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रैगिंग की वापसी

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित विशेषज्ञों की एक समिति के ताजा अध्ययन ने शिक्षा संस्थानों में रैगिंग की स्थिति को लेकर चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए, जब अलग-अलग शहरों में स्थित शिक्षा संस्थानों में रैगिंग के दौरान उत्पीड़न तथा मौत की खबरों ने पूरे देश को झकझोर डाला था।

नवभारत टाइम्स 16 Aug 2017, 9:28 am
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर गठित विशेषज्ञों की एक समिति के ताजा अध्ययन ने शिक्षा संस्थानों में रैगिंग की स्थिति को लेकर चौंकाने वाले खुलासे किए हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए, जब अलग-अलग शहरों में स्थित शिक्षा संस्थानों में रैगिंग के दौरान उत्पीड़न तथा मौत की खबरों ने पूरे देश को झकझोर डाला था। इसके बाद न केवल रैगिंग संबंधी कानून कड़े किए गए बल्कि इसे रोकने के प्रभावी उपायों को संस्थागत स्वरूप देने के प्रयास भी हुए थे। इन उपायों से रैगिंग में कमी दर्ज की गई और धीरे-धीरे माना जाने लगा कि हमने इस जानलेवा बुराई को काबू में कर लिया है। मगर यूजीसी की ओर से जारी एक्सपर्ट कमिटी की यह रिपोर्ट बताती है कि न केवल देश के विभिन्न हिस्सों में आज भी यह बदस्तूर जारी है, बल्कि इसे अहानिकर बताकर इसका बचाव भी किया जा रहा है।
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रैगिंग की वापसी


जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) और नैशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ ऐंड न्यूरोसाइंसेज (निमहांस) के विशेषज्ञों वाली इस समिति ने देशभर के 37 कॉलेजों के 10,632 स्टूडेंट्स से बातचीत के आधार पर दी गई अपनी रिपोर्ट में बताया है कि 84 फीसदी विद्यार्थी रैगिंग से गुजरने के बावजूद इसकी शिकायत नहीं करते। इनमें से बड़ी संख्या ऐसे स्टूडेंट्स की है जो इसे गलत भी नहीं मानते। 62 फीसदी का कहना था कि जिन सीनियर्स ने उन्हें रैग किया, आगे चलकर उनके साथ इनके रिश्ते अच्छे हो गए और उन्होंने पढ़ाई में इनकी मदद भी की। हालांकि सारे मामले हल्की रैगिंग के ही नहीं थे। सीनियर्स को ‘सर’ या ‘मैडम’ के रूप में संबोधित करने के लिए कहने, स्मोकिंग और ड्रिंकिंग के लिए मजबूर करने और शारीरिक, मानसिक तथा यौनिक तौर पर उत्पीड़ित करने के भी उदाहरण मिले।

समिति ने बिल्कुल ठीक राय जाहिर की है कि रैगिंग की बढ़ती स्वीकार्यता एक खतरनाक प्रवृत्ति है। सच पूछें तो रैगिंग को हल्के में लेने या इसे युवाओं को मजबूत बनाने वाली एक प्रक्रिया बताने की प्रवृत्ति उस तबके में होती है, जो रैगिंग करता है या जो इसे रोकने की अपनी जिम्मेदारी से बचना चाहता है। साफ है कि इस मोर्चे पर जो ढिलाई पिछले कुछ समय में आई है, उसने हमारे शिक्षण संस्थानों को कई बरस पीछे धकेल दिया है। जरूरी है कि इस ढिलाई को तत्काल दूर किया जाए।

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