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गृहणियों का काम अमूल्य, लेकिन मिले कम से कम कामवाली से ज्यादा कीमत: ट्राइब्यूनल

मोटर ऐक्सिडेंट क्लेम्स ट्राइब्यूनल ने परिवार में एक महिला द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका का आकलन करते हुए, उनके काम का मूल्य देने का आदेश दिया है।

टाइम्स न्यूज नेटवर्क 15 Dec 2017, 2:14 pm
मुंबई
नवभारतटाइम्स.कॉम सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

गृहणियों के काम को अकसर वो सम्मान नहीं मिल पाता जितना घर से बाहर निकलकर काम करने जा रहीं महिलाओं को मिलता है। मोटर ऐक्सिडेंट क्लेम्स ट्राइब्यूनल ने परिवार में एक महिला द्वारा निभाई जाने वाली भूमिका का आकलन करते हुए, उनके काम का मूल्य देने का आदेश दिया है। ट्राइब्यूनल ने ऐसा एक केस में किया जहां 35 साल की एक महिला की जान जाने के बाद उनकी मौत के आरोपी और एक बीमा कंपनी को महिला के परिवार को मुआवजा देने का आदेश दिया गया।

11 सितबंर 2012 को फातिमा की मोटरसाइकल से टक्कर होने पर मौत हो गई थी। उनके पति ने बाइक चालक पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए 6 लाख रुपये मुआवजे की मांग की थी।

बीमा कंपनी ने यह कहकर बीमा देने से इनकार कर दिया था कि क्योंकि फातिमा कमाती नहीं थीं, उनकी वार्षिक आय का आकलन नहीं किया जा सकता। ट्राइब्यूनल ने कंपनी के तर्क को सुप्रीम कोर्ट के एक निर्णय का हवाला देते हुए खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि एक गृहिणी की मासिक आय 5,000 रुपये मानी जाए। कोर्ट ने भी यह कहा कि एक मां, बहन या पत्नी की सेवा को पैसों के हिसाब से नापा नहीं जा सकता क्योंकि वह सब काम प्यार और लगाव के साथ करती हैं। ऐसी महिला के जाने से परिवार में खालीपन पैदा होता है।

ट्राइब्यूनल ने भी कहा, 'हम एक पत्नी, मां और बहन की सेवा की किसी घर के काम करने वाली महिला से तुलना नहीं कर सकते, लेकिन कठोर सच्चाई यही है कि मुझे इस मां की वार्षिक आय का आकलन करने के लिए ऐसा करना पड़ रहा है।'

ट्राइब्यूनल ने फातिमा के पति और उनके बच्चों को 5.5 लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया। इस रकम से परिवार को हुए नुकसान की भरपाई करने की कोशिश भी की गई है।

इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ें।

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