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पुतिन की नई पारी

रूस में व्लादिमीर पुतिन ने बतौर राष्ट्रपति अपनी चौथी पारी शुरू कर दी है। वह 1999 से लगातार सत्ता में हैं और जोसेफ स्टालिन के बाद सबसे ज्यादा लंबे समय तक सत्ता में बने रहने का रेकॉर्ड बना चुके हैं

नवभारत टाइम्स 9 May 2018, 9:44 am
रूस में व्लादिमीर पुतिन ने बतौर राष्ट्रपति अपनी चौथी पारी शुरू कर दी है। वह 1999 से लगातार सत्ता में हैं और जोसेफ स्टालिन के बाद सबसे ज्यादा लंबे समय तक सत्ता में बने रहने का रेकॉर्ड बना चुके हैं। उनका छह साल का यह नया कार्यकाल ऐसे समय शुरू हो रहा है जब न सिर्फ विदेश नीति बल्कि अर्थव्यवस्था के मोर्चे पर भी कठिन चुनौतियां उनका इंतजार कर रही हैं। वैसे शपथ ग्रहण से पहले ही उनके लिए थोड़ी असुविधाजनक स्थिति यह बनी कि देश के अलग-अलग हिस्सों में प्रदर्शन हुए जिनमें प्रदर्शनकारी ‘नॉट माइ जार’ की तख्ती लिए हुए थे। मगर, चुनाव हो चुके हैं, नतीजे आ चुके हैं और पुतिन बाकायदा शपथ लेकर अपना नया कार्यकाल शुरू कर चुके हैं। लिहाजा, ये छिटपुट विरोध प्रदर्शन खास मायने नहीं रखते। हां, पुतिन के लिए यह चुनौती जरूर रहेगी कि इन असंतुष्ट तत्वों को व्यापक जन असंतोष का साथ न मिल जाए। इसके लिए उन्हें आर्थिक मोर्चे पर विशेष ध्यान देना होगा।
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शपथ ग्रहण के ठीक बाद अपने भाषण में इस मसले का जिक्र करके उन्होंने बता दिया है कि यह मोर्चा उनके ध्यान में है और वह इसे अपनी प्राथमिकता में रखे हुए हैं। उन्होंने कहा कि अपने इस कार्यकाल का इस्तेमाल वे यह सुनिश्चित करने में करेंगे कि रूसियों का जीवन स्तर ऊपर उठे। इस मामले में उनके प्रदर्शन पर विरोधियों की खास नजर बनी रहेगी और आगे का घटनाक्रम काफी हद तक इसी बात पर निर्भर करेगा कि आम रूसी आबादी उनके प्रयासों से किस हद तक संतुष्ट रहती है। मगर बाकी पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़ा सवाल यह है कि पुतिन अपने इस कार्यकाल के दौरान अंतरराष्ट्रीय शांति और रूसी अहं के बीच कैसे संतुलन बना पाते हैं। इस लिहाज से उनका तीसरा कार्यकाल बड़ा उथल-पुथल वाला साबित हुआ था। इस दौरान रूस ने क्रीमिया को अपने कब्जे में ले लिया और सीरिया में राष्ट्रपति असद के समर्थन में लगातार डटा रहा। इन दोनों कदमों ने यूरोप और अमेरिका से उसके संबंधों को तनावपूर्ण बनाए रखा। हाल के दिनों में ब्रिटेन में एक पूर्व रूसी जासूस को जहर दिए जाने और अमेरिकी चुनावों को अवैध तौर पर प्रभावित करने संबंधी आरोपों ने संबंधों में खटास काफी बढ़ा दी है। ऐसे में क्रेमलिन को अपने कदम फूंक-फूंक कर रखने होंगे। मगर पुतिन की कार्यशैली से परिचित लोगों का मानना है कि किसी भी मोर्चे पर झुकते हुए दिखना उनकी नजर में कमजोरी की निशानी होती है और निश्चित रूप से अपने इस कार्यकाल में वह कमजोर नहीं दिखना चाहेंगे। अगर संविधान के साथ अतिरिक्त छेड़छाड़ नहीं हुई तो यह उनका आखिरी कार्यकाल है। ऐसे में यह देखने वाली बात होगी कि वह घरेलू और अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर अपनी अकड़ बनाए रखते हुए भी तनाव को काबू में रखने का कौशल किस हद तक साध पाते हैं।

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