सुप्रीम कोर्ट को पेपरलेस बनाने की एक युक्ति का शुभारंभ करते हुए प्रधानमंत्री ने अपने चिरपरिचित अंदाज में आईटी+आईटी=आईटी का सूत्र प्रस्तुत किया, जिसका अर्थ यह है कि भारत का भविष्य यहां की प्रतिभाओं के सूचना प्रौद्योगिकी से जुड़ने में ही है। लेकिन सच्चाई यह है कि भारत का आईटी सेक्टर अभी अपने समूचे जीवनकाल का सबसे बड़ा संकट झेल रहा है। कॉन्सटेलेशन रिसर्च के सीईओ रे वांग के मुताबिक 2020 आते-आते भारत के आईटी सेक्टर में 20 से 30 प्रतिशत स्टाफ की छंटनी हो चुकी होगी। हम यह सोचकर अपने मन को दिलासा दे सकते हैं कि विशेषज्ञों की भविष्यवाणियां अक्सर सही नहीं निकलतीं और रे वांग की बात सही हो तो भी संकट आने में अभी तीन साल बाकी हैं। लेकिन यह हमारी खामखयाली ही होगी।
हकीकत यह है कि भारत की सभी नामी-गिरामी कंपनियां न सिर्फ पिछले एक साल में अपने यहां होने वाली नई नियुक्तियों में कमी ला चुकी हैं, बल्कि इस साल हजारों प्रशिक्षित कर्मचारियों को अपने पे-रोल से हटाने भी जा रही हैं। भारतीय सॉफ्टवेयर इंजिनियरों की बहुत बड़ी एंप्लॉयर समझी जाने वाली कॉग्निजेंट ने पिछले हफ्ते अपने 1000 वरिष्ठ लोगों को अपनी मर्जी से कंपनी छोड़ देने को कहा है। छंटनी के शिकार ऐसे लोगों की संख्या यहां जल्द ही 6000 पहुंचने वाली है। इन्फोसिस अपने 1000 ऊंचे स्तर के लोगों को कंपनी छोड़ने को कह सकती है, लेकिन इससे पहले इनसे अपने अधीन काम करने वाले उन 10 फीसदी कर्मचारियों की सूची सौंपने को कहा गया है, जिनका कामकाज सबसे कम संतोषजनक है। विप्रो के सीईओ का कहना है कि कंपनी की आमदनी जल्दी बढ़नी नहीं शुरू हुई तो इस साल उसके 10 प्रतिशत कर्मचारियों को काम छोड़ना पड़ेगा।
इतने बड़े पैमाने पर होने जा रही छंटनी की कई वजहें बताई जा रही हैं। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और यूरोप के कई देशों में भारतीय इंजिनियरों को स्थानीय बेरोजगारी का कारण मानकर टार्गेट किया जाना इसकी एक वजह है। दूसरी वजह के कई सिरे हैं, जिनका संबंध इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी के स्वरूप से जुड़ा है। यह बाकी उद्यमों के साथ-साथ अपना भी काम आसान बनाती चलती है। अब से पांच साल पहले जिस काम के लिए 100 सॉफ्टवेयर इंजिनियरों की जरूरत पड़ती थी, वह अभी कहीं 10 तो कहीं सिर्फ एक व्यक्ति ही कर डालता है। हम एक ऐसे जानवर की पूंछ पकड़ कर खुद को सूरमा मान बैठे हैं, जो पलक झपकते कहीं और जा चुका है। समय रहते हमें अपने बौद्धिक श्रम के लिए कुछ और ठीहे तलाशने चाहिए। और जो युवा हर हाल में सूचना प्रौद्योगिकी से ही जुड़ने का मन बनाए हुए हैं, उन्हें कोई ऐसा काम सिखाना चाहिए, जिससे अगले 25-30 वर्षों में उन्हें रोजी-रोटी के लाले न पड़ें।
हकीकत यह है कि भारत की सभी नामी-गिरामी कंपनियां न सिर्फ पिछले एक साल में अपने यहां होने वाली नई नियुक्तियों में कमी ला चुकी हैं, बल्कि इस साल हजारों प्रशिक्षित कर्मचारियों को अपने पे-रोल से हटाने भी जा रही हैं। भारतीय सॉफ्टवेयर इंजिनियरों की बहुत बड़ी एंप्लॉयर समझी जाने वाली कॉग्निजेंट ने पिछले हफ्ते अपने 1000 वरिष्ठ लोगों को अपनी मर्जी से कंपनी छोड़ देने को कहा है। छंटनी के शिकार ऐसे लोगों की संख्या यहां जल्द ही 6000 पहुंचने वाली है। इन्फोसिस अपने 1000 ऊंचे स्तर के लोगों को कंपनी छोड़ने को कह सकती है, लेकिन इससे पहले इनसे अपने अधीन काम करने वाले उन 10 फीसदी कर्मचारियों की सूची सौंपने को कहा गया है, जिनका कामकाज सबसे कम संतोषजनक है। विप्रो के सीईओ का कहना है कि कंपनी की आमदनी जल्दी बढ़नी नहीं शुरू हुई तो इस साल उसके 10 प्रतिशत कर्मचारियों को काम छोड़ना पड़ेगा।
इतने बड़े पैमाने पर होने जा रही छंटनी की कई वजहें बताई जा रही हैं। अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर और यूरोप के कई देशों में भारतीय इंजिनियरों को स्थानीय बेरोजगारी का कारण मानकर टार्गेट किया जाना इसकी एक वजह है। दूसरी वजह के कई सिरे हैं, जिनका संबंध इन्फॉर्मेशन टेक्नॉलजी के स्वरूप से जुड़ा है। यह बाकी उद्यमों के साथ-साथ अपना भी काम आसान बनाती चलती है। अब से पांच साल पहले जिस काम के लिए 100 सॉफ्टवेयर इंजिनियरों की जरूरत पड़ती थी, वह अभी कहीं 10 तो कहीं सिर्फ एक व्यक्ति ही कर डालता है। हम एक ऐसे जानवर की पूंछ पकड़ कर खुद को सूरमा मान बैठे हैं, जो पलक झपकते कहीं और जा चुका है। समय रहते हमें अपने बौद्धिक श्रम के लिए कुछ और ठीहे तलाशने चाहिए। और जो युवा हर हाल में सूचना प्रौद्योगिकी से ही जुड़ने का मन बनाए हुए हैं, उन्हें कोई ऐसा काम सिखाना चाहिए, जिससे अगले 25-30 वर्षों में उन्हें रोजी-रोटी के लाले न पड़ें।