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उत्तर प्रदेश में इस तरह हो सकता है मुस्लिम वोटों का बंटवारा

उत्तर प्रदेश सहित 5 राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के साथ ही नेताओं का वोटर्स के बीच जाने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। इस चुनाव में ना सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज की परीक्षा होगी, बल्कि विपक्ष के भविष्य का भी फैसला होगा।

नवभारतटाइम्स.कॉम 5 Jan 2017, 9:50 am
लखनऊ
नवभारतटाइम्स.कॉम split in muslim vote bank in uttar pradesh assembly election
उत्तर प्रदेश में इस तरह हो सकता है मुस्लिम वोटों का बंटवारा

उत्तर प्रदेश सहित 5 राज्यों में चुनाव की तारीखों का ऐलान हो चुका है। चुनाव आचार संहिता लागू होने के साथ ही नेताओं का वोटर्स के बीच जाने का सिलसिला भी शुरू हो गया है। इस चुनाव में ना सिर्फ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कामकाज की परीक्षा होगी, बल्कि विपक्ष के भविष्य का भी फैसला होगा। समाजवादी पार्टी (एसपी) और बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) भी कोई कसर नहीं छोड़ेगी। यूपी की सत्ता पर कौन काबिज होगा यह तय करने में मुस्लिम वोटर्स की अहम भूमिका होती है। प्रदेश की आबादी में 17 फीसदी हिस्सेदारी मुस्लिम समुदाय की है।

एसपी का साथ छोड़ेंगे मुस्लिम?
1990 के शुरुआती दशक में राममंदिर आंदोलन के बाद से मुस्लिम वोटर्स ने समाजवादी पार्टी के पक्ष में एकमुश्त वोट किया है। कहा जाता है कि हर बार यादव और मुस्लिम वोटर्स के सहारे ही पार्टी सत्ता तक पहुंची है। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, मुस्लिम समुदाय इस बार पार्टी में चल रहे कलह पर नजर टिकाए हुए है। यदि पार्टी में टूट होती है और संकट गहराता है तो समुदाय बीएसपी या कांग्रेस की ओर रुख कर सकता है। यही कारण है कि पार्टी के बड़े नेता सुलह की कोशिश करते हुए कह चुके हैं कि विवाद से मुस्लिम समुदाय के लोग दुखी हैं।

माया का देंगे साथ?
एसपी को यह झटका देने के लिए बीएसपी सुप्रीमो हर संभव कोशिश कर रही हैं। टिकट बंटवारे में उन्होंने इस बार दलितों से अधिक मुस्लिम उम्मीदवारों को तरजीह दी है। बीएसपी ने इस बार 113 सवर्णों को टिकट दिया है। इसे ध्यान में रखते हुए 97 मुसलमान प्रत्याशी उतारे गए हैं। 2007 में मुसलमान प्रत्याशी 60 ही थे। एसपी में चल रहे कलह के बीच मायावती मुस्लिम वोटर्स को यह समझाने में जुटी हैं कि इस बार मुलायम के पक्ष में जाने से उनका वोट बेकार चला जाएगा और इस हालत में बीजेपी जीत जाएगी। राजनीतिक जानकारों के मुताबिक, मायावती को भले ही इसमें पूरी तरह सफलता ना मिले, लेकिन कुछ मुस्लिम वोटर्स हाथी पर सवार हो सकते हैं।

लुभा पाएगी कांग्रेस?
कांग्रेस भी इस होड़ में पीछे नहीं है। हालांकि, इस बार वह सर्वण वोटों पर फोकस कर रही है। शीला दीक्षित को मुख्यमंत्री उम्मीदवार के तौर पर पेश किया है, लेकिन ध्यान रहे, चुनाव प्रभारी गुलाम नबी आजाद को बनाया है। मजलिस-ए-इत्तिहाद उल मुसलमीन (एमआईएम) भी यूपी चुनाव में उतरने का ऐलान कर चुकी है। पश्चिमी यूपी के कुछ सीटों पर नतीजों में असदुद्दीन ओवैसी अहम फैक्टर हो सकते हैं।

बीजेपी को हो सकता है लाभ
ऐसे में, यदि एसपी, बीएसपी और कांग्रेस में मुस्लिम वोटों का बंटवारा होता है तो यह सबसे अधिक बीजेपी के लिए फायदेमंद हो सकता है। जैसा कि 30 फीसदी मुस्लिम आबादी वाले राज्य असम में पार्टी को हुआ। इसके अलावा बंगाल में भी बीजेपी को लाभ हुआ।

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