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कांग्रेस : खड़गे पर दांव तो मीरा कुमार रेस में कहां पिछड़ीं? इतिहास नहीं दोहरा पाईं जगजीवन राम की बेटी

22 साल बाद कांग्रेस में राष्ट्रीय अध्यक्ष पद के लिए चुनाव लगभग तय है। इसके साथ ही ये भी लगभग तय माना जा रहा है कि 51 साल बाद कांग्रेस को दूसरा दलित अध्यक्ष मिल जाएगा। इससे पहले 1970 में बिहार के रहनेवाले जगजीवन राम कांग्रेस अध्यक्ष बने थे। उनकी बेटी मीरा कुमार का नाम भी खड़गे साथ रेस में था, मगर आखिरी वक्त में वो आउट हो गईं।

Curated byसुनील पाण्डेय | नवभारतटाइम्स.कॉम 1 Oct 2022, 3:31 pm
पटना : अगर सबकुछ ठीक रहा तो 51 साल बाद कांग्रेस को एक दलित अध्यक्ष मिल सकता है। कांग्रेस पार्टी 1970 का इतिहास दुहरा सकती है। पार्टी में 22 साल बाद राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव तय माना जा रहा है। नामांकन दाखिल करने के आखिरी दिन वाइल्ड कार्ट एंट्री की तरह मल्लिकार्जुन खड़गे ने सबको चौंका दिया। मल्लिकार्जुन खड़गे को गांधी परिवार का वफादार माना जाता है। ऐसे में उनके चुनाव जीतने की संभावना काफी बढ़ गई है। इससे पहले बाबू जगजीवन राम 1970 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। बिहार के भोजपुर जिले के रहनेवाले जगजीवन बाबू दलित थे। उनकी बेटी मीरा कुमार फिलहाल कांग्रेस की सीनियर नेता हैं। राष्ट्रीय अध्यक्ष के पद के लिए उनका नाम भी रेस में था, लेकिन वो पिछड़ गईं।

आजादी के बाद कांग्रेस के पहले दलित अध्यक्ष थे जगजीवन राम
मीरा कुमार और मल्लिकार्जुन खड़गे रेस में थे, हालांकि बाजी खड़गे के हाथ लगी। दोनों ही दलित कोटे से आते हैं। ऐसे में ये सवाल है कि क्या कांग्रेस को 51 साल बाद दलित पार्टी अध्यक्ष मिलेगा। इससे पहले बाबू जगजीवन राम 1970 में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बने थे। जगजीवन राम के राजनीतिक जीवन की बात करें तो वह पांच दशक से अधिक का लंबा रहा। एक छात्र कार्यकर्ता और स्वतंत्रता सेनानी के रूप में अपने सार्वजनिक जीवन की शुरुआत करते हुए, वह वर्ष 1936 में 28 वर्ष की छोटी उम्र में बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य के रूप में विधायक बन गए। इसके बाद 1936 में वे डिप्रेस्ड क्लासेज लीग के उम्मीदवार के रूप में खड़े हुए। उन्हें 10 दिसंबर 1936 को पूर्वी मध्य शाहाबाद (ग्रामीण) निर्वाचन क्षेत्र से बिहार विधान सभा के लिए निर्विरोध निर्वाचित घोषित किया गया था। जब 1937 में कांग्रेस की सरकार बनी, तो जगजीवन राम को शिक्षा और विकास मंत्रालय में संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था।

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हालांकि, 1938 में, उन्होंने पूरे मंत्रिमंडल के साथ इस्तीफा दे दिया। जगजीवन राम 1946 में फिर से निर्विरोध चुने गए। 2 सितंबर 1946 को उन्हें अंतरिम सरकार में श्रम मंत्री के रूप में शामिल किया गया। इसके बाद, वह लगभग 31 वर्षों तक केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्य बने रहे। 1937 से ही, उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में एक प्रमुख भूमिका निभाई। वे 1940 से 1977 तक अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के सदस्य थे। 1948 से 1977 तक कांग्रेस कार्यसमिति में थे। वे 1950 से 1977 तक केंद्रीय संसदीय बोर्ड में थे। आजादी के बाद 1970 में वे कांग्रेस के पहले दलित अध्यक्ष निर्वाचित हुए थे।

