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महंगाई या अमेरिकी फेड रिजर्व... लगातार तीसरी बार बढ़ी रेपो रेट की दरें, RBI के फैसले की वजह जान लीजिए

रेपो रेट में कमी पिछली बार मार्च 2020 में कोरोना और लॉकडाउन के प्रभावों से निपटने के क्रम में की गई थी। उसके बाद दो साल यह दर स्थिर रखी गई। और फिर जब बढ़ना शुरू हुई तो पिछले ढाई महीने में 1.4 फीसदी बढ़ गई। इसके पीछे महंगाई दर के साथ ही रुपये में आई गिरावट का भी हाथ है।

Edited byएनबीटी डेस्क | नवभारत टाइम्स 6 Aug 2022, 8:26 am
रिजर्व बैंक की मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी (एमपीसी) ने शुक्रवार को लगातार तीसरी बार रेपो रेट में बढ़ोतरी की। 50 बेसिस पॉइंट की इस बढ़ोतरी के बाद रेपो रेट 5.4 फीसदी पर पहुंच गया है। हालांकि यह बढ़ोतरी अप्रत्याशित नहीं कही जा सकती। महंगाई दर रिजर्व बैंक की चिंता का कारण बनी हुई है। रेपो रेट में बढ़ोतरी का यह फैसला एमपीसी ने सर्वसम्मति से किया है। रेपो रेट में कमी पिछली बार मार्च 2020 में कोरोना और लॉकडाउन के प्रभावों से निपटने के क्रम में की गई थी। उसके बाद दो साल यह दर स्थिर रखी गई। और फिर जब बढ़ना शुरू हुई तो पिछले ढाई महीने में 1.4 फीसदी बढ़ गई। इसके पीछे महंगाई दर के साथ ही रुपये में आई गिरावट का भी हाथ है।
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उपभोक्ता मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर जून में 7.01 फीसदी पर थी जबकि खुदरा महंगाई जनवरी से ही रिजर्व बैंक के लिए सुविधाजनक छह फीसदी के स्तर से ऊंची चल रही है। थोक मूल्य सूचकांक पर आधारित महंगाई दर की बात करें तो यह पिछले 15 महीने से दो अंकों में चल रही है। जून में तो यह 15.18 फीसदी पर थी। जाहिर है, रिजर्व बैंक इसे नजरअंदाज नहीं कर सकता। लेकिन जो दूसरा कारक है रुपये के अवमूल्यन का, वह भी कम महत्वपूर्ण नहीं। डॉलर के मुकाबले रुपये में इधर 4.7 फीसदी की गिरावट देखने को मिली है। हालांकि इसका मुख्य कारण भारतीय अर्थव्यवस्था की कमजोरी नहीं बल्कि अमेरिकी सेंट्रल बैंक द्वारा ब्याज दरों में बढ़ोतरी को माना जा रहा है।

पिछले महीने अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने लगातार दूसरी बार ब्याज दरों में 0.75 फीसदी की बढ़ोतरी की। अमेरिकी ब्याज दरों में हुई तीव्र बढ़ोतरी का सीधा प्रभाव भारत जैसे इमर्जिंग मार्केट्स पर पड़ता है। ऐसी सूरत में इन देशों से निवेशक पैसा निकालकर डॉलर एसेट्स में लगाते हैं। वित्त वर्ष 2023 में 3 अगस्त तक पोर्टफोलियो निवेश में 13.3 अरब डॉलर का आउटफ्लो दर्ज किया गया था। हालांकि इस तरह के प्रभाव भारत तक सीमित नहीं हैं। अन्य देशों पर भी मिलते-जुलते असर देखे गए हैं। उदाहरण के लिए बैंक ऑफ इंग्लैंड को भी ब्याज दरों में 50 बेसिस पॉइंट की बढ़ोतरी करनी पड़ी है, जो वहां पिछले 27 साल की सबसे बड़ी बढ़ोतरी है। यह जरूर ध्यान में रखना चाहिए कि भारत के लिए हालात चुनौतीपूर्ण भले हों, चिंतानजक नहीं हैं। उसके फंडामेंटल्स मजबूत हैं।

विदेशी मुद्रा भंडार के लिहाज से यह अभी भी दुनिया का चौथा सबसे बड़ा देश बना हुआ है। मगर फिर भी अमेरिकी फेडरल रिजर्व द्वारा ब्याज में बढ़ोतरी के असर को अनदेखा नहीं किया जा सकता। रिजर्व बैंक द्वारा रेपो रेट में की गई बढ़ोतरी से उन प्रभावों से निपटने में आसानी होगी। मगर इसके साथ ही अर्थव्यवस्था की सेहत पर ध्यान देना भी जरूरी है। किसी भी स्थिति में रोजगार के मौके पैदा करने और डिमांड को मजबूती देने की जरूरत को ज्यादा समय तक नहीं टाले रखा जा सकता।
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एनबीटी डेस्क
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