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कोर्ट ने सरकार से कहा मुआवजा योजना ‘अपमानजनक’, फिर से गौर कीजिए

'महिला दिवस पर कुछ रचनात्मक काम होना चाहिए' रिपोर्टर-एजेंसी, मुंबई : बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार को यौन उत्पीड़न और तेजाब हमले ...

नवभारतटाइम्स.कॉम 9 Mar 2017, 8:30 am

'महिला दिवस पर कुछ रचनात्मक काम होना चाहिए'

रिपोर्टर-एजेंसी, मुंबई : बॉम्बे हाई कोर्ट ने बुधवार को महाराष्ट्र सरकार को यौन उत्पीड़न और तेजाब हमले की पीड़ितों को मुआवजा देने की एक योजना पर फिर से गौर करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि इसमें सहानुभूति नहीं है तथा यह 'अपमानजनक एवं शर्मनाक' है।

चीफ जस्टिस मंजुला चेल्लुर और जस्टिस जी.एस. कुलकर्णी की खंडपीठ ने कहा कि 'हम इस मनोधैर्य योजना से खुश नहीं हैं। यह अपमानजनक, अमानवीय और शर्मनाक है। इस योजना को बनाते वक्त दिमाग नहीं लगाया गया।' पीठ ने कहा कि 'यह केवल खोखली औपचारिकता है। यह बहुत अफसोसजनक स्थिति है।' कोर्ट ने कहा कि 'आज महिला दिवस है। इस मौके पर कुछ रचनात्मक शुरुआत होनी चाहिए।'

अदालत 14 साल की लड़की द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसने बलात्कार-पीड़ित होने का दावा किया था और योजना के तहत तीन लाख रुपये का मुआवजा मांगा था। पिछले वर्ष अक्टूबर में याचिका दायर होने के बाद सरकार ने लड़की को दो लाख रुपये दिए थे। अदालत ने कहा कि 'गोवा को देखिए। यह दस लाख रुपये का मुआवजा देती है। हम महाराष्ट्र से भी प्रगतिशील एवं सकारात्मक होने की उम्मीद करते हैं।' अदालत ने कहा कि 'हम निर्देश देते हैं कि हमारे आदेश और सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मुद्दे पर अतीत में दिए गए सभी संबंधित फैसलों को राज्य के मुख्य सचिव के सामने रखा जाए, ताकि वह कुछ प्रगति कर सकें और चार हफ्तों में इस मामले में कुछ प्रशंसनीय फैसला करें।' अक्टूबर 2013 में शुरू हुई इस योजना के तहत राज्य सरकार बलात्कार और महिलाओं के खिलाफ अन्य अपराध की पीड़ितों को तीन-तीन लाख रुपये देती है।

मौद्रिक मुआवजे के अलावा सरकार जरूरत पड़ने पर पीड़ित की काउंसलिंग कराती है और कौशल एवं शैक्षणिक प्रशिक्षण देती है। सुनवाई के दौरान पीठ को राज्य सरकार ने बताया कि योजना की दो श्रेणी हैं, पहली बलात्कार तथा यौन उत्पीड़न पीडितों के लिए, जबकि दूसरी तेजाब हमला पीडितों के लिए। पहली श्रेणी में दो लाख और दूसरी श्रेणी में तीन लाख रुपये दिए जाते हैं।

अदालत ने कहा कि दिमाग लगाए बिना उपबंधों का प्रयोग किया गया और इनमें पीड़ितों के प्रति सहानुभूति नहीं है। पीठ ने कहा कि 'बाल पीड़ितों का क्या होगा? क्या उनके लिए दो लाख रुपये काफी हैं? मुंबई जैसी जगह में एक बच्ची दो लाख रुपये में क्या करेगी? उन्हें उचित शिक्षा तक नहीं मिल पाएगी?'

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