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चुनाव की उलटबांसी

ये दल अपने सघन प्रभाव वाले राज्यों के अलावा कई अन्य राज्यों में भी कांग्रेस के लिए मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं। जैसे समाजवादी पार्टी और बीएसपी महाराष्ट्र जैसे एक-दो राज्यों में मिलकर और कुछ अन्य राज्यों में अकेले या दूसरे दलों से मिलकर चुनाव लड़ रही हैं।

नवभारत टाइम्स 2 Apr 2019, 8:45 am
इस लोकसभा चुनाव का एक रोचक पहलू यह है कि इसमें तीसरा मोर्चा भले न बन पाया हो पर कई क्षेत्रीय दलों के बीच गैर-बीजेपीवाद के समानांतर गैर कांग्रेसवाद का अजेंडा भी फल-फूल रहा है। पिछले कुछ समय में कई क्षेत्रीय नेताओं ने जिस तरह के स्टैंड लिए हैं, उससे उनके बीच बिना किसी मोर्चे के भी ऐसी समझदारी का अंदाजा मिल रहा है। अभी तीन-चार महीने पहले कुछ क्षत्रपों की सक्रियता से लगने लगा था कि एक गैर बीजेपी और गैर कांग्रेसी फ्रंट आकार ले सकता है। लेकिन फिर एक संभावना यह भी दिखी कि ये दल बीजेपी को कहीं ज्यादा बड़ी चुनौती मानकर कांग्रेस के नेतृत्व में एकजुट हो सकते हैं, जिससे एक राष्ट्रीय स्तर का महागठबंधन आकार ले सकता है। कर्नाटक में कांग्रेस के समर्थन से बनी एचडी कुमारस्वामी की सरकार के शपथ ग्रहण समारोह में विपक्ष की व्यापक मौजूदगी और नेताओं की आपसी केमिस्ट्री को देखते हुए यह उम्मीद बंधी थी। लेकिन जब उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी ने कांग्रेस को दरकिनार कर आपस में गठबंधन कर लिया तो इस संभावना को गहरा धक्का लगा।
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उसके बाद तृणमूल, आम आदमी पार्टी और वामपंथी दलों के नजरिये से भी अंदाजा मिला कि कुछ पार्टियां कांग्रेस को ज्यादा तवज्जो देने के मूड में नहीं हैं। कांग्रेस का जम्मू-कश्मीर में नैशनल कॉन्फ्रेंस, कर्नाटक में जेडीएस, तमिलनाडु में डीएमके, महाराष्ट्र में एनसीपी, झारखंड में जेएमएम और जेवीएम तथा बिहार में आरजेडी और अन्य क्षेत्रीय पार्टियों के साथ गठबंधन जरूर हुआ लेकिन बहुत सारे क्षेत्रीय दलों से उसका कोई तालमेल नहीं हो सका। ये दल अपने सघन प्रभाव वाले राज्यों के अलावा कई अन्य राज्यों में भी कांग्रेस के लिए मुसीबतें खड़ी कर रहे हैं। जैसे समाजवादी पार्टी और बीएसपी महाराष्ट्र जैसे एक-दो राज्यों में मिलकर और कुछ अन्य राज्यों में अकेले या दूसरे दलों से मिलकर चुनाव लड़ रही हैं। वहां ये सीटें भले न जीत पाएं लेकिन कांग्रेस को कुछ न कुछ नुकसान तो पहुंचाएंगी ही। और मामला सिर्फ सीटों के तालमेल तक सीमित नहीं है। ये पार्टियां कांग्रेस पर वैचारिक हमले भी कर रही हैं। मायावती लगातार कांग्रेस के खिलाफ बोल रही हैं और उन्होंने राहुल गांधी की न्यूनतम आय गारंटी योजना का मजाक उड़ाया। एक तरफ ये दल बीजेपी को देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बताते हैं, दूसरी तरफ कांग्रेस को यथासंभव दबाकर रखने की कोशिश भी करते हैं।

दरअसल, उनका ध्यान बाकी सारी चीजों को छोड़कर केवल अपने भविष्य पर केंद्रित है, जिसके लिए कांग्रेस का पुनर्जीवन कोई अच्छा लक्षण नहीं है। उन्हें लगता है कि बीजेपी को हराने के नाम पर बड़ी एकजुटता बनाकर आम चुनाव भले ही जीत लिए जाएं, लेकिन इससे ताकत पाकर कांग्रेस कहीं उनकी जमीन ही न छीन ले। इतना ही नहीं, कुछ दल इस रणनीति पर भी चल रहे हैं कि चुनाव बाद बीजेपी बहुमत से दूर रही तो उससे सौदेबाजी का रास्ता अपनी तरफ से बंद नहीं किया जाना चाहिए।

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