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यह भरोसा न टूटे

दरअसल किसी बच्चे के गायब होने पर यह अफवाह उड़ा दी गई कि कुछ अफ्रीकियों ने उसे अगवा कर उसका मांस खाया है। गनीमत है कि समय पर पहुंचकर पुलिस ने उन अफ्रीकियों को बचा लिया।

नवभारत टाइम्स 26 Nov 2018, 8:40 am
दिल्ली के द्वारका में जिस तरह अफ्रीकी लोगों को निशाना बनाया गया, वह बेहद दुखद है। इससे देश की छवि को गहरा धक्का लगा है। हमले के पीछे की वजह तो हैरान करने वाली है। दरअसल किसी बच्चे के गायब होने पर यह अफवाह उड़ा दी गई कि कुछ अफ्रीकियों ने उसे अगवा कर उसका मांस खाया है। गनीमत है कि समय पर पहुंचकर पुलिस ने उन अफ्रीकियों को बचा लिया। आश्चर्य तो यह है कि किसी भी व्यक्ति ने नहीं कहा कि उसका बच्चा चोरी हुआ है। कहा जा रहा है कि बच्चा गायब होने या उसका अधखाया शव मिलने की बात सोशल मीडिया के जरिए फैली।
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यह प्रकरण इसी साल जुलाई में मॉब लिंचिंग की भयावह घटनाओं की याद दिलाता है जब अनेक राज्यों में बच्चा चोरी के आरोप में कई लोगों को भीड़ ने मार डाला था। तो क्या देश भर में घृणा और अराजकता फैलाने की जो साजिश बुनी गई, वह अब राजधानी तक पहुंच चुकी है और उसके लपेटे में इस बार विदेशियों को लिया गया है? हालांकि दिल्ली और उसके आसपास के इलाकों में अफ्रीकी लोगों पर हमले की यह पहली घटना नहीं है। पिछले कुछ वर्षों में अफ्रीकी छात्रों पर हमले के कई मामले सामने आए हैं। इस तरह की घटनाओं से देश की छवि पर आघात तो पहुंचता ही है, समाज की फांकें भी उजागर होती हैं। यह सही है कि भारतीय नेतृत्व ने हमेशा से विश्व स्तर पर नस्लीय भेदभाव का विरोध किया है और अश्वेतों को समान अधिकार और प्रतिष्ठा दिए जाने की वकालत की है, लेकिन वही लीडरशिप समानता और भ्रातृत्व के आदर्श को देश के जन-जन के मन में स्थापित नहीं कर सकी। वह देश के भीतर के सामाजिक विभाजन के खिलाफ आवाज उठाने के बावजूद उसे मिटा नहीं पाई।

कई उलटी धाराएं भी आईं जिन्होंने सभी तरह के बंटवारों को महिमामंडित किया, प्रेम और सौहार्द की जगह नफरत को हवा दी। शायद यही वजह है कि भारत में अब भी लोग हर तरह के वर्ग और समुदाय के साथ घुल-मिलकर रहना सीख नहीं पाए हैं। उनके अचेतन में बिठा दिए गए पूर्वाग्रह समय-समय पर खतरनाक ढंग से सामने आते रहते हैं। दिल्ली में न सिर्फ विदेशियों बल्कि देश के पूर्वोत्तर से आने वाले लोगों के खिलाफ भी नफरत भड़क उठती है। हाल के वर्षों में उनको निशाना बनाए जाने की कई घटनाएं घटी हैं। अन्य राज्यों में भी समय-समय पर प्रवासियों के खिलाफ हिंसा भड़क उठती है। एक आधुनिक और सभ्य समाज का लक्षण यह है कि वह अलग-अलग धाराओं से आने वाले लोगों और विचारों को खुले मन से स्वीकार करता है। विदेशियों का हमारे देश में शिक्षा प्राप्त करने या कारोबार के लिए आना इस बात का सबूत है कि वे हम पर भरोसा करते हैं। इस विश्वास को टूटने से बचाना होगा।

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