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कश्मीर में गृह मंत्री

गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने घाटी के घावों पर मरहम लगाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि वह खुले मन से कश्मीर आए हैं और सभी पक्षों से बात करना चाहते हैं। राज्य में शांति बहाली के लिए अगर जरूरत हुई तो वह 50 बार कश्मीर आएंगे।

नवभारत टाइम्स 13 Sep 2017, 2:10 am
गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने घाटी के घावों पर मरहम लगाने की कोशिश की है। उन्होंने कहा कि वह खुले मन से कश्मीर आए हैं और सभी पक्षों से बात करना चाहते हैं। राज्य में शांति बहाली के लिए अगर जरूरत हुई तो वह 50 बार कश्मीर आएंगे। वह सभी कश्मीरियों को मुस्कुराता हुआ देखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि अगर किसी नाबालिग ने कोई अपराध किया है तो उसे जूवनाइल जस्टिस बोर्ड के तहत सजा दी जानी चाहिए। उसे जेल में नहीं डाला जा सकता है।
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अनुच्छेद 35 ए पर उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार कश्मीरी जनता की भावना और इच्छा के विरुद्ध कुछ भी नहीं करेगी। राजनाथ सिंह ने कश्मीर समस्या के समाधान के लिए पांच ‘सी’ का फार्मूला दिया- कम्पैशन (सहानुभूति), कम्यूनिकेशन (संवाद), को-एग्जिस्टेंस (सहअस्तित्व), कॉन्फिडेंस बिल्डिंग (विश्वास निर्माण) और कंसिस्टैंसी (स्थिरता)। संभव है, कश्मीर का एक बड़ा तबका राजनाथ सिंह की बातों को संशय से देख रहा हो और उन्हें महज जुमलेबाजी मान रहा हो। वैसे भी अब तक कश्मीर को लेकर न सिर्फ केंद्र सरकार ने बल्कि सत्तारूढ़ बीजेपी ने भी ज्यादा बातें नारों में ही की हैं। सच तो यह है कि कश्मीर घाटी पिछले एक-डेढ़ वर्षों में अपने सबसे बुरे दौर से गुजरी है।

हिज्बुल मुजाहिदीन के कमांडर बुरहान वानी की हत्या के बाद पैदा हुए माहौल का पाकिस्तान ने भरपूर फायदा उठाया और राज्य में उग्रवाद को हवा दी। इससे निपटने के लिए की गई कार्रवाई के दौरान आम कश्मीरियों को और ज्यादा तकलीफें उठानी पड़ीं। ऐसे में इसे अनिच्छा कहें या वक्त का तकाजा, लेकिन केंद्र सरकार की तरफ से संवाद की कोई गंभीर कोशिश नहीं हो सकी। नतीजा यह हुआ कि अविश्वास और गलतफहमी बढ़ती ही गई।

केंद्रीय नेता बड़ी-बड़ी बातें करते रहे, लेकिन जमीनी हालात से उनका कोई वास्ता नहीं था। केंद्र के रुख से लगा कि कश्मीर समस्या का हल सिर्फ ताकत के इस्तेमाल से ही हो सकता है। एक तरफ रिटायर्ड फौजी अफसर रणनीति बनाते रहे, दूसरी तरफ संघ के नेता। फौजी अफसरों ने सैन्य उपायों को ही अंतिम रास्ता मान लिया तो आरएसएस वालों ने छोटी से छोटी बात के लिए भी राष्ट्रवाद की कसौटी पेश की। नतीजा यह हुआ कि देश के विभिन्न हिस्सों में कश्मीरियों पर हमले हुए। लोगों ने उन्हें संदिग्ध बना दिया। फिर यह प्रचारित किया गया कि केंद्र सरकार अनुच्छेद 35-ए को हटाने पर विचार कर रही है। इसने कश्मीर के साधारण लोगों के अलावा वहां के राजनेताओं को भी सकते में डाल दिया।

इसके विरोध में बीजेपी को छोड़कर तमाम सियासी दल एकजुट हो गए। मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती तक इस मसले पर विपक्षी नैशनल कॉन्फ्रेंस के नेता फारूक अब्दुल्ला से बात करने उनके घर गईं। बहरहाल, अब पुराने दिनों को भूलकर एक नई शुरुआत की जरूरत है। गृह मंत्री ने शब्दों में जो कहा है, उसे नीति का रूप देने की जरूरत है। जिन पांच सी की बात कही गई है, उसे जमीन पर उतारने का काम तुरंत शुरू हो जाना चाहिए।

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