एकदम फिल्मी अंदाज में सुबह-सवेरे जिस बहू कि सुरीली प्रार्थना से सभी घरवालों की नींद न खुले, वह बहू भी कोई बहू है। उसको अादर्श बहू तो छोड़िए, सिंपल बहू कहलाने का भी कोई अधिकार नहीं है।
आगे क्लिक करके देखिए 'आदर्श बहू' के कुछ और गुण... क्लिक करें...
(साभार: marryinaweek.com)
2/11
7.jpg
कोई लड़की किसी दूसरे परिवार में ब्याही ही इसीलिए जाती है कि वो सारी जिंदगी अपने ससुराल वालों को पका-पकाकर खिलाती रहे और बदले में तारीफ या शुक्रिया ... अरे अपनों को भी कहीं थैंक्स बोला जाता है!
3/11
11.jpg
शेफ का काम (थोड़ी देर के लिए) खत्म होने के बाद बारी आती है धोबी का रूप धरने की। आदर्श बहू का एक अहम गुण है पूरे घर के कपड़े (चादर और पर्दों से लेकर सबके अंत:वस्त्र और मोजों तक) को रिन की चमक देना और फिर प्रेस करके उन चमकदार कपड़ों पर एक भी सिलवट का नामो-निशान तक बाकी न रखना। गंदे कपड़े पहनकर बाहर निकले तो लोग तो यही कहेंगे न कि इनके घर में 'आदर्श बहू' नहीं है क्या!
4/11
9.jpg
अरे पति होता ही है साक्षात परमात्मा का रूप, और परमात्मा से भी कोई सवाल पूछता है क्या? अपने पति परमेश्वर से दुनियावी सवाल पूछकर इस जन्म के साथ-साथ अपने बाकी बचे सारे जन्म खराब थोड़े ही न करने हैं।
पता है? आदर्श बहू की छवि प्रस्तुत करती इस तस्वीर में भी एक कमी है। सिर पर पल्लू कौन रखेगा? क्या कलयुग आ गया है! सास-ससुर के सामने नंगे सिर घूमना आदर्श बहू के लक्षण नहीं होते।
6/11
6.jpg
जब ससुराल के सारे सदस्य (यहां तक मक्खी, मच्छर भी) पेट-पूजा कर चुके हों, तभी आदर्श बहू पहला निवाला अपने हलक से नीचे उतारती है। आखिर भगवान को भोग लगाकर ही तो भक्त खुद प्रसाद ग्रहण करता है। अब ससुराल वाले किसी भगवान से कम हैं क्या? आखिर पति परमेश्वर के परिवार वाले हैं, तो ईश्वर का ही रूप हुए न!
7/11
3.jpg
शॉपिंग!!! घर की आदर्श बहू को पर्सनल शॉपिंग की क्या जरूरत? उसे दो जून की रोटी मिल रही है और पहनने के लिए दो जोड़ी कपड़े, बस इतना बहुत है। बाकी साज-संवार करके किसे दिखाना है? शादी तो हो गई न! और रहना तो घूंघट में ही है, फिर क्यों फालतू खर्चे करना।
8/11
5.jpg
दिन भर का थका-हारा पति जब घर आएगा तो उसके हाथ-पैर दबाना भी तो आदर्श बहू का ही काम है। क्या कहा? बहू भी थो थकी हुई है! अरे कमाल करते हैं आप! घर पर काम करके कोई थकता है क्या? कितनी बार बताना पड़ेगा कि पति साक्षात परमात्मा का स्वरूप है, उसकी सेवा करना तो आदर्श बहू का सबसे बड़ा धर्म होता है।
9/11
1.jpg
लो, फिर वही गड़बड़ कर दी न! सिर से पल्लू सरका दिया। और लग रहा है कि बहू ने नया हेयरकट भी लिया है। भई, ऐसे तो यह नहीं बन पाएंगी आदर्श बहू। केवल सास-ससुर की सेवा करने से कुछ नहीं होगा, जब तक सिर पर पल्लू रखकर सेवा नहीं करेगी, तब तक कोई बहू आदर्श बहू नहीं बन सकती।
10/11
10.jpg
आप क्या पति परमेश्वर की खजांची हैं, जो उनकी तनख्वाह का पूरा हिसाब-किताब आपके पास होना चाहिए? नहीं न! तो फिर अपने काम से काम रखिए, और यूं भी, औरतों का पति की तनख्वाह पर नजर रखना अच्छी बात नहीं होती। भला कोई भक्त अपने भगवान से उनकी आमदनी के बारे में पूछता है कभी?
11/11
2.jpg
आदर्श बहू के माता-पिता के लिए उनकी बेटी की शादी हो जाना किसी तोहफे से कम है क्या? उनके लिए तो यही जिंदगी भर का तोहफा है कि उनके कंधों का बोझ उतर गया (फिर भले ही इस तोहफे के लिए उन्हें अच्छी-खासी रकम क्यों न खर्च करनी पड़ी हो)। इस तोहफे के बाद किसी और तोहफे की इच्छा करना उनके लालच की निशानी है। हां, बेटी के ससुराल वालों को तोहफे भेजना तो उनका धर्म है।