'लोग काफी सहनशील हो गए हैं'
रिपोर्टर-एजेंसी, मुंबई:
बॉम्बे हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि सार्वजनिक रैलियों और मोर्चों पर प्रतिबंध नहीं लगाया जा सकता, क्योंकि ये लोकतंत्र का आंतरिक हिस्सा हैं। अदालत ने महाराष्ट्र सरकार को इन रैलियों के नियमन के लिए एक नीति लाने का आदेश दिया, ताकि इससे आम लोगों को कोई असुविधा न हो।
जस्टिस वी.एम. कनाडे और पी.आर. बोरा की खंडपीठ नरिमन पॉइंट-चर्चगेट सिटीजन्स एसोसिएशन और अन्य द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी। याचिकाकर्ताओं ने दावा किया कि दक्षिण मुंबई के आजाद मैदान में हुए मोर्चों से वे प्रभावित हुए हैं। याचिका दायर करने वालों के वकील एस.सी. नायडू ने कहा कि शहर के विभिन्न हिस्सों, खासकर दक्षिण मुंबई के इलाकों में अनेक रैलियों, मोर्चों और धरनों के कारण ट्रैफिक जाम रहता है, जिससे लोगों को परेशानी होती है। उन्होंने यह भी सुझाव दिया कि इस तरह की रैलियां आदि शनिवार और रविवार को हो सकती है, इन दिनों में अवकाश होने से लोगों को कम परेशानी होगी।
सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि मुंबई में यह देखा जाता है कि कोई न कोई सरकारी एजेंसी मरम्मत के लिए सड़कें खोद देती है, जिस कारण घंटों ट्रैफिक जाम रहता है। लेकिन लोग अनुशासन के मद्देनजर इसे सहन कर लेते हैं, जिससे लगता है कि मुंबई के निवासी अब ज्यादा सहनशील हो गए हैं।
इन दिनों सभी मोर्चे और धरना आदि आजाद मैदान में समाप्त होते हैं। यह हाई कोर्ट द्वारा 8 दिसंबर 1997 को पारित एक आदेश के मुताबिक होता है जिसमें सभी मोर्चों को छत्रपति शिवाजी टर्मिनस (सीएसटी) और बीएमसी मुख्यालय के निकट आजाद मैदान में संपन्न करने का निर्देश दिया गया है।
पीठ को राज्य सरकार द्वारा सूचित किया गया कि इस मुद्दे को देखने के लिए एक समिति गठित की गई है, जो बाद में दिशा निर्देशों का मसौदा तैयार करेगी। इस समिति में अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह), पुलिस आयुक्त और बीएमसी कमिश्नर हैं। इस मुद्दे पर अब चार सप्ताह बाद सुनवाई होगी।