-दादासाहेब फालके के नाती चंद्रशेखर पुसालकर ने लगाई धरोहर बचाने की गुहार
-आज है भारतीय सिनेमा के जन्मदाता फालके की 146वीं जयंती
मुंबई: जिसने भारतीय सिनेमा को जन्म दिया, 30 अप्रैल को जिसकी जयंती हर साल धूमधाम से मनाई जाती है, उसी दादासाहेब फालके की उपेक्षा का आज यह हाल है कि उनकी जिन चीजों को धरोहर की तरह संजोकर रखना सरकार और फिल्म इंडस्ट्री की जिम्मेदारी थी, वे एक के बाद एक गुमनाम गलियों में नष्ट होती जा रही हैं और किसी को कोई मलाल तक नहीं। फालके की यादों से जुड़ी ऐसी ही एक अमूल्य धरोहर है उनकी फोर्ड कार, जो आज भी एक गैराज में भंगार बनकर धूल फांक रही है।
फालके के नाती चंद्रशेखर पुसालकर ने एक खास मुलाकात में कहा,'बड़े अफसोस की बात है कि जिसके नाम को भुनाकर लोग अपनी रोटियां सेंक रहे हैं, उसकी धरोहर को बचाकर इतिहास और आने वाली पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखने की फिक्र किसी को नहीं है। सुपर डुपर हिट फिल्में देने के बाद जब दादासाहेब फालके के अच्छे दिन आए, तो उन्होंने एक महंगी फोर्ड कार खरीदी थी। यह ओपन कार थी। नाशिक के आसपास शूटिंग के लिए वे इसी कार से निकलते थे। बाद में आर्थिक संकट के कारण जब बुरे दिन झेलने की नौबत आई, तो मजबूरी में अपनी यह मनपसंद कार उन्हें मन मसोस कर बेचनी पड़ी। जिसने खरीदी, उसने शादी में भाड़े पर कार देकर खूब कमाई की। फालके की कार के नाम से मशहूर थी इसलिए काफी डिमांड में थी। आज यह नाशिक में शिंगाडा तालाब के पास एक गैराज में टूटी-फूटी हालत में भंगार बनकर धूल भरी गली में अपनी किस्मत पर रो रही है।
उन्होंने बताया,'हमने गली-गली खाक छानकर इसे खोज निकाला और गैराज वाले से पूछा तो उसने कहा कि इसकी मरम्मत पर आठ-दस लाख का खर्च है। दो-तीन साल पहले मनसे के कुछ नेताओं ने इसकी मरम्मत कराने और फालके मेमोरियल को सौंपने का वादा किया था, लेकिन बाल में अपने वादे से मुकर गए। हमने मेयर से लेकर सीएम तक सबसे गुहार लगाई लेकिन सबको फालके की याद बस उनकी जयंती पर आती है। पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भी दादासाहेब फालके को 'भारत रत्न' दिलाने का वचन दिया था, मगर राज्य से नाम तक नहीं भेजा।'
फालके के नाती ने कहा,'हमारा परिवार इस बात से बेहद आहत है कि जो लोग दादासाहेब फालके का पूरा नाम तक नहीं जानते, वे उनके नाम पर धड़ल्ले से पुरस्कार का व्यापार कर रहे हैं और गैरफिल्मी लोगों को भी खिलौनों की तरह ट्रॉफियां बांट रहे हैं। कई बार हमें इस तमाशे में बुलाते हैं मगर बैठने की सही जगह तक नहीं देते।'
# मिथिलेश सिन्हा