60 साल से लोगों की फर्स्ट च्वाइस बना है अबरार बैंड
अबरार बैंड के मालिक जाकतअली अली ने कहा कि मौजूदा वक्त में केवल मुजफ्फरपुर में पांच हजार से ज्यादा बैंड हैं। इसके बाद भी अबरार बैंड कस्टमर के बीच में फर्स्ट च्वाइस है। जाकतअली ने बताया कि बैंड के धंधे में सारा खेल भरोसे का है। भारतीय समाज में लोगों की शादियां एक बार ही होती हैं। ऐसे में हर कोई चाहता है कि उसकी शादी सबको याद रहे। शादियों को यादगार बनाने में बैंड का एक अलग स्थान होता है। ऐसे में हर कोई चाहता है कि उसकी शादी में ऐसी बैंड पार्टी आए जो सभी को याद रहे। इस वजह से कहीं ना कहीं बैंड के साथ लोगों का इमोशनल जुड़ाव हो जाता है। हमने पिछले 60 साल से लोगों के इसी इमोशन का ख्याल रखने की कोशिश कर रहे हैं।
प्रशासन के लोग को अबरार बैंड को करते हैं याद
जाकतअली अली कहते हैं कि सबसे अच्छा बैंड कौन है, इसकी परख केवल लोगों के विश्वास और भरोसा से समझा जा सकता है। उन्होंने कहा कि पूरे साल में केवल 3 या 4 महीने शादियों के होते हैं। इसी सीजन में बैंड पार्टी की पूछ होती है। सीजन खत्म होने के बाद बैंड पार्टी से जुड़े लोग बेरोजगार हो जाते हैं। ऐसे में कई बार रोजी-रोटी चलाना भी मुश्किल हो जाता है। इस वजह से ज्याद बैंड पार्टी से जुड़े लोग दूसरा काम-धंधा भी करने में जुट जाते हैं। उन्होंने बातया कि मुजफ्फरपुर में जब कमल शाह की मजार पर चादर पोशी की बात होती है तो भी जिला प्रशासन की ओर से अबरार बैंड को याद किया जाता है।
फूहड़ गानों के चलने को रोकने के मुहिम में बैंड
पिछले कुछ साल से डीजे पर फूहड़ गाने बजाने का चलन हो चला है। मुजफ्फरपुर के बैंड वालों ने मिलकर फैसला लिया है कि अब फूहड़ गाने नहीं बजाएंगे। इसके लिए अबरार समेत कई बैंड वाले बुकिंग के समय ही तय कर लेते हैं कि वह फूहड़ गाने नहीं बजाएंगे। बैंड वालों का कहना है कि शादियों के परिवार के हर वर्ग के लोग होते हैं। ऐसे में वहां फूहड़ और भद्दे शब्दों वाले भोजपुरी गाने बजने से कई लोगों के समाने असहज स्थिति बन जाती है।
भारत में बैंड का इतिहास
अंग्रेज भारत में बैंड लेकर आए। दरअसल, भारतीय राजा महाराजाओं के दौर में ढोल-नगाड़े, बांसुरी का चलन था। लेकिन अंग्रेज अपने साथ बैंड का कल्चर लेकर भारत आए। अंग्रेज जब कभी उत्सव मनाते या किसी प्रतिष्ठित शख्स का स्वागत करते तो वहां बैंड पार्टी को बुलाया जाता था। इसके अलावा खासकर सेना का उत्साह बढ़ाने के लिए बैंड पार्टी को बुलाया जाता था। माना जाता है कि सबसे पहले 1756 में बैंड का प्रयोग हुआ। जिसमें 1000 से अधिक कलाकारों के साथ बांसुरी-वादक और अन्य संगीतकारों ने फिलाडेल्फिया के रेजीमेंट आर्टिलरी कंपनी (Regiment Artillery Company of Philadelphia) में मार्च (March) किया था, जिसकी कमान कर्नल बेंजामिन फ्रेंकलिन (Colonel Benjamin Franklin) ने संभाली थी। आज भारतीय सेना, नौसेना और वायु सेना के पास अपना बैंड है। भारतीय सैन्य बैंड नियमित रूप से अंतरराष्ट्रीय और विभिन्न राष्ट्रीय समारोहों (गणतंत्र दिवस, स्वतंत्रता दिवस इत्यादि) में हिस्सा लेते हैं। मौजूदा वक्त में भारतीय सशस्त्र बलों के पास 50 से अधिक सैन्य ब्रास बैंड (Military Brass Band), 400 पाइप बैंड (Pipe Band) और ड्रम (Drum) के सैन्य दल हैं। रिपोर्ट : के रघुनाथ्