पटना: आज भी आप आरजेडी समर्थकों या फिर ज्यादातर यादव बहुल इलाकों के लोगों से पूछेंगे कि उनका नेता कौन है तो उनका जवाब यही होगा- 'जादो (यादव) माने लालू जादो, बाकी सब सावन-भादो'। बिहार में बीजेपी ने इसी वोट बैंक को अपने पाले में करने के लिए भूपेंद्र यादव और नित्यानंंद राय को आगे किया। सूत्र बताते हैं कि उस दौरान बीजेपी को पूरा भरोसा था कि ये दोनों नेता लालू के जातीय तिलिस्म को तोड़ देंगे। इसके बाद बीजेपी ने दूसरा दांव बनिया समुदाय पर लगाया और संजय जायसवाल को पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष बना दिया। 2020 में जीत के बाद उपमुख्मंत्री के चुनाव में भी बीजेपी ने अपनी रणनीति की झलक दिखा दी। सत्ता जाने से पहले ही बीजेपी को मिल गया था बड़ा इशारा
नीतीश बीजेपी का साथ छोड़ महागठबंधन के साथ 9 अगस्त 2022 को गए। लेकिन इस नई सरकार आने से काफी पहले बीजेपी को ये अहसास हो गया था कि उसका असल वोट बैंक अब दरक गया है। बोचहां उपचुनाव में जिस तरह से बीजेपी को अपने परंपरागत और कोर वोटरों यानि भूमिहार-ब्राह्मणों (सवर्ण भी कह सकते हैं) की नाराजगी झेलनी पड़ी। उसी वक्त ये तय हो गया था कि केंद्रीय आलाकमान का यादव नेताओं से मोहभंग हो गया है। यही वजह थी कि बिहार में पार्टी के अंदर ओवरहॉलिंग शुरू कर दी गई।
बिखरे वोट बैंक को एक करने के लिए पहला दांव
सवाल ये था कि बीजेपी ऐसा करे कैसे, इसके लिए सत्ता जाते ही बीजेपी को सबसे पहले बोचहां की हार याद आई। इसके बाद NBT ने आपको पहले ही बता दिया था कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ही बनेंगे। हुआ भी बिल्कुल वही, बीजेपी ने भूमिहार समुदाय से आनेवाले और विधानसभा के पूर्व स्पीकर विजय सिन्हा को नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया। इसके बाद बीजेपी ने कुशवाहा वोट बैंक को पाले में करने के लिए विधानपरिषद में नेता प्रतिपक्ष के लिए सम्राट चौधरी का नाम घोषित कर दिया।
फिर भूपेंद्र का पत्ता साफ
भूपेंद्र यादव को केंद्र में मंत्री बनाए जाने के बाद से ही बिहार प्रभारी का पद खाली था। बीजेपी चाहती तो इस पर किसी यादव नेता को बिठा सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। OBC समाज से आने वाले विनोद तावड़े को बिहार बीजेपी की कमान सौंपी गई। इस दौरान आप एक बात पर गौर करेंगे तो काफी कुछ साफ हो जाएगा। भूपेंद्र यादव तो बिहार आना बंद ही कर चुके थे। महागठबंधन की सरकार बनने के बाद कुछ दिन तक नित्यानंद राय ने तेजस्वी पर खूब हमला बोला, लेकिन विजय सिन्हा को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद वो सीन से आउट हो गए। उनकी जगह सुशील मोदी, विजय सिन्हा और थोड़ा बहुत संजय जायसवाल ने ले ली। यूं समझिए कि बीजेपी ने विपक्ष में आते ही पार्टी में ऊपर से नीचे तक जातीय समीकरण दुरुस्त कर दिया।
