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यौन शोषण के खिलाफ उठाने होंगे सख्‍त कदम

यौन शोषण एक सामाजिक रोग है, जिससे लड़ने के लिए समाज के हर वर्ग को एकजुट होना होगा। बच्चों को शुरू से ही इस संबंध में जागरूक करना होगा। इसके लिए स्कूलों में न्यूनतम सेक्स शिक्षा भी अनिवार्य करनी होगी।

नवभारत टाइम्स 31 Dec 2018, 8:55 am
बच्चों को यौन शोषण से बचाने के लिए केंद्रीय मंत्रिमंडल ने शुक्रवार को पॉक्सो कानून 2012 (प्रटेक्शन ऑफ चिल्ड्रेन फ्रॉम सेक्शुअल ऑफेन्सेज एक्ट) में संशोधन को मंजूरी दे दी है। पॉक्सो संशोधन विधेयक इसी सत्र में संसद में पेश हो सकता है। इसमें बच्चों के आक्रामक यौन उत्पीड़न पर मौत की सजा का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा बाल यौन उत्पीड़न के अन्य अपराधों के लिए भी सजा सख्त करने का प्रस्ताव है।
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पैसे के बदले यौन शोषण और बच्चे को जल्दी बड़ा यानी वयस्क करने के लिए हार्मोन या रसायन देना भी एग्रीवेटेड सेक्शुअल असॉल्ट माना जाएगा। व्यावसायिक उद्देश्य से बच्चों की पोर्नोग्राफी से संबंधित सामग्री एकत्रित करने पर न्यूनतम तीन साल की सजा का प्रावधान किया जा रहा है, जिससे ये धारा गैर जमानती अपराध की श्रेणी में आ जाएगी। पिछले कुछ समय में बच्चों के यौन उत्पीड़न के कई मामलों ने देश को हिलाकर रख दिया था, इसलिए बच्चों का उत्पीड़न करने वालों को सख्त सजा देने की मांग तेज हो गई थी।

कैलाश सत्यार्थी चिल्ड्रेन्स फाउंडेशन के अनुसार प्रत्येक दिन भारत में 55 बच्चे दुष्कर्म का शिकार हो रहे हैं जबकि हजारों मामले सामने नहीं आ पाते हैं। आज बच्चे न घर में सुरक्षित हैं, न स्कूल में और न ही बाहर। एक अनुमान है कि हर 4 में से एक लड़की और 6 में से एक लड़का 18 वर्ष का होने से पहले यौन हिंसा का शिकार होता है। बच्चों के साथ दुर्व्यवहार करने वाले 90 फीसदी लोग परिवार के या फिर जानकार होते हैं। यही नहीं हर छह मिनट में देश के किसी कोने से एक बच्चा गायब हो जाता है। मुश्किल यह है कि अधिकतर बच्चे अपने साथ हुए दुष्कर्म को समझ ही नहीं पाते और अंदर ही अंदर घुटते रहते हैं। कई बच्चे डर के मारे यह बात किसी को नहीं बताते और परेशान रहते हैं। यह बात सामने आने पर परिवार भी इसे दबाने की कोशिश करता है खासकर ऐसे मामले में जिसमें परिवार का कोई व्यक्ति ही शामिल रहता है। यही वजह है कि अधिकतर दोषी बच निकलते हैं।

बाल यौन दुर्व्यवहार के जो मुकदमे दर्ज भी किए जाते हैं उन्हें निपटाने में वर्षों लग जाते हैं। इसलिए इस मामले में सजा सख्त करने भर से कुछ नहीं होने वाला। कोशिश यह होनी चाहिए कि इन मामलों में सजा दिए जाने की दर बढ़े। समाज में बढ़ती आपसी दूरी भी इसका एक कारण है। पहले मोहल्ले में हर कोई एक-दूसरे को जान रहा होता था। अब यही नहीं पता रहता कि पड़ोस में कौन है। ऐसे में अपराधी का बच निकलना आसान होता है। यह एक सामाजिक रोग है, जिससे लड़ने के लिए समाज के हर वर्ग को एकजुट होना होगा। बच्चों को शुरू से ही इस संबंध में जागरूक करना होगा। इसके लिए स्कूलों में न्यूनतम सेक्स शिक्षा भी अनिवार्य करनी होगी।

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