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खरीदारों का मोर्चा

कच्चे तेल की कीमतों में ओपेक की हमलावर पॉलिसी से निपटने के लिए भारत ने एक बड़ी पहल की है। अगर यह कोशिश कामयाब रही तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे।

नवभारत टाइम्स 15 Jun 2018, 8:13 am
कच्चे तेल की कीमतों में ओपेक की हमलावर पॉलिसी से निपटने के लिए भारत ने एक बड़ी पहल की है। अगर यह कोशिश कामयाब रही तो इसके दूरगामी परिणाम होंगे। भारत तेल खरीदने वाले देशों का एक क्लब बनाना चाहता है ताकि तेल विक्रेताओं के साथ बेहतर शर्तों पर मोलभाव किया जा सके और ऑइल ब्लॉक में ओपेक देशों का दबदबा कम करने के लिए ज्यादा क्रूड ऑइल रूस और अमेरिका से मंगाया जा सके।
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इस संभावना को लेकर दुनिया के सबसे बड़े तेल आयातक देश चीन के साथ भारत की बातचीत जारी है और प्रस्तावित क्लब में जापान और दक्षिण कोरिया को भी शामिल करने की योजना है। पिछले कुछ वर्षों में तेल बिक्री का सबसे बड़ा बाजार एशिया ही है, लिहाजा भारत और चीन का यह मानना वाजिब है कि तेल की कीमतें तय करने में उनके हितों का भी ध्यान रखा जाना चाहिए। आखिर ओपेक कब तक तेल की कीमतें मनमाने तरीके से बढ़ाकर दुनिया को संकट में डालता रहेगा? बड़े एशियाई खरीदार मिल जाएं तो तेल कीमतों से जुड़ी अनिश्चितता खत्म की जा सकती है। ध्यान रहे, दुनिया की कुल तेल खपत में भारत और चीन का साझा दखल लगभग 17 फीसदी का है। अपनी इसी हैसियत को ध्यान में रखकर दोनों देश तेल बाजार को लेकर कुछ बड़े कदम उठाना चाहते हैं।

पेट्रोलियम मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने अप्रैल में अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा मंच (आईईएफ) की बैठक में यह विचार रखा था। इसी के तहत इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन के चेयरमैन संजीव सिंह ने चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉर्प (सीएनपीसी) के चेयरमैन वांग यिलिन से चर्चा के लिए पेइचिंग का दौरा किया। हालांकि इस तरह का आइडिया पहले भी दिया जा चुका है। 2005 में तत्कालीन पेट्रोलियम मंत्री मणिशंकर अय्यर ने तेल उपभोक्ता मुल्कों का एक समूह बनाने का प्रस्ताव रखा था। लगातार बढ़ती खपत के बावजूद भारत अभी तक ओपेक से अच्छी कीमतों के लिए मोलभाव करने में सक्षम नहीं हो पाया है। सऊदी अरब जैसे बड़े ऑइल प्रड्यूसर्स भारत और जापान से ‘एशियाई प्रीमियम’ वसूलते हैं और इस प्रीमियम के तौर पर इन्हें सालाना 5 से 10 अरब डॉलर चुकाने पड़ते हैं।

अगर भारत-चीन और अन्य एशियाई देश आपस में तालमेल कर लें तो इस शोषण से मुक्ति मिल सकती है। ओपेक देशों द्वारा उत्पादन में कटौती से पिछले महीने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल की कीमतें चार साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई थीं, जिससे हमारे देश में पेट्रोल की कीमत 3.80 रुपये प्रति लीटर और डीजल की 3.38 रुपये प्रति लीटर बढ़ानी पड़ी थी। हालांकि जून में क्रूड की कीमतों में कुछ नरमी आई और रिटेल कीमतें भी थोड़ी कम हुईं। देखना है, भारत की यह कोशिश तेल बाजार में कितनी हलचल पैदा कर पाती है।

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