इजरायल में नए रंगरूटों को एक महीने से लेकर एक साल तक की ट्रेनिंग दी जाती है। इस दौरान उनको सख्त प्रशिक्षण के दौर से गुजरना पड़ता है। प्रशिक्षण के दौरान उनको शारीरिक और मानसिक रूप से चुस्त-दुरुस्त बनाया जाता है। तब जाकर वे आईडीएफ के सैनिक बनते हैं। (फोटो साभार: टाइम्स ऑफ इजरायल)
इजरायली सेना में भर्ती होने के बाद रंगरूटों को इंडक्शन सेंटर ले जाया जाता है। ट्रेनिंग की यहीं से शुरुआत हो जाती है। इंडक्शन सेंटर में उनको वर्दी मिलती है। इजरायली सेना के वरिष्ठ अधिकारी उनका इंटरव्यू लेते हैं। रंगरूट अपना फॉर्म भरते हैं। फिर उनको एक स्टेशन से दूसरे स्टेशन घुमाते हैं ताकि आगे करियर के दौरान यात्राओं के लिए तैयार रह सकें। इस सबके बाद उनको ब्रिगेड ट्रेनिंग बेस में ले जाया जाता है जहां वे अगले कुछ महीने गुजारते हैं। (फोटो साभार: टाइम्स ऑफ इजरायल)
ब्रिगेड ट्रेनिंग बेस में बुनियादी प्रशिक्षण शुरू होता है। वहां आम शहरी को सैनिक में बदला जाता है। बुनियादी प्रशिक्षण के दौरान उनको सैनिकों के लिए जरूरी बुनियादी चीजें और मूल्यों को सिखाया जाता है। इसमें रूटीन और सैन्य अनुशासन का पालन करना शामिल होता है। इस दौरान उनको शारीरिक रूप से लड़ने के प्रशिक्षण के अलावा हथियार चलाने की भी ट्रेनिंग दी जाती है। उनको इजरायल डिफेंस फोर्सेज (आईडीएफ) के सिद्धांतों के बारे में बताया जाता है। बुनियादी प्रशिक्षण करीब चार महीने तक चलता है और इसका समापन एक फाइनल मार्च के साथ होता है। मार्च के अंत में सैनिकों के लिए शपथग्रहण समारोह का आयोजन किया जाता है। उस समारोह में रंगरूट आधिकारिक रूप से आईडीएफ में शामिल होते हैं। (फोटो साभार: टाइम्स ऑफ इजरायल)
शपथग्रहण समारोह का समापन सैनिकों की अडवांस्ड ट्रेनिंग का प्रतीक होता है। अब हर सैनिक को ब्रिगेड के अंदर कोई न कोई भूमिका दी जाती है। चार महीने से लेकर एक साल की ट्रेनिंग के बाद वे ऑपरेशन संबंधित ड्यूटी को अंजाम देने के योग्य हो जाते हैं। अडवांस्ड ट्रेनिंग के दौरान वे सीखते हैं कि टीम के तौर पर वे काम कैसे करेंगे। इसके लिए शुरू में छोटे-छोटे ग्रुप फिर दस्ता और बाद में पूरी टुकड़ी बनाकर अभ्यास करते हैं। वे फिटनेस, युद्ध के लिए तत्परता और सैन्य उपकरण के उचित रखरखाव पर ध्यान देते हैं। इस दौरान वे युद्ध से जुड़ीं अलग-अलग तकनीकों और स्पेशलाइजेशन को भी सीखते हैं। (फोटो साभार: Gettyimages.in)
अडवांस्ड ट्रेनिंग के दौरान अलग-अलग यूनिटों को उनकी जरूरत के मुताबिक खास तकनीकें सिखाई जाती हैं। लड़ाकू इंजिनियरिंग कोर को विभिन्न बाधाओं को काबू करने का प्रशिक्षण दिया जाता है। वे बारूदी सुरंगों को निष्क्रिय करने और उससे होकर गुजरने और सुरंगों को पार करने सीखते हैं। खुफिया कोर को सूचना एकत्रित करने और जमीनी खतरों को पहचानने की ट्रेनिंग दी जाती है। तलाश और बचाव यूनिट को भी खास प्रशिक्षण दिया जाता है। उनको भूकंप, सूनामी और परपंरागत युद्ध के अलावा आतंकी हमले आदि की स्थिति में खास मिशनों को अंजाम देना सिखाया जाता है। (फोटो साभार: Gettyimages.in)
आईडीएफ के सैनिक के जीवन का सबसे आखिरी और बड़ा पल 'मासा कमटा' होता है। मासा कमटा को बेरिट (एक तरह की टोपी) मार्च कहा जाता है। सैनिक रात भर मार्च करते हैं। मार्च के दौरान वे अपने हथियार, वेस्ट (छह मैगजीन और दो कैंटीन) और स्ट्रेचर लेकर चलते हैं। उनका मार्च 20 से 45 माइल्स का होता है। इस घूमते-फिरते समारोह में ही सैनिकों को उनके परिवार के सदस्या यूनिट की बेरिट यानी टोपी भेंट करते हैं। (फोटो साभार: टाइम्स ऑफ इजरायल)