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गर्मियों की आग

देश में गर्मी का मौसम रौद्र रूप धारण...

नवभारत टाइम्स 29 Apr 2016, 1:02 am
देश में गर्मी का मौसम रौद्र रूप धारण कर चुका है। एक तरफ सूखे की समस्या मुंह बाए खड़ी है, पशु-पक्षी ही नहीं इंसान भी देश के कई इलाकों में पानी के लिए मारे-मारे फिर रहे हैं। दूसरी तरफ आग लगने की घटनाएं आश्चर्यजनक रूप से बढ़ गई हैं।
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गर्मियों की आग


गर्मियों में आग लगने की घटनाएं हर साल ज्यादा होती हैं, लेकिन इस बार पिछले रेकॉर्ड जमींदोज होते दिख रहे हैं। पिछले साल दिल्ली में 1 से 24 अप्रैल के बीच आग लगने की शिकायत वाली 1439 फोन कॉल्स अग्निशमन दफ्तरों में आई थीं, जबकि इस साल इसी अवधि में 2552 कॉल्स दर्ज की जा चुकी हैं।

साफ है कि जब देश की राजधानी में यह आलम है तो गांवों की क्या स्थिति होगी, जहां कच्चे या फूस के मकानों में चूल्हे की आग पहला बहाना मिलते ही घर और पास-पड़ोस को लील जाने के लिए तैयार बैठी रहती है। अर्से से पानी की एक भी बूंद से वंचित खेतों में सूखी फसलें और खलिहान में पड़े डंठल भी आग को फैलने लायक हालात मुहैया कराते हैं। बिहार से मिले आंकड़े बताते हैं कि वहां इस साल गर्मियों के दौरान आग में 2000 घर जलकर खाक हो चुके हैं। आग लगने से पिछले दो हफ्ते में वहां 66 लोग मारे गए हैं और 1200 जानवर जान गंवा चुके हैं।

राज्य के अलग-अलग हिस्सों से छिटपुट घटनाओं की खबरें लगातार आ रही हैं। ऐसे में बिहार सरकार ने आदेश जारी किया है कि सुबह नौ बजे से लेकर शाम छह बजे के बीच किसी भी सूरत में, यहां तक कि खाना बनाने के लिए भी आग न जलाई जाए। आदेश का उल्लंघन करने पर दो साल कैद की सजा बताई गई है। पहली नजर में यह बात हास्यास्पद लगती है कि कोई सरकार लोगों के खाना बनाने पर भी बंदिशें खड़ी कर दे।

पुलिस मशीनरी द्वारा इस आदेश के दुरुपयोग की संभावना भी है ही। बावजूद इसके, आम लोगों में आग के इस्तेमाल को लेकर एहतियात पैदा करने के लिए अभी जो कुछ भी किया जा सके, वह सब जायज है। डेढ़ महीने से ज्यादा की गर्मियां अभी बची हैं। इस लंबी अवधि में अग्निकांडों से बचने का एकमात्र कारगर उपाय है- सावधानी, सावधानी, और ज्यादा सावधानी।

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