नई दिल्ली
अमोल मजूमदार को साउथ अफ्रीका ने भारत के खिलाफ टेस्ट सीरीज के लिए अपना अंतरिम बल्लेबाजी कोच बनाया है। मुंबई का यह बल्लेबाज घरेलू क्रिकेट में बड़ा नाम रहा लेकिन कभी भारत के लिए नहीं खेल पाए। इसके अलावा कई ऐसे क्रिकेटर रहे जो जिन्होंने घरेलू क्रिकेट में तो खूब धमाला माचा लेकिन भारत के लिए उन्हें कभी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में खेलने का मौका नहीं मिला।
एमवी श्रीधर
हैदराबाद के इस बल्लेबाज के पास कम्पोजर था और कलात्मकता भी। दाएं हाथ के इस बल्लेबाज के पास कुल मिलाकर भारत के लिए खेलने की सभी खूबियां मौजूद थीं। उन्होंने प्रथम श्रेणी में 21 शतक लगाए। इसमें आंध्र प्रदेश के खिलाफ लगाए गए 366 रन भी शामिल थे। प्रथम श्रेणी में उनकी औसत रही 48.9।
वी. शिवारामाकृष्णन
बाएं हाथ ने इस बल्लेबाज ने घरेलू क्रिकेट में तमिलनाडु और बिहार का प्रतिनिधित्व किया। उनके पास भारतीय टीम में खेलने की तकनीक और संयम मौजूद था। वह 6000 से ज्यादा टेस्ट रन बनाने के बावजूद चयनकर्ताओं को प्रभावित नहीं कर पाए। इसके साथ ही वह बहुत अच्छे करीबी फील्डर भी थे।
हरि गिडवानी
गिडवानी ने घरेलू क्रिकेट में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। बिहार और दिल्ली के लिए लगातार रन बनाए। उन्होंने 1970 के दशक में भारत आने वाली विदेशी टीमों के सर्वश्रेष्ठ गेंजबाजी आक्रमण के खिलाफ अच्छी बल्लेबाजी की। इसके साथ अपनी लेग ब्रेक गेंदबाजी से उन्होंने 135 विकेट भी झटके।
अमोल मजूमदार (कप्तान)
जब मजूमदार ने 1994-95 में खेले अपने पहले रणजी मैच में 264 रनों की पारी खेली तो यह चर्चा आम हो गई कि वह जल्द ही भारत के लिए खेल सकते हैं। हालांकि ऐसा हो नहीं सका। 48.1 के औसत से 11667 रन बनाने के बाद भी उन्हें भारत के लिए खेलने का मौका कभी नहीं मिला।
केपी भास्कर
ये उन क्रिकेटर्स में से हैं जिन्होंने 50 के ज्यादा के औसत से रन बनाए। दिल्ली के इस बल्लेबाज ने 52.80 के औसत से 5443 रन बनाए। ऐसी संभावना थी कि 90 के दशक में वह भारत के लिए खेल जाते लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।
देवेंद्र बुंदेला
मध्य प्रदेश के इस भरोसेमंद बल्लेबाज ने 2017 में अपना प्रथम श्रेणी करियर समाप्त किया। उन्होंने 10004 रन बनाए और 58 विकेट लिए।
सितांशु कोटक
1992-93 में शुरू हुआ यह फर्स्ट क्लास करियर करीब 20 साल तक चला। कोटक ने सौराष्ट्र की बल्लेबाजी क्रम में अहम भूमिका निभाई। उन्होने अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 8061 रन बनाए और कुल 70 विकेट लिए। कोच के रूप में उन्होंने सौराष्ट्र को घरेलू क्रिकेट में बड़ी ताकत बनने में उन्होंने बहुत मेहनत की।
बीबी निम्बाल्कर (विकेटकीपर)
वह एक मजबूत विकेटकीपर बल्लेबाज थे। निंबालकर ने 1948-49 में महाराष्ट्र की ओर से खेलते हुए काठियावाड़ के खिलाफ 443 रनों की पारी खेली। यह प्रथम-श्रेणी क्रिकेट में किसी भारतीय द्वारा बनाया गया सर्वोच्च स्कोर है। उनके विकेटकीपिंग स्किल भी अच्छे थे। उन्होंने अपना प्रथम-श्रेणी करियर 47.9 के औसत पर समाप्त किया।