मल्लिकार्जुन खड़गे के पास 50 साल का अनुभव
51 साल बाद कांग्रेस के दूसरे दलित अध्यक्ष बनने जा रहे मल्लिकार्जुन खड़गे वरिष्ठ कांग्रेस नेता रहे हैं। उनका राजनीतिक जीवन भी 50 साल से अधिक का है। खड़गे ने राजनीतिक जीवन की शुरुआत कर्नाटक के गुलबर्ग से की थी। एक इंटरव्यू में उन्होंने बताया था कि उन्होंने अपनी राजनीति पार्टी के लिए पोस्टर लगाने से की थी। 1972 में वह पहली बार विधायक चुने गए। इसके बाद से वह 2008 तक लगातार एमएलए निर्वाचित हुए। 2009 में पार्टी ने उन्हें गुलबर्गा लोकसभा सीट से चुनाव में उतारा। खड़गे को जीत मिली और वह लोकसभा पहुंचे। साल 2014 के दौरान मोदी लहर में भी खड़गे ने अपनी सीट बरकरार रखी। खड़गे नौ बार विधायक रह चुके हैं। खड़गे के परिवार में पत्नी राधाबाई तीन बेटियां और दो बेटे हैं। उनका एक बेटा कर्नाटक के बेंगलुरु में हॉस्पिटल चलाता है। वहीं दूसरा बेटा राजनीति में सक्रिय है। मल्लिकार्जुन खड़के फिलहाल राज्यसभा में विपक्ष के नेता हैं। अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद अपना नामांकन दाखिल किया हैं। अध्यक्ष पद के लिए 17 अक्टूबर को वोट डाले जाएंगे। 19 अक्टूबर को चुनाव परिणाम की घोषणा होगी। इसके बाद ही साफ होगा कि क्या कांग्रेस को दूसरा दलित अध्यक्ष मिलेगा।

मीरा कुमार के रेस में पिछड़ने की वजह जान लीजिए
कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव में एक के बाद एक नए-नए घटनाक्रम देखने को मिले। अध्यक्ष पद के लिए नामांकन दाखिल करने के अंतिम दिन पार्टी के वरिष्ठ नेता और दलित चेहरा मल्लिकार्जुन खड़ने ने नामांकन दाखिल कर सभी को हैरान कर दिया। कहा जा रहा है कि ये गांधी परिवार के पसंद हैं। वैसे अशोक गहलोत के पीछे हटने के बाद पार्टी चीफ के लिए मुकुल वासनिक और मीरा कुमार का नाम उभरकर सामने आया था। कई रिपोर्ट में बताया गया कि वासनिक और मीरा अध्यक्ष पद की रेस में पार्टी हाई कमान के 'आधिकारिक उम्मीदवार' हो सकते हैं। कुछ कांग्रेस नेताओं का मानना था कि अध्यक्ष पद के लिए मीरा कुमार का चुनाव बेहतर होता। मीरा के नाम पर पार्टी के भीतर बड़े पैमाने पर सहमति बन सकती थी।

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आजाद भारत में कांग्रेस के पहले दलित अध्यक्ष बने जगजीवन राम की बेटी हैं मीरा कुमार। दिल्ली में पढ़ाई-लिखाई पूरा करने के बाद 1973 में वो भारतीय विदेश सेवा (आईएफएस) के लिए चुनीं गईं। कुछ वर्षो तक स्पेन, ब्रिटेन और मॉरीशस में उच्चायुक्त रहीं लेकिन उन्हें अफसरशाही रास नहीं आई और उन्होंने राजनीति में कदम बढ़ाने का फैसला किया। 1985 में वे पहली बार बिजनौर से संसद में चुन कर आई। उस समय के दो दलित नेता रामविलास पासवान और मायावती भी उनके प्रचार अभियान का हिस्सा रहे थे। इसके बाद सियासत की सीढ़ियां चढ़ती गईं। 2004 में कैबिनेट मंत्री बनीं। यूपीए के शासनकाल में मीरा कुमार लोकसभा अध्यक्ष रह चुकी हैं। इन्होंने 2017 के राष्ट्रपति चुनाव में यूपीए की उम्मीदवार के रूप में रामनाथ कोविंद के विरुद्ध चुनाव लड़ा, जिसमें हार गईं। 2019 लोकसभा चुनाव में मीरा कुमार की बिहार के सासाराम सीट से हार हो गईं।
लेखक के बारे में
सुनील पाण्डेय
सुनील पाण्डेय इस समय nbt.in के साथ Principal Digital Content Producer तौर पर जुड़े हुए हैं। उन्हें पत्रकारिता में करीब 16 वर्षों का अनुभव है। ETV News, Zee Media, News18 सहित कई संस्थानों में अहम पद पर रहे। ग्राउंड और रिसर्च स्टोरी पर रिपोर्टिंग में माहिर माने जाते हैं। राजनीतिक और सामाजिक मुद्दों पर खासी पकड़ रखते हैं। TV News के लिए शो बनाने में ​एक्सपर्ट सुनील को डिजिटल माध्यम में दिलचस्पी और सीखने की प्रबल इच्छा इन्हें नवभारत ​टाइम्स डिजिटल तक खींच लाई।... और पढ़ें

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