बीजेपी को कितनी कामयाबी के आसार?लेकिन सवाल ये कि बीजेपी अपने इस मिशन में कितना कामयाब हो पाएगी। 2024 के लोकसभा चुनाव में डेढ़ साल के करीब ही समय बाकी है। उससे पहले बीजेपी को 2015 की तरह ही लालू-नीतीश से चुनौती मिलेगी। इस बार तो हालात काफी अलग हैं, पिच भले ही बिहार की होगी, लेकिन बीजेपी के खिलाफ सारा विपक्ष ग्लब्स-पैड बांध बल्ला लिए खड़ा है। सूत्रों ने NBT को जानकारी दी है कि बिहार में बीजेपी सीएम के चेहरे के लिए भी एक ऐसी रणनीति पर काम शुरू कर चुकी है जो पहले भी हिट हुआ है। इसके बारे में भी आपको नवभारत टाइम्स जल्द ही बताने जा रहा है।
नीतीश बीजेपी का साथ छोड़ महागठबंधन के साथ 9 अगस्त 2022 को गए। लेकिन इस नई सरकार आने से काफी पहले बीजेपी को ये अहसास हो गया था कि उसका असल वोट बैंक अब दरक गया है। बोचहां उपचुनाव में जिस तरह से बीजेपी को अपने परंपरागत और कोर वोटरों यानि भूमिहार-ब्राह्मणों (सवर्ण भी कह सकते हैं) की नाराजगी झेलनी पड़ी। उसी वक्त ये तय हो गया था कि केंद्रीय आलाकमान का यादव नेताओं से मोहभंग हो गया है। यही वजह थी कि बिहार में पार्टी के अंदर ओवरहॉलिंग शुरू कर दी गई।
बिखरे वोट बैंक को एक करने के लिए पहला दांव
सवाल ये था कि बीजेपी ऐसा करे कैसे, इसके लिए सत्ता जाते ही बीजेपी को सबसे पहले बोचहां की हार याद आई। इसके बाद NBT ने आपको पहले ही बता दिया था कि विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष विजय सिन्हा ही बनेंगे। हुआ भी बिल्कुल वही, बीजेपी ने भूमिहार समुदाय से आनेवाले और विधानसभा के पूर्व स्पीकर विजय सिन्हा को नेता प्रतिपक्ष घोषित कर दिया। इसके बाद बीजेपी ने कुशवाहा वोट बैंक को पाले में करने के लिए विधानपरिषद में नेता प्रतिपक्ष के लिए सम्राट चौधरी का नाम घोषित कर दिया।
फिर भूपेंद्र का पत्ता साफ
भूपेंद्र यादव को केंद्र में मंत्री बनाए जाने के बाद से ही बिहार प्रभारी का पद खाली था। बीजेपी चाहती तो इस पर किसी यादव नेता को बिठा सकती थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। OBC समाज से आने वाले विनोद तावड़े को बिहार बीजेपी की कमान सौंपी गई। इस दौरान आप एक बात पर गौर करेंगे तो काफी कुछ साफ हो जाएगा। भूपेंद्र यादव तो बिहार आना बंद ही कर चुके थे। महागठबंधन की सरकार बनने के बाद कुछ दिन तक नित्यानंद राय ने तेजस्वी पर खूब हमला बोला, लेकिन विजय सिन्हा को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष बनाए जाने के बाद वो सीन से आउट हो गए। उनकी जगह सुशील मोदी, विजय सिन्हा और थोड़ा बहुत संजय जायसवाल ने ले ली। यूं समझिए कि बीजेपी ने विपक्ष में आते ही पार्टी में ऊपर से नीचे तक जातीय समीकरण दुरुस्त कर दिया।
बीजेपी को कितनी कामयाबी के आसार?लेकिन सवाल ये कि बीजेपी अपने इस मिशन में कितना कामयाब हो पाएगी। 2024 के लोकसभा चुनाव में डेढ़ साल के करीब ही समय बाकी है। उससे पहले बीजेपी को 2015 की तरह ही लालू-नीतीश से चुनौती मिलेगी। इस बार तो हालात काफी अलग हैं, पिच भले ही बिहार की होगी, लेकिन बीजेपी के खिलाफ सारा विपक्ष ग्लब्स-पैड बांध बल्ला लिए खड़ा है। सूत्रों ने NBT को जानकारी दी है कि बिहार में बीजेपी सीएम के चेहरे के लिए भी एक ऐसी रणनीति पर काम शुरू कर चुकी है जो पहले भी हिट हुआ है। इसके बारे में भी आपको नवभारत टाइम्स जल्द ही बताने जा रहा है।