राजिंदर गोयल
घरेलू क्रिकेट में बाएं हाथ के इस स्पिनर का करियर काफी लंबा रहा। यह नेहरू युग में शुरू हुआ और राजीव गांधी के समय तक चला। उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 750 तक विकेट लिए। इसमें गावसकर का विकेट भी शामिल था। बॉम्बे के पदमाकर शिवालकर की तरह वह भी अनलकी रहे कि उन्होंने अपना अधिकतर क्रिकेट बिशन सिंह बेदी के दौर में खेला।
पांडुरंग सलगांवकर
1970 के दशक में उन्हें एक प्रतिभाशाली तेज गेंदबाज के रूप में देखा जाता है। 1974 में वह इंग्लैंड के लिए चुने जाने के काफी करीब पहुंच गए थे। उन्होंने प्रथम-श्रेणी क्रिकेट में 26.7 के औसत से 214 विकेट लिए।
रानादेव बोस
बंगाल के इस ऊंचे कद के मीडियम पेसर ने सही लाइन-लेंथ पर गेंदबाजी करने की अपनी खूबी के कारण घरेलू क्रिकेट के बेस्ट बल्लेबाजों को परेशान किया। उन्होंने घरेलू क्रिकेट में 25.8 के औसत से 317 विकेट लिए जो उनकी काबिलियत को दिखाता है। उन्हें 2007 में इंग्लैंड के दौरे पर चुना गया लेकिन बिना खेले ही लौट आए।
पालवंकर बालू
वह भारत में टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत से पहले के थे। लेकिन बाएं हाथ के इस स्लो गेंदबाज ने 1911 के टॉप भारतीय क्रिकेटर्स के इंग्लैंड दौरे पर शानदार प्रदर्शन किया। वह दलित समाज से आते थे और उन्होंन 1937 में डॉक्टर बीआर अंबेडकर के खिलाफ बॉम्बे म्युनिसिपल इलेक्शन में चुनाव भी लड़ा जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा।
अमोल मजूमदार को साउथ अफ्रीका ने भारत के खिलाफ टेस्ट सीरीज के लिए अपना अंतरिम बल्लेबाजी कोच बनाया है। मुंबई का यह बल्लेबाज घरेलू क्रिकेट में बड़ा नाम रहा लेकिन कभी भारत के लिए नहीं खेल पाए। इसके अलावा कई ऐसे क्रिकेटर रहे जो जिन्होंने घरेलू क्रिकेट में तो खूब धमाला माचा लेकिन भारत के लिए उन्हें कभी अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में खेलने का मौका नहीं मिला।
एमवी श्रीधर
हैदराबाद के इस बल्लेबाज के पास कम्पोजर था और कलात्मकता भी। दाएं हाथ के इस बल्लेबाज के पास कुल मिलाकर भारत के लिए खेलने की सभी खूबियां मौजूद थीं। उन्होंने प्रथम श्रेणी में 21 शतक लगाए। इसमें आंध्र प्रदेश के खिलाफ लगाए गए 366 रन भी शामिल थे। प्रथम श्रेणी में उनकी औसत रही 48.9।
वी. शिवारामाकृष्णन
बाएं हाथ ने इस बल्लेबाज ने घरेलू क्रिकेट में तमिलनाडु और बिहार का प्रतिनिधित्व किया। उनके पास भारतीय टीम में खेलने की तकनीक और संयम मौजूद था। वह 6000 से ज्यादा टेस्ट रन बनाने के बावजूद चयनकर्ताओं को प्रभावित नहीं कर पाए। इसके साथ ही वह बहुत अच्छे करीबी फील्डर भी थे।
हरि गिडवानी
गिडवानी ने घरेलू क्रिकेट में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। बिहार और दिल्ली के लिए लगातार रन बनाए। उन्होंने 1970 के दशक में भारत आने वाली विदेशी टीमों के सर्वश्रेष्ठ गेंजबाजी आक्रमण के खिलाफ अच्छी बल्लेबाजी की। इसके साथ अपनी लेग ब्रेक गेंदबाजी से उन्होंने 135 विकेट भी झटके।
