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कॉरिडोर और कूटनीति

आतंकवाद को औजार बनाने वाले लोग उंगलियों पर गिने जाने लायक हैं, लेकिन सांस्कृतिक आदान-प्रदान बनाए रखने की सोच वाले लोगों की तादाद करोड़ों में नहीं तो लाखों में जरूर है। करतारपुर साहिब कॉरिडोर इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

नवभारत टाइम्स 29 Nov 2018, 8:46 am
श्री करतारपुर साहिब के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच एक सुरक्षित कॉरिडोर की नींव दोनों तरफ रख दी गई। सोमवार को पंजाब के गुरदासपुर जिले के मान गांव में उपराष्ट्रपति वैंकेया नायडू और सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने इसका शिलान्यास किया, जबकि बुधवार को पाकिस्तान में इसकी बुनियाद प्रधानमंत्री इमरान खान ने रखी। इस अवसर पर भारत से केंद्रीय मंत्री हरदीप पुरी और हरसिमरत कौर के साथ-साथ पंजाब के कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू भी वहां मौजूद थे।
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इस गलियारे के निर्माण को लेकर भारतीय राजनीतिक वर्ग के रवैये से पंजाब के श्रद्धालुओं के साथ-साथ उन लोगों का उत्साह भी थोड़ा फीका पड़ा, जो दोनों मुल्कों के बीच बेहतर रिश्तों के हिमायती हैं। कम से कम इस मौके को कूटनीति से परे रखा जा सकता था। सोमवार को शिलान्यास समारोह में पंजाब के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पाक आर्मी चीफ कमर जावेद बाजवा को भारतीय जवानों की मौत के लिए जवाबदेह ठहराया। उन्होंने कहा कि बाजवा भारतीय जवानों पर हमले करवा कर बुजदिली दिखा रहे हैं। उपराष्ट्रपति ने भी आतंकवाद का मुद्दा उठाया।

विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि कॉरिडोर निर्माण का अर्थ यह नहीं है कि पाकिस्तान के साथ द्विपक्षीय वार्ता शुरू हो जाएगी। ऐसा लगा जैसे भारतीय राजनेता अपने स्तर पर सफाई दो रहे हों कि कॉरिडोर से जोड़कर उनके प्रति कोई धारणा न बनाई जाए। क्या यह देश में चल रहे असेंबली चुनावों का दबाव है? सचाई यह है कि जनता को कोई गलतफहमी नहीं है। पाकिस्तान के रवैये को वह भी देख रही है और यह मानकर चल रही है कि दोनों देशों के रिश्ते सुधारने के लिए यह सही वक्त नहीं है। लेकिन भारत के लोग, खासकर सीमा पर रहने वाले लोग यह भी चाहते हैं कि भारत और पाकिस्तान के बीच जनता के स्तर पर संपर्क जारी रहे। यह भावना दोनों तरफ है।

आतंकवाद को औजार बनाने वाले लोग उंगलियों पर गिने जाने लायक हैं, लेकिन सांस्कृतिक आदान-प्रदान बनाए रखने की सोच वाले लोगों की तादाद करोड़ों में नहीं तो लाखों में जरूर है। करतारपुर साहिब कॉरिडोर इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। इस अवसर पर कड़वाहट भरी बातें इस प्रॉजेक्ट की सफलता को लेकर आशंकाएं पैदा करती हैं।

मुमकिन है, पाकिस्तान ने ब्रिटेन और कनाडा के कुछ सिखों के बीच सिर उठा रहे खालिस्तानी स्वर को भांपकर उसे हवा देने के लिए ही इस कॉरिडोर पर मोहर लगाई हो। पाकिस्तान में कॉरिडोर की नींव रखे जाने के मौके पर खालिस्तान समर्थक गोपाल चावला की मौजदूगी से इस संदेह को बल मिलता है। बावजूद इसके, हमारा संयम ही हमारी शक्ति है। सार्क के लिए पाक आमंत्रण को ठुकराकर भारत ने अपना कूटनीतिक स्टैंड स्पष्ट कर दिया है। लेकिन कॉरिडोर जैसी ‘पीपल टू पीपल’ परियोजनाओं पर हमारा रवैया सकारात्मक ही होना चाहिए।

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