लोगों की मान्यता है कि इस इस गर्म जलकुंड के पानी में गंधक और अन्य औषधीय तत्वों का मिश्रण है। इस कारण इसमें स्नान करने से चर्म रोग से संबंधित सभी बीमारियां ठीक हो जाती है।
लोग की माने तो तातलोई गर्म जल कुंड के पानी में अगर कपड़े की पोटली में चावल या अंडा कुछ देर रख दिया जाय तो वह भी पक कर खाने योग्य बन जाता है।
गर्म जल कुंड तातलोई का धार्मिक महत्व भी है। इस अवसर पर मांस मदिरा से दूर रहनेवाले संताल समाज के सफाहोड़ समुदाय के लोग इस गर्म जलकुंड में स्नान कर अपने आराध्य देव की वार्षिक पूजा अर्चना करते हैं।
संताल गजेटियर में दुमका और पाकुड़ जिले में कई गर्म जलकुंड-झरने का उल्लेख हैं। इसमें बारापलासी गांव के पास ततलोई, केंदघाटा के पास नुनबिल, कुमराबाद गांव में तपत पानी, बाधमारा के समीप सुसुम्पानी, तपत पानी के किनारे पर भूमका नामक गर्म जलकुंड शामिल है।
बताते हैं कि जरमुंडी प्रखंड में नोनीहाट के समीप भी कभी पातालगंगा नामक गर्म जल झरना अस्तित्व में था। हालांकि बाद के वर्षों में विभिन्न कारणों से पातालगंगा समेत कई अन्य झरना विलुप्त हो गये।
अंग्रेज लेखक कर्नल वेडेल के लेख को उद्धृत करते हुए संताल परगना गजेटियर में बताया गया है इस क्षेत्र के आस-पड़ोस के लोगों में विशेष रूप से खुजली, अल्सर और अन्य त्वचा संक्रमण से मुक्ति के लिए गर्म जल झरना के उपयोग का काफी प्रचलन हैं।
आदिवासी समेत अन्य समुदाय के लोग सभी गर्म झरनों के आसपास अपने आराध्य देव की पूजा अर्चना की परम्परा रही है। आमतौर पर स्थानीय लोग झरनों पर पूजे जाने वाले देवता को माता या माई, मां-काली और भगवान शिव के रूप में पूजा अर्चना करते हैं।