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कोरोनाः जान का हिसाब

यह कोई छुपी हुई बात नहीं है कि भारत जैसे विशाल देश में सरकारी तंत्र की पहुंच की एक सीमा है। कोरोना संक्रमण का हर मामला और उससे हुई हर मौत तत्काल सरकारी रेकॉर्ड पर आ जाए, यह संभव नहीं है। इसीलिए यह बात पहले दिन से कही जा रही है कि भारत में कोरोना से हुई मौत के सरकारी आंकड़े वास्तविक संख्या से कम है।

Authored byएनबीटी डेस्क | नवभारत टाइम्स 11 Jun 2021, 8:17 am
बिहार सरकार ने कोरोना महामारी से राज्य में हुई मौतों की आधिकारिक संख्या में बुधवार को संशोधन किया, जिससे अगले दिन 24 घंटे में देश में हुई कुल मौतों की संख्या अप्रत्याशित रूप से बढ़ गई। हालांकि, तत्काल यह भी साफ हो गया कि मामला बिहार सरकार के आंकड़ों की गफलत से जुड़ा है और इससे देश में कोरोना महामारी के निरंतर सुधरते हालात पर कोई सवाल नहीं उठता। दरअसल, मौतें छुपाए जाने के आरोपों के बीच पटना हाईकोर्ट ने राज्य सरकार को अप्रैल और मई में कोरोना से हुई मौतों की संख्या का ऑडिट कराने का आदेश दिया था। उसी आदेश का पालन करते हुए सरकार ने संशोधित आंकड़े जारी किए, जिससे राज्य में कोरोना से हुई मौतों की संख्या में एक ही दिन में 3951 का इजाफा हो गया। इस संख्या में उन मौतों को भी शामिल किया गया है, जो निजी अस्पतालों या होम क्वारंटीन में हुईं। एक बार ठीक हो जाने के बाद पोस्ट कोरोना कॉम्प्लिकेशंस से हुई मौतें भी इनमें शामिल हैं और अस्पताल के रास्ते में हुई मौतें भी। यह काम पहले ही होना चाहिए था। महामारी से जुड़ी हर मौत दर्ज होनी चाहिए।
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अच्छी बात यह है कि बिहार सरकार ने न केवल अपनी संख्या दुरुस्त की, बल्कि आगे भी सबूत मिलने पर इस संख्या को संशोधित करने की तैयारी दिखा रही है। अन्य राज्यों को भी बिहार सरकार के इस रुख से प्रेरणा लेकर अपने आंकड़ों में आवश्यक संशोधन की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए। यह कोई छुपी हुई बात नहीं है कि भारत जैसे विशाल देश में सरकारी तंत्र की पहुंच की एक सीमा है। कोरोना संक्रमण का हर मामला और उससे हुई हर मौत तत्काल सरकारी रेकॉर्ड पर आ जाए, यह संभव नहीं है। इसीलिए यह बात पहले दिन से कही जा रही है कि भारत में कोरोना से हुई मौत के सरकारी आंकड़े वास्तविक संख्या से कम है। अंतरराष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं ने तो अपनी-अपनी गणना के अनुसार मौत की अनुमानित संख्या सरकारी आंकड़े से पचास गुना तक ज्यादा बताई। सरकार को अपने संसाधनों के मुताबिक इन अनुमानों की जांच-पड़ताल करते हुए अपने आंकड़े दुरुस्त करने की कोशिश करनी चाहिए थी। मगर कई राज्य सरकारें सही आंकड़े को छुपाने की कोशिश करती नजर आईं। यह गंभीर बात है। अगर इस पर आपत्ति हुई, तो वह ठीक था। सिर्फ इसलिए नहीं कि एक सभ्य समाज के रूप में हमें हर मौत को सम्मान देना और देते हुए दिखना चाहिए, इसलिए भी कि किसी भी महामारी से निपटने के लिए उसकी व्यापकता, गहनता और आक्रामकता की सटीक समझ बहुत जरूरी है। मौत के सही आंकड़ों से हमें भविष्य में आने वाली महामारियों से निपटने की तैयारी में भी मदद मिलेगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि बिहार से दूसरे राज्य भी सीखेंगे और अपने आंकड़े सही करेंगे। याद रखना होगा कि यह हमारे आज के साथ बेहतर कल के लिए भी जरूरी है।
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