेल में रहते हुए भी विधायकी का चुनाव जीत गए। अब सपा ने यहां से उनके करीबी आसिम रजा को टिकट दिया है।

आजम पर ऐक्शनःसियासी शत्रुता?
आजम खान उपचुनाव को लेकर काफी ऐक्टिव भी हैं और लगातार मंचों पर भाषणों के दौरान अपने रंग में लौटते नजर आ रहे हैं। रामपुर में बीजेपी अगर जीतती है तो इस जीत के बाद वह जोरशोर से यह प्रचारित करने की कोशिश करेगी कि सरकार बनने के बाद आजम खान पर लिए गए ऐक्शन का 'सियासी शत्रुता' से कोई संबंध नहीं था। साल 2022 के चुनाव के मद्देनजर मुस्लिम वोटों के भगवा पार्टी के साथ होने के दावे का परीक्षण भी इस चुनाव में हो जाना है।

किलों को भेदने का संदेश
कुल मिलाकर दोनों ही सीटें सपा का गढ़ कही जाती हैं। माना जा रहा है कि दोनों ही सीटों पर सपा को बीजेपी टक्कर तो देगी लेकिन उसके जीतने के चांस अभी भी निर्विवाद नहीं हैं। फिर भी, इन सीटों के नतीजे साल 2022 के चुनाव के मद्देनजर वोटर्स का रुझान साफ करने में अहम भूमिका निभा सकती हैं। दोनों ही सीटों पर सपा अगर अपना किला बचा लेती है तो यह पार्टी के लिए मनोवैज्ञानिक बढ़त तो होगी ही, साथ ही यह साबित हो जाएगा कि सपा के गढ़ बीजेपी के लिए अभी भी अभेद्य बने हुए हैं।

वहीं बीजेपी दोनों ही सीटें जीतकर यह साबित करने की कोशिश करेगी कि उत्तर प्रदेश में अब किसी खास पार्टी के 'गढ़' या 'किले' जैसी कोई चीज नहीं रह गई है। साथ ही प्रदेश की राजनीति में परिवारवाद के लिए भी कोई जगह नहीं है।
लेखक के बारे में
राघवेंद्र शुक्ला
राघवेंद्र शुक्ल ने लिखने-पढ़ने की अपनी अभिरुचि के चलते पत्रकारिता का रास्ता चुना। नई दिल्ली के भारतीय जनसंचार संस्थान से पत्रकारिता में डिप्लोमा हासिल करने के बाद जुलाई 2017 में जनसत्ता में बतौर ट्रेनी सब एडिटर दाखिला हो गया। वहां के बाद नवभारत टाइम्स ऑनलाइन की लखनऊ टीम का हिस्सा बन गए। यहां फिलहाल सीनियर डिजिटल कंटेंट प्रड्यूसर के पद पर तैनाती है। देवरिया के रहने वाले हैं और शुरुआती पढ़ाई वहीं हुई। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री है। साहित्यिक अभिरूचियां हैं। कविता-उपन्यास पढ़ना पसंद है। इतिहास के विषय पर बनी फिल्में देखने में दिलचस्पी है। थोड़ा-बहुत गीत-संगीत की दुनिया से भी वास्ता है।... और पढ़ें

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