ऑटोमैटेड टेलर मशीन (ATM) जिसे लोग अक्सर 'एनी टाइम मशीन' भी कह देते हैं, क्या अपनी उपयोगिता खो रही हैं? कुछ समय पहले तक जिसे बैंकिंग सेक्टर का अहम हिस्सा कहा जा रहा था अब हाशिए पर जा रहा है।
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कम हो रही उपयोगिता
2012 में देश में ATMs की कुल संख्या 1 लाख थी, जो 2015 तक बढ़कर 2 लाख हो गई, लेकिन अब इनकी संख्या में इजाफा बंद हो गया है। पिछले छह महीने में ATMs की संख्या में वृद्धि नहीं दर्ज की गई है। ATMs पर डेबिट कार्ड ट्रांजैक्शन की संख्या औसतन 66 करोड़ प्रति माह तक अटक गई है जोकि नोटंबदी से पहले 75 करोड़ थी।
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कैश का इस्तेमाल कम
प्वाइंट ऑफ सेल (PoS) टर्मिनल्स की संख्या पिछले साल नवंबर में जहां 15 लाख थी वहीं अब 27 लाख टर्मिनल्स की मदद से लोग बिना कैश पेमेंट कर रहे हैं। 2012-13 में मोबाइल बैंकिंग ट्राजैक्शन की संख्या 5.3 करोड़ थी तो 2015-16 में 39 करोड़ ट्रांजैक्शन मोबाइल से हुए। पेटीएम जैसे वॉलेट से ई ट्रांजैक्शन को बढ़ावा मिला है।
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इस तरह मिला था बढ़ावा
ATM की शुरुआत सबसे पहले लंदन में Barclays bank की थी और इंडिया में यह 1987 में पहुंचा। तब विदेशी बैंकों ने भारत में प्रसार के लिए इसका इस्तेमाल शुरू किया। बाद में HDFC, ICICI और Axis जैसे प्राइवेट बैंकों ने कस्टमर्स को लुभाने के लिए ATM को अपनाना शुरू किया बाद में जब सरकारी बैंकों ने देखा कि इसकी वजह से उनके कस्टमर्स प्राइवेट बैंकों की ओर जा रहे हैं तो उन्होंने भी अपने ग्राहकों को ATM की सुविधा दी।
एटीम इंडस्ट्री को नरेंद्र मोदी की सरकार में काफी प्रोत्साहन भी मिला। इस सरकार ने देश के सभी परिवारों का बैंक अकाउंट खोला और उन्हें रुपे डेबिट कार्ड थमाया। 2012-13 में डेबिट कार्ड की कुल संख्या 31 करोड़ थी जो अब 55 करोड़ तक पहुंच चुकी है।