विकास पाठक, वाराणसी
बीएचयू आईआईटी ने बनारसी साड़ी और भदोही की कालीन के साथ टेक्सटाइल्स इंडस्ट्रीज को सौगात दी है। अब सौ फीसदी नैचुरल डाई से बनी साडि़यां और कारपेट मन को लुभाएंगें। खास बात यह है कि इंडस्ट्रीज से जुड़े लोगों के लिए 'आओ – सीखो और इस्तेमाल में लाओ' की तर्ज पर आईआईटी के दरवाजे खोल दिए गए है।
रंगों से ही जिंदगी में खुशियां आती है और अगर रंग नैचुरल हो तो फिर क्या कहने। इसी सपने को साकार करने में जुटे बीएचयू आईआईटी केमिकल इंजिनियरिंग डिपार्टमेंट ने केमिकल की जगह प्राकृतिक संसाधनों से नेचुरल डाई बनाने का फार्मूला सामने लाया है। इसके लिए जेब ढीली करने या कहीं भटकने की जरूरत नहीं है। बस कुछ दिनों की ट्रेनिंग से कोई भी डाई मास्टर बन सकता और घर – कारखाने में इसे तैयार करना भी आसान है।
केमिकल इंजिनियरिंग के प्रफेसर पी. के. मिश्रा के मुताबिक गुलाब हो या फिर गेंदा या सूरजमुखी के फूल। संतरे से लेकर अनार, प्याज तक के छिलके और यहां तक कि बबूल, यूकेलिप्टस के एक्सट्रैक्ट से हजारों किस्म की नैचुरल डाई तैयार की जा सकती है। इसके प्रयोग से बनारसी साड़ी हो या फिर कालीन नगरी भदोही की कालीन, रंग पहले से ज्यादा चटख होंगे तो हेल्थ – इन्वायरनमेंट के लिए हार्मफुल नहीं होगा। पशमीना वूल पर भी प्रयोग सफल रहा है।
'ग्रीन टैग' पर खरी
प्रो. मिश्र का दावा है कि बाजार में नैचुरल कलर के नाम पर जो कुछ सामने, वह छलावा है। केमिकल बेस से तैयार कथित नैचुरल कलर अपने देश में भले चल जाएं पर विदेशों में होने वाली टेस्टिंग से असिलयत सामने आ जाती है। आईआईटी लैब में पानी से तैयार नेचुरल डाई जर्मनी व अन्य देशों के 'ग्रीन टैग' टेस्टिंग पर खरी उतरने वाली है।
ऐसे तैयार होता है कलर एक्सट्रैक्ट
पेड़ में खिले फूल ही नहीं, पूजा के बाद फेंकी गई फूल-पत्तियां भी नैचुरल डाई तैयार करने में काम आ सकती हैं। सॉक्सलेट, अल्ट्रा सॉनिक व एंजायमेटिक, एक्सट्रैक्टर के जरिए पीएच कंडीशन व रेशियो चेंज कर नैचुरल कलर प्राप्त किए जाते हैं। मार्डेटिंग (पक्का कलर) एजेंट का काम वेस्ट मटीरियल की राख करती है। पूरे प्रॉसेस में केमिकल किसी भी रूप में प्रयोग में नहीं लाया जाता है।
बीएचयू आईआईटी ने बनारसी साड़ी और भदोही की कालीन के साथ टेक्सटाइल्स इंडस्ट्रीज को सौगात दी है। अब सौ फीसदी नैचुरल डाई से बनी साडि़यां और कारपेट मन को लुभाएंगें। खास बात यह है कि इंडस्ट्रीज से जुड़े लोगों के लिए 'आओ – सीखो और इस्तेमाल में लाओ' की तर्ज पर आईआईटी के दरवाजे खोल दिए गए है।
रंगों से ही जिंदगी में खुशियां आती है और अगर रंग नैचुरल हो तो फिर क्या कहने। इसी सपने को साकार करने में जुटे बीएचयू आईआईटी केमिकल इंजिनियरिंग डिपार्टमेंट ने केमिकल की जगह प्राकृतिक संसाधनों से नेचुरल डाई बनाने का फार्मूला सामने लाया है। इसके लिए जेब ढीली करने या कहीं भटकने की जरूरत नहीं है। बस कुछ दिनों की ट्रेनिंग से कोई भी डाई मास्टर बन सकता और घर – कारखाने में इसे तैयार करना भी आसान है।
केमिकल इंजिनियरिंग के प्रफेसर पी. के. मिश्रा के मुताबिक गुलाब हो या फिर गेंदा या सूरजमुखी के फूल। संतरे से लेकर अनार, प्याज तक के छिलके और यहां तक कि बबूल, यूकेलिप्टस के एक्सट्रैक्ट से हजारों किस्म की नैचुरल डाई तैयार की जा सकती है। इसके प्रयोग से बनारसी साड़ी हो या फिर कालीन नगरी भदोही की कालीन, रंग पहले से ज्यादा चटख होंगे तो हेल्थ – इन्वायरनमेंट के लिए हार्मफुल नहीं होगा। पशमीना वूल पर भी प्रयोग सफल रहा है।
'ग्रीन टैग' पर खरी
प्रो. मिश्र का दावा है कि बाजार में नैचुरल कलर के नाम पर जो कुछ सामने, वह छलावा है। केमिकल बेस से तैयार कथित नैचुरल कलर अपने देश में भले चल जाएं पर विदेशों में होने वाली टेस्टिंग से असिलयत सामने आ जाती है। आईआईटी लैब में पानी से तैयार नेचुरल डाई जर्मनी व अन्य देशों के 'ग्रीन टैग' टेस्टिंग पर खरी उतरने वाली है।
ऐसे तैयार होता है कलर एक्सट्रैक्ट
पेड़ में खिले फूल ही नहीं, पूजा के बाद फेंकी गई फूल-पत्तियां भी नैचुरल डाई तैयार करने में काम आ सकती हैं। सॉक्सलेट, अल्ट्रा सॉनिक व एंजायमेटिक, एक्सट्रैक्टर के जरिए पीएच कंडीशन व रेशियो चेंज कर नैचुरल कलर प्राप्त किए जाते हैं। मार्डेटिंग (पक्का कलर) एजेंट का काम वेस्ट मटीरियल की राख करती है। पूरे प्रॉसेस में केमिकल किसी भी रूप में प्रयोग में नहीं लाया जाता है।