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चीन से टकराव: अपने हित बचाए जाएं

सीमा पर विवाद के बाद भारत सरकार ने टिकटॉक समेत 59 चीनी मोबाइल ऐप्स को बैन करने का फैसला किया है। यह फैसला कितना प्रभावी साबित होगा इसका एक मूल्यांकन

नवभारत टाइम्स 2 Jul 2020, 10:06 am
सरकार ने टिक टॉक समेत 59 चीनी मोबाइल ऐप्स को बैन करने का फैसला आधिकारिक तौर पर देश की संप्रभुता और सुरक्षा संबंधी जरूरतों को ध्यान में रखते हुए लिया है, फिर भी दुनिया जानती है कि यह चीन के खिलाफ की गई एक ठोस जवाबी कार्रवाई है। दो हफ्ते पहले सीमा पर हुई हिंसक झड़प में बीस जवानों की शहादत के बाद भारत सरकार चीन के खिलाफ कोई कड़ा कदम उठाने का दबाव महसूस कर रही थी।
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भारत-चीन विवाद


कूटनीतिक मोर्चे पर तत्काल किसी बड़े कदम की गुंजाइश नहीं है और सैन्य कार्रवाई जितनी टाली जा सके उतना अच्छा। ऐसे में मोबाइल ऐप्स को प्रतिबंधित करके जहां देश में जनमत के उबाल को ठंडा करने की कोशिश की गई है, वहीं चीन को यह संदेश भी दे दिया गया है कि दोनों देशों के रिश्ते बिगड़ना उसके लिए खासा नुकसानदेह हो सकता है।

लद्दाख के चर्चित आविष्कारक सोनम वांग्चुक के सुझावों के अनुरूप ही ऐप्स पर बैन लगाने का यह फैसला देशवासियों के जीवन या उनकी जरूरतों के किसी अनिवार्य पक्ष से नहीं जुड़ा है। टिकटॉक न देखना या कोई और चीनी ऐप इस्तेमाल न करना भारत में किसी के लिए भी जीवन-मृत्यु का सवाल नहीं है। लेकिन भारत जैसे विशाल बाजार से हाथ धो बैठना संबंधित चीनी कंपनियों के लिए बहुत बड़ा नुकसान है। दिक्कत इसके साथ सिर्फ एक है कि युद्ध की तरह व्यापार में भी घटनाओं की गति को नियंत्रित करना एक तो क्या, दोनों पक्षों के बूते से बाहर होता है। कितने भी सोच-विचार के बाद फैसला करें, पर यह आपके हाथ में नहीं होता कि अगला उस पर कैसे रिएक्ट करेगा।

गलवान घाटी की घटना के बाद भारत सरकार की तरफ से यह पहला ही फैसला है जिसे उसकी ठोस प्रतिक्रिया कहा जा सकता है। इसके बावजूद बाजार में हर तरह के चीनी माल की बिक्री बुरी तरह प्रभावित हुई है। चीनी उत्पादों के बहिष्कार की अपीलों के बीच इन चीजों का कारोबार करने वाले लोग दबाव में हैं। दोनों तरफ बंदरगाहों पर माल पड़ा है जिसे उठाया नहीं जा रहा है। इनमें से ज्यादातर का भुगतान भी हो चुका है। उनके बर्बाद होने या अनबिका रह जाने का सीधा नुकसान भारतीय कारोबारियों के सिर आएगा। अभी हफ्ता-दस दिन पहले सरकार द्वारा इंडस्ट्री से यह जानकारी मांगने की खबर आई थी कि चीन से आने वाले माल पर हमारी किस क्षेत्र में कैसी और कितनी निर्भरता है। यह जवाब रातोंरात तो नहीं मिलने वाला।

पिछले दस-पंद्रह वर्षों से चीन लगातार हमारा एक या दो नंबर का बिजनेस पार्टनर है। वहां से आने वाले बहुतेरे मध्यवर्ती सामान हमारे कई उद्योगों को अंतरराष्ट्रीय बाजारों में टिकने लायक बनाते हैं। हमें देखना होगा कि अभी की क्रिया-प्रतिक्रिया इन उद्योगों के लिए घातक न सिद्ध हो। कोविड-19 और लॉकडाउन ने पहले ही हमारी अर्थव्यवस्था की कमर तोड़ रखी है। सरकार को सुनिश्चित करना चाहिए कि चीन से व्यापारिक टकराव हमारे उद्योग जगत के लिए तीसरा धक्का न साबित हो।

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