ऐपशहर

लांस नायक सुरेश कार्की की कहानी: लकवे से डिप्रेशन में चले गए थे अब हैं बैडमिंटन चैंपियन

बात 7 जुलाई, 2004 की है। सेना में लांस नायक सुरेश कार्की एक घायल सैनिक को गुवाहाटी के बेस अस्पताल पहुंचा रहे थे, तभी उनकी ऐंबुलेंस हादसे का शिकार हो गई। सुरेश इस हादसे में घायल हो गए, जिससे उनकी कमर का निचला हिस्सा लकवे का शिकार हो गया।

नवभारत टाइम्स 11 Nov 2017, 8:35 am
रमेश तिवारी
नवभारतटाइम्स.कॉम suresh_karki

बात 7 जुलाई, 2004 की है। सेना में लांस नायक सुरेश कार्की एक घायल सैनिक को गुवाहाटी के बेस अस्पताल पहुंचा रहे थे, तभी उनकी ऐंबुलेंस हादसे का शिकार हो गई। सुरेश इस हादसे में घायल हो गए, जिससे उनकी कमर का निचला हिस्सा लकवे का शिकार हो गया। 3 हफ्ते के अंदर एक के बाद एक 3 सर्जरी हुईं, लेकिन सुरेश ने हिम्मत नहीं खोई।

एक दिन न्यूरो सर्जन से उन्होंने बड़ी मासूमियत से पूछा, सर जी मैं कब ठीक होऊंगा। डॉक्टर ने कहा, बेटा अब जिंदगी वील चेयर पर बितानी होगी। सुरेश के लिए यह बात सदमे की तरह थी, क्योंकि फुटबॉल उनका पसंदीदा खेल था। सुरेश डिप्रेशन में चले गए, खाना-पीना कम कर दिया, किसी से बात नहीं करते थे। कोई बात करता तो रोने लगते थे। उन्हें लगता कि जिंदगी 6 महीने से ज्यादा नहीं होगी।

यहां हुई असल शुरुआत
सुरेश को सेना के पुणे स्थित उस सेंटर में भेज दिया गया जहां उनके जैसे सैनिकों की जिंदगी को नए सिरे से संवारा जाता है। सुरेश वहां मैनेजमेंट और कंप्यूटर कोर्स करते हुए जिंदगी के बिखरे तिनकों को सहेजने लगे। तभी उनकी मुलाकात वहां के खिलाड़ियों से हुई, जिन्हें देख वह भी खेलने को उत्सुक हुए। पहले वह एथलेटिक्स से जुड़े इवेंट्स में हिस्सा लेने लगे फिर लॉन टेनिस और टेबल टेनिस में हाथ आजमाया।

गोरखा राइफल्स रेजिमेंट ने माना हीरो
उनका उत्साह इस कदर बढ़ा कि देश के लिए मेडल जीतने का सपना देखने लगे, लेकिन शारीरिक स्थिति के कारण ये खेल उन्हें सूट नहीं कर रहे थे। तभी उन्हें बैडमिंटन से जुड़ने की सलाह मिली। इस खेल में उन्होंने अपना फोकस जमाया और एक के बाद एक मेडल हासिल किए। फिलहाल वह पैरा बैडमिंटन में भारत के शीर्ष खिलाड़ियों में हैं। सुरेश सेना की 9 गोरखा राइफल्स रेजिमेंट से जुड़े हैं और इस रेजिमेंट ने अपने 200 साल पूरे होने पर उन्हें अपने हीरो के तौर पर पेश किया है।

इस रात की सुबह है...
डिप्रेशन, निगेटिविटी जैसी स्थिति से लड़ने की जो मुहिम हमने 'इस रात की...' अभियान के साथ शुरू की है, उसके तहत हम आपको नियमित रूप से बताते रहेंगे कि इस चुनौती से निकलने के रास्ते क्या हैं। किस तरह इसका सामना करें। नकारात्मकता पर सकारात्मकता की जीत कैसे हो। उन लोगों की कहानी उन्हीं के शब्दों में बताएंगे, जो इस जंग से जीतकर निकले। आप लोगों के सवाल भी मिले हैं जिनके जवाब एक्सपर्ट देंगे। जिंदगी के उजाले की ओर ले जाने वाली इस मुहिम का हिस्सा बनते रहें।

अगला लेख

Sportsकी ताजा खबरें, ब्रेकिंग न्यूज, अनकही और सच्ची कहानियां, सिर्फ खबरें नहीं उसका विश्लेषण भी। इन सब की जानकारी, सबसे पहले और सबसे सटीक हिंदी में देश के सबसे लोकप्रिय, सबसे भरोसेमंद Hindi Newsडिजिटल प्लेटफ़ॉर्म नवभारत टाइम्स पर
ट्रेंडिंग