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गोद लेना कुछ आसान

अनाथ बच्चों को गोद लेने के मामले पिछले सात सालों में घटकर आधे रह गए हैं तो यह यूं ही नहीं है। भारत में बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया बड़ी टेढ़ी है। आवेदन, चेकिंग, पुलिस वेरिफिकेशन, जिला और राज्य कमेटियों की संस्तुति के बाद काफी लोग अदालती कार्रवाई पूरी होने से पहले हार मान लेते हैं।

नवभारत टाइम्स 2 Jul 2018, 9:01 am
अनाथ बच्चों को गोद लेने के मामले पिछले सात सालों में घटकर आधे रह गए हैं तो यह यूं ही नहीं है। भारत में बच्चों को गोद लेने की प्रक्रिया बड़ी टेढ़ी है। आवेदन, चेकिंग, पुलिस वेरिफिकेशन, जिला और राज्य कमेटियों की संस्तुति के बाद काफी लोग अदालती कार्रवाई पूरी होने से पहले हार मान लेते हैं। 2014 में अमेरिकी गृह मंत्रालय के एक अध्ययन में बताया गया था कि भारत में एक बच्चा गोद लेने में औसतन 732 दिन (दो साल दो दिन) लगते हैं। नियम यह है कि अदालतें ऐसे मामले दो महीने में निपटा देंगी, लेकिन इतने समय में तो अपने यहां एक तारीख भी नहीं मिलती।
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अभी केंद्रीय महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने कोर्ट की जगह जिलाधिकारी (डीएम) को फाइनल अथॉरिटी बनाने का प्रस्ताव कैबिनेट को भेजा है। इससे कोर्ट में हो रही देरी से तो तुरंत निजात मिल जाएगी। उम्मीद की जा सकती है कि इस कदम से कई बच्चों के सिर पर साया हो जाएगा और कई निस्संतान दंपतियों की सूनी गोद हरी होगी। लेकिन अभी भी इस प्रक्रिया में जितने पेंच हैं, सिर्फ कचहरी का चक्कर हटा देने भर से लगता नहीं कि देशभर में मौजूद तीन करोड़ से भी अधिक अनाथ बच्चों को कोई ठोस राहत मिल सकेगी। मंत्रालय के आंकड़े इस तस्वीर का धुंधला खाका ही पेश करते हैं। जैसे, पिछले साल देश में 15,200 अभिभावकों ने गोद लेने के लिए अपना रजिस्ट्रेशन कराया था, लेकिन सरकार के पास गोद देने के लिए कुल मिलाकर 1766 बच्चे ही थे। वर्ष 2016 में तो यह सूची सिमटकर 1700 पर आ गई थी।

इसका सीधा मतलब यह हुआ कि बिन मां-बाप के ज्यादातर बच्चे सड़क पर रह रहे हैं। जटिलताओं की बात करें तो बच्चा गोद लेने के लिए आवेदन करने के बाद नंबर आने में ही खासा वक्त लग जाता है। प्रक्रिया पूरी होने तक बच्चे बड़े हो जाते हैं तो उन्हें घर लाने की इच्छा ही कम हो जाती है। जाहिर है, इसे सरल बनाना जरूरी है, लेकिन बच्चों की तस्करी के बढ़ते मामलों को देखते हुए सरलता की भी एक हद होगी। सरकार ने एक कदम सही दिशा में बढ़ाया है, लेकिन बात तभी बनेगी, जब बच्चों के प्रति समाज का नजरिया बदलेगा।

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