अमोल मजूमदार (कप्तान)
जब मजूमदार ने 1994-95 में खेले अपने पहले रणजी मैच में 264 रनों की पारी खेली तो यह चर्चा आम हो गई कि वह जल्द ही भारत के लिए खेल सकते हैं। हालांकि ऐसा हो नहीं सका। 48.1 के औसत से 11667 रन बनाने के बाद भी उन्हें भारत के लिए खेलने का मौका कभी नहीं मिला।
केपी भास्कर
ये उन क्रिकेटर्स में से हैं जिन्होंने 50 के ज्यादा के औसत से रन बनाए। दिल्ली के इस बल्लेबाज ने 52.80 के औसत से 5443 रन बनाए। ऐसी संभावना थी कि 90 के दशक में वह भारत के लिए खेल जाते लेकिन ऐसा नहीं हो पाया।
देवेंद्र बुंदेला
मध्य प्रदेश के इस भरोसेमंद बल्लेबाज ने 2017 में अपना प्रथम श्रेणी करियर समाप्त किया। उन्होंने 10004 रन बनाए और 58 विकेट लिए।
सितांशु कोटक
1992-93 में शुरू हुआ यह फर्स्ट क्लास करियर करीब 20 साल तक चला। कोटक ने सौराष्ट्र की बल्लेबाजी क्रम में अहम भूमिका निभाई। उन्होने अपने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 8061 रन बनाए और कुल 70 विकेट लिए। कोच के रूप में उन्होंने सौराष्ट्र को घरेलू क्रिकेट में बड़ी ताकत बनने में उन्होंने बहुत मेहनत की।
बीबी निम्बाल्कर (विकेटकीपर)
वह एक मजबूत विकेटकीपर बल्लेबाज थे। निंबालकर ने 1948-49 में महाराष्ट्र की ओर से खेलते हुए काठियावाड़ के खिलाफ 443 रनों की पारी खेली। यह प्रथम-श्रेणी क्रिकेट में किसी भारतीय द्वारा बनाया गया सर्वोच्च स्कोर है। उनके विकेटकीपिंग स्किल भी अच्छे थे। उन्होंने अपना प्रथम-श्रेणी करियर 47.9 के औसत पर समाप्त किया।
राजिंदर गोयल
घरेलू क्रिकेट में बाएं हाथ के इस स्पिनर का करियर काफी लंबा रहा। यह नेहरू युग में शुरू हुआ और राजीव गांधी के समय तक चला। उन्होंने प्रथम श्रेणी क्रिकेट में 750 तक विकेट लिए। इसमें गावसकर का विकेट भी शामिल था। बॉम्बे के पदमाकर शिवालकर की तरह वह भी अनलकी रहे कि उन्होंने अपना अधिकतर क्रिकेट बिशन सिंह बेदी के दौर में खेला।
पांडुरंग सलगांवकर
1970 के दशक में उन्हें एक प्रतिभाशाली तेज गेंदबाज के रूप में देखा जाता है। 1974 में वह इंग्लैंड के लिए चुने जाने के काफी करीब पहुंच गए थे। उन्होंने प्रथम-श्रेणी क्रिकेट में 26.7 के औसत से 214 विकेट लिए।
रानादेव बोस
बंगाल के इस ऊंचे कद के मीडियम पेसर ने सही लाइन-लेंथ पर गेंदबाजी करने की अपनी खूबी के कारण घरेलू क्रिकेट के बेस्ट बल्लेबाजों को परेशान किया। उन्होंने घरेलू क्रिकेट में 25.8 के औसत से 317 विकेट लिए जो उनकी काबिलियत को दिखाता है। उन्हें 2007 में इंग्लैंड के दौरे पर चुना गया लेकिन बिना खेले ही लौट आए।
पालवंकर बालू
वह भारत में टेस्ट क्रिकेट की शुरुआत से पहले के थे। लेकिन बाएं हाथ के इस स्लो गेंदबाज ने 1911 के टॉप भारतीय क्रिकेटर्स के इंग्लैंड दौरे पर शानदार प्रदर्शन किया। वह दलित समाज से आते थे और उन्होंन 1937 में डॉक्टर बीआर अंबेडकर के खिलाफ बॉम्बे म्युनिसिपल इलेक्शन में चुनाव भी लड़ा जिसमें उन्हें हार का सामना करना पड़ा।