74वें गोल्डन ग्लोब पुरस्कार समारोह में लाइफटाइम अचीवमेंट के लिए सेसिल अवॉर्ड से सम्मानित होने के बाद हॉलिवुड अभिनेत्री मेरिल स्ट्रीप ने नवनिर्वाचित अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप का नाम लिए बगैर लोकतंत्र के लिए जो चिंताएं व्यक्त कीं, वे सिर्फ उन्हीं तक सीमित नहीं हैं। पांच मिनट के अपने भाषण के दौरान मेरिल ने कहा कि हिंसा से हिंसा पनपती है और तिरस्कार से और ज्यादा तिरस्कार जन्म लेता है। जब सबसे ताकतवर इंसान दूसरों पर दबंगई करता है, तो हम सब कहीं न कहीं कुछ खो देते हैं और वर्चस्व की इस सोच को समाज में काफी नीचे तक मान्यता मिलती चली जाती है।
मेरिल के इस बयान की प्रतिक्रिया में ट्रंप ने लोकतंत्र की इन गंभीर चिंताओं को अपने चिर-परिचित अंदाज में तीन ट्वीट्स के जरिये हवा में उड़ा दिया, लेकिन जिन लोकतांत्रिक मूल्यों को दुनिया ने जंगल के कानून से लड़कर सैकड़ों वर्षों में हासिल किया है, उनका प्रतिरोध इतनी जल्दी समाप्त नहीं होने वाला। ट्रंप ने मेरिल को अपने विरोधी राजनीतिक खेमे से जुड़ी एक औसत अभिनेत्री बताने की कोशिश की, लेकिन यह तो उनकी कही हुई बातों का जवाब नहीं हुआ। यह सच है कि आज अमेरिका में ही नहीं, दुनिया के कई देशों में ट्रंप शैली की राजनीति सत्ता संभालने की स्थिति में पहुंच चुकी है। यह सिर्फ एक पार्टी को हरा कर दूसरी पार्टी का सरकार बनाना नहीं है।
राजनीति की इस खास शैली में कई स्थापित लोकतांत्रिक मूल्यों को दरेरा देने की प्रवृत्ति मौजूद है। ध्यान रहे, कमजोर तबकों को साथ लेकर चलने, अल्पमत को भी आदर देने, बातचीत के जरिये हर समस्या का समाधान खोजने जैसी बुनियादी लोकतांत्रिक धारणाएं न तो चुनावों से निकली हैं, न ही इनमें की जाने वाली तोड़फोड़ की मरम्मत चुनावी नतीजों के जरिये की जा सकती है।
हिटलर भी चुनाव लड़कर ही सत्ता में आया था, लेकिन नस्ली घृणा पर आधारित उसकी विचारधारा से मुक्ति पाने के लिए दुनिया को करोड़ों इंसानी जानों की कीमत अदा करनी पड़ी थी। आज के दौर में भी वर्चस्व और घृणा के सहारे अपना सिक्का जमाने की कोशिश में जुटे शासकों को सोचना चाहिए कि समाज के वर्चस्वशाली तबकों को खुश करने की कोशिश में वे कहीं जानवर से इंसान बनने की ऐतिहासिक धारा के खिलाफ तो नहीं जा रहे हैं।
मेरिल के इस बयान की प्रतिक्रिया में ट्रंप ने लोकतंत्र की इन गंभीर चिंताओं को अपने चिर-परिचित अंदाज में तीन ट्वीट्स के जरिये हवा में उड़ा दिया, लेकिन जिन लोकतांत्रिक मूल्यों को दुनिया ने जंगल के कानून से लड़कर सैकड़ों वर्षों में हासिल किया है, उनका प्रतिरोध इतनी जल्दी समाप्त नहीं होने वाला। ट्रंप ने मेरिल को अपने विरोधी राजनीतिक खेमे से जुड़ी एक औसत अभिनेत्री बताने की कोशिश की, लेकिन यह तो उनकी कही हुई बातों का जवाब नहीं हुआ। यह सच है कि आज अमेरिका में ही नहीं, दुनिया के कई देशों में ट्रंप शैली की राजनीति सत्ता संभालने की स्थिति में पहुंच चुकी है। यह सिर्फ एक पार्टी को हरा कर दूसरी पार्टी का सरकार बनाना नहीं है।
राजनीति की इस खास शैली में कई स्थापित लोकतांत्रिक मूल्यों को दरेरा देने की प्रवृत्ति मौजूद है। ध्यान रहे, कमजोर तबकों को साथ लेकर चलने, अल्पमत को भी आदर देने, बातचीत के जरिये हर समस्या का समाधान खोजने जैसी बुनियादी लोकतांत्रिक धारणाएं न तो चुनावों से निकली हैं, न ही इनमें की जाने वाली तोड़फोड़ की मरम्मत चुनावी नतीजों के जरिये की जा सकती है।
हिटलर भी चुनाव लड़कर ही सत्ता में आया था, लेकिन नस्ली घृणा पर आधारित उसकी विचारधारा से मुक्ति पाने के लिए दुनिया को करोड़ों इंसानी जानों की कीमत अदा करनी पड़ी थी। आज के दौर में भी वर्चस्व और घृणा के सहारे अपना सिक्का जमाने की कोशिश में जुटे शासकों को सोचना चाहिए कि समाज के वर्चस्वशाली तबकों को खुश करने की कोशिश में वे कहीं जानवर से इंसान बनने की ऐतिहासिक धारा के खिलाफ तो नहीं जा रहे हैं।