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रीढ़धारियों की नक्शानवीसी

वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने हाल ही एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। पिछले करीब एक दशक से शोधकर्ताओं की टीमें दुनियाभर में फैले रीढ़धारियों के बारे में जानकारी जुटाने में लगी थीं कि कौन से जीव किन इलाकों में रहते हैं या कहां-कहां उनके पाये जाने की संभावना है।

नवभारत टाइम्स 12 Oct 2017, 9:23 am
वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में वैज्ञानिकों ने हाल ही एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। पिछले करीब एक दशक से शोधकर्ताओं की टीमें दुनियाभर में फैले रीढ़धारियों के बारे में जानकारी जुटाने में लगी थीं कि कौन से जीव किन इलाकों में रहते हैं या कहां-कहां उनके पाये जाने की संभावना है। रीढ़धारियों की मुख्यत: चार श्रेणियां मानी जाती हैं- स्तनधारी, पक्षी, उभयचर जीव और रेंगने वाले जीव यानी सरीसृप। इनमें पहली तीन श्रेणियों को लेकर यह काम करीब-करीब पूरा हो चुका था। कमी थी तो सिर्फ रेप्टाइल्स यानी सरीसृप प्राणियों की।
नवभारतटाइम्स.कॉम mapping of creatures with spinal cord
रीढ़धारियों की नक्शानवीसी


ताजा खबर यह है कि तेल अवीव यूनिवर्सिटी के प्रफेसर शई मीरी के नेतृत्व में अध्येताओं की टीम ने यह कठिन कार्य भी पूरा कर लिया है। इस कार्य की विशालता और दुरूहता का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि दुनियाभर के कुल 39 वैज्ञानिकों को लेकर गठित ग्लोबल असेसमेंट ऑफ रेप्टाइल डिस्ट्रिब्यूशन (गार्ड) ग्रुप्स ने छिपकली, सांप, कछुआ और मगरमच्छ जैसे तमाम जंतुओं की 10,064 प्रजातियों के रहने के ठिकानों का पता लगाया। 99 फीसदी सरीसृप प्रजातियां इस मैपिंग में कवर हो गईं। इससे वन्य जंतुओं की नक्शानवीसी का वह ऐतिहासिक कार्य पूर्ण मान लिया गया जिसके डेटाबेस में करीब 10,000 पक्षी, 6000 उभयचर प्रजातियां और 5000 स्तनधारी पहले से मौजूद हैं। यानी कहा जा सकता है कि कीड़े-मकोड़ों और गहरे समुद्र में रहने वाले जीवों को छोड़कर धरती पर मौजूद तमाम जीव-जातियों के बारे में निर्णायक महत्व की कुछ जानकारियां अब हमारे पास हैं। हमें पता है कि कौन-कौन सी प्रजातियां किस तरह के खतरे झेल रही हैं, किन्हें संरक्षित किए जाने की जरूरत है और किन प्रजातियों को कैसे इलाकों में बसाकर सुरक्षित रखा जा सकता है। मसलन छिपकलियों की बात करें तो सूखे और गर्म इलाके इनके लिए ज्यादा मुफीद पड़ते हैं, लिहाजा इन्हें संरक्षित करने के लिए रेगिस्तानी इलाके ज्यादा सही रहेंगे। लेकिन रेगिस्तानी इलाके आजकल तमाम टकरावों और हथियार परीक्षण के केंद्र भी बने हुए हैं। यानी यह मैप पृथ्वी को जीव मात्र के लिए ज्यादा सुरक्षित बनाने में तभी सहायक हो सकता है, जब दुनिया पर अपना दबदबा कायम करने की जिद पूरी करने में जुटी शक्तियां मानवीय विवेक का अंकुश मानने को तैयार हों।

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