रेल के हर डिब्बे के पीछे कपलिंग नाम का मैकेनिज्म लगा रहता है। कपलिंग के जरिए ही एक डिब्बे को दूसरे डिब्बे से जोड़ा जाता है। इसमें गड़बड़ी आ जाए तो कोच अलग हो जाते हैं।
बिहार में गुरुवार को सत्याग्रह एक्सप्रेस हादसे का शिकार हो गई। मुजफ्फरपुर-नरकटियागंज रेलखंड पर बेतिया और मझौलिया स्टेशन के पास इंजन से पांच बोगियां अलग हो गईं। हादसे के बारे में विस्तार से पढ़ें
जानकारी के मुताबिक, 5 बोगियां छूट जाने के बाद सत्याग्रह एक्सप्रेस कुछ दूर तक चलती गई। ड्राइवर को अहसास हुआ तो उसने ब्रेक लगाया और ट्रेन को पीछे किया। हादसे में जान-माल का कोई नुकसान नहीं हुआ। आगे जानिए, कैसे कपलिंग के जरिए ट्रेन के डिब्बे जुड़े रहते हैं।
कपलिंग या कपलर ऐसा मैकेनिज्म होता है जो ट्रेन में बोगियों को आपस में जोड़ता है। रेल को चलाने में इसकी भूमिका पटरी से कम नहीं। कपलिंग को कोच से जोड़ने वाले उपकरण को ड्राफ्ट गियर या ड्रॉ गियर कहते हैं।
ब्रिटिश के जमाने से भारतीय रेल बफर और चेन कपलिंग का यूज करती रही है। इसमें दो बोगियों को हुक्स के जरिए तीन लिंक वाली बड़ी चेन से जोड़ा जाता है। यह सिस्टम मालगाड़ियों में यूज होता है क्योंकि झटका ज्यादा लगता है। पैसेंजर ट्रेनों में अधिकतर स्क्रू कपलिंग यूज होती है।
भारत में ट्रेन से सफर करते हुए आपको अधिकतर कोच इसी तरह के सिस्टम से जुड़े दिखेंगे। इसे स्क्रू कपलिंग कहते हैं। यह मैनुअल प्रोसेस है, कपलिंग को स्क्रू की मदद से टाइट करते हैं।
कपलिंग के साथ ही साइड बफर लगे होते हैं। ऊपर जो प्लेट जैसा यंत्र आप देख रहे हैं, वह साइड बफर है। ये स्टेनलेस स्टील से बने होते हैं और इनके बीच काफी लुब्रिकेशन होता है। इनके ऊपर लोहे की परत और स्प्रिंग व रबर भी चढ़ाई जाती है ताकि वाइब्रेशन कम से कम हो। साइड बफर बोगियों को आपस में टकराने से भी रोकता है।
नई ट्रेनों के कोच भी स्क्रू कपलिंग से जुड़े होते हैं। इससे कोच को बड़ी जल्दी से अटैच/डिटैच किया जा सकता है। अगर बोगी को अचानक बदलने की जरूरत आ जाए तो पहले की तरह घंटों नहीं लगते। सत्याग्रह एक्सप्रेस जैसी घटना की स्थिति में मिनटों के भीतर कोच को फिर से कनेक्ट कर ट्रेन रवाना की जा सकती है। अगर किसी एक बोगी में समस्या तो उसे अलग कर बाकी ट्रेन को जाने दिया जा सकता है।