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धर्म धुरंधर सरकार

हरियाणा की मनोहरलाल खट्टर सरकार एक बार फिर एक निरर्थक विवाद में फंस गई है...

नवभारत टाइम्स 30 Aug 2016, 8:59 am
हरियाणा की मनोहरलाल खट्टर सरकार एक बार फिर एक निरर्थक विवाद में फंस गई है। धर्मगुरुओं का सम्मान करना, उनसे आध्यात्मिक समझ हासिल करना, जरूरत पड़ने पर व्यक्तिगत मामलों में उनसे दिशा-निर्देश लेना अच्छी बात है, लेकिन एक धर्मगुरु को विधानसभा में बुलाकर, वहां उन्हें सर्वोच्च आसन देकर उनसे राजनीति और धर्म के संबंधों पर वक्तव्य दिलवाना कोई अच्छी परंपरा नहीं है। उलटे इससे लोकतंत्र के प्रतीकों का असम्मान होता है।
नवभारतटाइम्स.कॉम a government fooled by religion
धर्म धुरंधर सरकार


मुख्यमंत्री और उनके सलाहकारों को सोचना चाहिए कि अपनी इस करनी से उन्होंने एक जैन मुनि को अनावश्यक विवाद में डाल दिया। सिक्के का दूसरा पहलू यह है कि रविवार को ही खट्टर मंत्रिमंडल के एक प्रभावशाली सदस्य अनिल विज ने डेरा सच्चा सौदा के प्रमुख गुरुमीत राम रहीम को 50 लाख रुपए का अनुदान देने की घोषणा कर दी। बकौल मंत्री, इस कदम का मकसद राज्य में स्पोर्ट्स को बढ़ावा देना है। सवाल यह है कि क्या राज्य सरकार या खेल मंत्री के पास खेल को बढ़ावा देने का और कोई भी जरिया नहीं बचा है? ध्यान रहे, हरियाणा में सरकार और धर्म की जुगलबंदी के ये अलग-थलग मामले नहीं हैं। खुद मुख्यमंत्री खट्टर ने सीएम पद संभालने के छह महीने के अंदर ही राज्य में योग और आयुर्वेद को बढ़ावा देने के नाम पर बाबा रामदेव को हरियाणा का ब्रैंड ऐंबैसडर घोषित कर दिया था।

प्रदेश में कानून-व्यवस्था की स्थिति सुधारने, कमजोर तबकों को न्याय दिलाने, इन्फ्रास्ट्रक्चर को बेहतर बनाने में सरकार कदम-कदम पर असफल साबित हो रही है, लेकिन अपने सिर पर धर्मगुरुओं का छप्पर तानने, धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल करने का एक भी मौका वह हाथ से नहीं जाने दे रही। गुरुग्राम घोषित हो जाने के बावजूद दिल्ली का पड़ोसी शहर गुड़गांव अव्यवस्था और अराजकता का दूसरा नाम बन कर रह गया है।

सत्ता में रहते हुए बीजेपी धर्म के साथ तमाम तरह के प्रयोग करती रही है, लेकिन खट्टर के शपथ ग्रहण के कुछ ही दिनों बाद किलेबंदी करके बैठे बाबा रामपाल से लेकर हाल में रुमाल छू प्रतियोगिता कराने वाले डेरा सच्चा सौदा तक जिस-जिस तरह के प्रयोग उसने हरियाणा में किए हैं, वैसे उसने कहीं और नहीं किए। ऐसे में धर्मगुरुओं को भी सोचना चाहिए कि तेजी से प्रतिष्ठा खो रही खट्टर सरकार से जुड़कर कहीं वे अपनी ही साख पर बट्टा तो नहीं लगा रहे।

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