मोफीद खान, मुंबई
मुंबई में कोरोना से जंग जीतने के बाद लोग म्यूकरमायकोसिस से हार गए। बीएमसी के प्रमुख अस्पतालों में म्यूकरमायकोसिस से ग्रसित 40 ऐसे मरीज थे, जिनकी जिंदगी बचाने के लिए डॉक्टरों को उनकी एक आंख निकालनी पड़ी। इनमें 7 मरीजों की म्यूकरमायकोसिस से जान तो बच गई, लेकिन उन्हें दोनों आंखें गंवानी पड़ीं। ब्लैक फंगस इन 7 मरीजों पर इतना हावी हो गया था कि अगर इनकी आंखें डॉक्टर नहीं निकलते, तो इनकी जान चली जाती। कोरोना से जंग जीते कई मरीज तेजी से म्यूकरमायकोसिस यानी ब्लैक फंगस की चपेट में आने लगे। इन मरीजों के इलाज की व्यवस्था बीएमसी ने अपने प्रमुख अस्पतालों में कई थी।
102 मरीजों की आंखों तक पहुंचा फंगस
बीएमसी स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक पिछले दो महीनों में म्यूकोरमायकोसिस से पीड़ित 161 मरीज इलाज के लिए भर्ती हुए थे। इनमें से 102 मरीजों की दोनों आंखों तक फंगस पहुंच गया था। इलाज के दौरान 22 मरीजों की एक आंख निकाली गई, जबकि 6 मरीजों को अपनी दोनों आंखे गंवानी पड़ीं।
दो महीने में 100 मरीज
केईएम अस्पताल की नेत्र विभाग प्रमुख डॉ. शीला करकर ने बताया कि कोरोना काल में म्यूकरमायकोसिस के ज्यादा मरीज मिले हैं। पहले इस बीमारी का प्रमाण काफी कम था। 10 वर्षों में 15 मरीज म्यूकरमायकोसिस मरीज मिलते थे, लेकिन इस बार तो दो महीने में 100 से अधिक मरीज मिले हैं।
सायन अस्पताल की ईएनटी विभाग की प्रमुख डॉ. रेणुका ब्राडो के मुताबिक पिछले एक महीने में सायन अस्पताल में 79 मरीज म्यूकरमायकोसिस के इलाज के लिए भर्ती हुए थे। इसमें से 53 मरीजों पर सर्जरी की गई, जिसमें से 15 मरीजों की एक आंख निकाली गई, जबकि एक मरीज को अपनी दोनों आंखें गंवानी पड़ीं।
मुंबई में कोरोना से जंग जीतने के बाद लोग म्यूकरमायकोसिस से हार गए। बीएमसी के प्रमुख अस्पतालों में म्यूकरमायकोसिस से ग्रसित 40 ऐसे मरीज थे, जिनकी जिंदगी बचाने के लिए डॉक्टरों को उनकी एक आंख निकालनी पड़ी। इनमें 7 मरीजों की म्यूकरमायकोसिस से जान तो बच गई, लेकिन उन्हें दोनों आंखें गंवानी पड़ीं। ब्लैक फंगस इन 7 मरीजों पर इतना हावी हो गया था कि अगर इनकी आंखें डॉक्टर नहीं निकलते, तो इनकी जान चली जाती।
102 मरीजों की आंखों तक पहुंचा फंगस
बीएमसी स्वास्थ्य विभाग के मुताबिक पिछले दो महीनों में म्यूकोरमायकोसिस से पीड़ित 161 मरीज इलाज के लिए भर्ती हुए थे। इनमें से 102 मरीजों की दोनों आंखों तक फंगस पहुंच गया था। इलाज के दौरान 22 मरीजों की एक आंख निकाली गई, जबकि 6 मरीजों को अपनी दोनों आंखे गंवानी पड़ीं।
नि:संदेह कोरोना के बाद म्यूकरमायकोसिस का खतरा बढ़ा है, हमारे यहां भर्ती मरीजों में से सिर्फ तीन को एक आंख गंवानी पड़ी। हम लोगों की जान बचाने को लेकर कृतसंकल्प हैं।
दो महीने में 100 मरीज
केईएम अस्पताल की नेत्र विभाग प्रमुख डॉ. शीला करकर ने बताया कि कोरोना काल में म्यूकरमायकोसिस के ज्यादा मरीज मिले हैं। पहले इस बीमारी का प्रमाण काफी कम था। 10 वर्षों में 15 मरीज म्यूकरमायकोसिस मरीज मिलते थे, लेकिन इस बार तो दो महीने में 100 से अधिक मरीज मिले हैं।
महीने भर में हमारे यहां ब्लैक फंगस के 79 मरीज मिले, जिनमें 53 मरीजों की सर्जरी कर हमने 38 लोगों की न केवल आंखें बचाईं, बल्कि उनकी जान भी बचा ली गई।
सायन अस्पताल की ईएनटी विभाग की प्रमुख डॉ. रेणुका ब्राडो के मुताबिक पिछले एक महीने में सायन अस्पताल में 79 मरीज म्यूकरमायकोसिस के इलाज के लिए भर्ती हुए थे। इसमें से 53 मरीजों पर सर्जरी की गई, जिसमें से 15 मरीजों की एक आंख निकाली गई, जबकि एक मरीज को अपनी दोनों आंखें गंवानी पड़ीं।