पिछले 15 सालों से तुर्की की सत्ता पर काबिज राष्ट्रपति रेचेप तईप एर्दोआन अगले कुछ सालों तक सत्ता में बने रहेंगे। जस्टिस एंड डिवेलपमेंट पार्टी के एर्दोआन ने दोबारा राष्ट्रपति पद पर जीत हासिल करते हुए अपने निकटतम प्रतिद्वंदी रिपब्लिकन पीपल्स पार्टी के मुहर्रम इन्स को परास्त कर दिया है। अपनी पार्टी की कमजोर स्थिति एर्दोआन को पहले से पता थी, लिहाजा वे गठबंधन में गए। इस गठबंधन की ताकत से ही राष्ट्रपति चुनाव में उन्हें 52.5 प्रतिशत वोट प्राप्त हुए। 31.7 प्रतिशत मत मुहर्रम इन्स को मिले हैं, जिन्होंने राष्ट्रपति बनते ही आपातकाल हटाने का वादा किया था। इससे आगे, संसदीय चुनाव के नतीजे आने अभी बाकी हैं, जहां अपने गठबंधन को पूर्ण बहुमत दिलाना एर्दोआन के लिए शायद उतना आसान न हो, जितना समय से पहले चुनाव कराते वक्त उन्होंने सोचा होगा।
पूरब-पश्चिम का पुल माने जाने वाले इस देश की जनता में इतना तीखा विभाजन पहली बार ही देखने को मिला है। एक तरफ एर्दोआन के समर्थक खड़े दिखे, दूसरी ओर पिछले दो साल से लगे आपातकाल, अदालतों की मनमानी और भीषण महंगाई का मुद्दा उठाने वाले उनके विरोधी। एर्दोआन के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद देश में नया संविधान भी लागू होना है, जिसमें मानवाधिकार और बुनियादी स्वतंत्रताओं को छोड़कर बाकी सब कुछ बदल देने का अधिकार राष्ट्रपति को होगा, बशर्ते संसद उस बारे में कोई नया कानून न पारित कर दे। इसके साथ ही तुर्की में अब कोई प्रधानमंत्री नहीं होगा, राष्ट्रपति खुद अपनी कैबिनेट बनाएगा।
अपने शासनकाल में एर्दोआन अपने पड़ोसियों से पुराने ऑटोमन साम्राज्य के किसी सुल्तान जैसा ही व्यवहार करते रहे हैं। कभी वह सेना लेकर सीरिया और इराक में घुस जाते हैं तो कभी रूस से लड़ने लगते हैं। हालांकि उनके समर्थक उन्हें सबसे ज्यादा पसंद भी इसीलिए करते हैं। लेकिन अभी तुर्की की सबसे बड़ी समस्या महंगाई और बेरोजगारी है और धंधे-पानी के लिए कर्ज मिलना भी मुश्किल है। राष्ट्रपति चुनाव में एर्दोआन ने कहा था कि तुर्की की तरक्की का नमूना यह है कि आज घर-घर में फ्रिज है। लेकिन मामले का दूसरा पहलू यह है कि वहां की मुद्रा के लगातार अवमूल्यन और महंगाई दर में लगातार बढ़ोतरी के चलते ज्यादातर फ्रिज खाली पड़े हैं। उनके जैसा दबंग नेता अगले पांच साल में इन्हें भर सके तो मानें कि उसमें कुछ बात है।
पूरब-पश्चिम का पुल माने जाने वाले इस देश की जनता में इतना तीखा विभाजन पहली बार ही देखने को मिला है। एक तरफ एर्दोआन के समर्थक खड़े दिखे, दूसरी ओर पिछले दो साल से लगे आपातकाल, अदालतों की मनमानी और भीषण महंगाई का मुद्दा उठाने वाले उनके विरोधी। एर्दोआन के दोबारा राष्ट्रपति बनने के बाद देश में नया संविधान भी लागू होना है, जिसमें मानवाधिकार और बुनियादी स्वतंत्रताओं को छोड़कर बाकी सब कुछ बदल देने का अधिकार राष्ट्रपति को होगा, बशर्ते संसद उस बारे में कोई नया कानून न पारित कर दे। इसके साथ ही तुर्की में अब कोई प्रधानमंत्री नहीं होगा, राष्ट्रपति खुद अपनी कैबिनेट बनाएगा।
अपने शासनकाल में एर्दोआन अपने पड़ोसियों से पुराने ऑटोमन साम्राज्य के किसी सुल्तान जैसा ही व्यवहार करते रहे हैं। कभी वह सेना लेकर सीरिया और इराक में घुस जाते हैं तो कभी रूस से लड़ने लगते हैं। हालांकि उनके समर्थक उन्हें सबसे ज्यादा पसंद भी इसीलिए करते हैं। लेकिन अभी तुर्की की सबसे बड़ी समस्या महंगाई और बेरोजगारी है और धंधे-पानी के लिए कर्ज मिलना भी मुश्किल है। राष्ट्रपति चुनाव में एर्दोआन ने कहा था कि तुर्की की तरक्की का नमूना यह है कि आज घर-घर में फ्रिज है। लेकिन मामले का दूसरा पहलू यह है कि वहां की मुद्रा के लगातार अवमूल्यन और महंगाई दर में लगातार बढ़ोतरी के चलते ज्यादातर फ्रिज खाली पड़े हैं। उनके जैसा दबंग नेता अगले पांच साल में इन्हें भर सके तो मानें कि उसमें कुछ बात है।