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लालू और BJP के साथ का इतिहास पुराना, लेकिन बाद में कांग्रेस से हो गया याराना, जानिए सोनिया गांधी से दोस्ती वाली वो बात

बिहार (Bihar) में तारापुर और कुशेश्वर अस्थान विधानसभा सीट पर हो रहे उपचुनाव में महागठबंधन के दो प्रमुख घटक दल कांग्रेस और आरजेडी ने अलग-अलग प्रत्याशी उतारे हैं। कांग्रेस के बिहार प्रभारी भक्तचरण दास (Bhakta charan das) ने महागठबंन के टूटने की घोषणा की तो आरजेडी चीफ लालू प्रसाद यादव (Lalu yadav) ने उन्हें भकचोन्हर दास तक कह दिया। ऐसे में आइए जानते हैं कि कांग्रेस और आरजेडी का यह रिश्ता कितना पुराना है।

नवभारतटाइम्स.कॉम 25 Oct 2021, 12:36 pm
पटना
नवभारतटाइम्स.कॉम when lalu yadav became chief minister of bihar with the help of bjp how old is the relationship of rjd chief with sonia gandhi
लालू और BJP के साथ का इतिहास पुराना, लेकिन बाद में कांग्रेस से हो गया याराना, जानिए सोनिया गांधी से दोस्ती वाली वो बात

बिहार में महागठबंधन की नाव हिचकोले खा रही है। यह पहला मौका नहीं है जब कांग्रेस और आरजेडी एक दूसरे के खिलाफ लड़े और जरूरत पड़ने पर फिर से गले मिल लिए। बिहार की राजनीति को भली-भांति समझने वाले पूर्व सीएम लालू प्रसाद यादव इस वक्त अपने सहयोगी कांग्रेस पर तल्ख हैं। 30 महीने बाद पटना पहुंचे आरजेडी प्रमुख लालू यादव के बयान से साफ हो गया है कि वह गठबंधन में कांग्रेस को किनारे लगाने का मूड बना चुके हैं। हालांकि भारतीय राजनीति में ये सभी जानते हैं कि लालू यादव को भली-भांति मालूम है कि किस राजनीतिक दल से कब दोस्ती और कब दुश्मनी करनी चाहिए।


जब बीजेपी के हेल्प से CM बने थे लालू प्रसाद यादव

लालू प्रसाद यादव और सोनिया गांधी के सियासी दोस्ती को समझने के लिए जरा इतिहास के पन्ने को टटोलते हैं। साल 1988 में कर्पूरी ठाकुर के निधन के बाद 1990 में बिहार विधानसभा के चुनाव हुए। बीजेपी के सहयोग से बिहार में जनता दल की सरकार बनी। उस समय जनता दल के राष्ट्रीय चेहरा और तत्कालीन प्रधानमंत्री बीपी सिंह चाहते थे कि बिहार में रामसुंदर दास को सीएम बनाया जाए, लेकिन चंद्रशेखर रघुनाथ झा को राज्य का मुखिया बनाना चाहते थे। इस विवाद को खत्म करने के लिए तत्कालीन डेप्युटी पीएम देवीलाल ने लालू प्रसाद यादव को बिहार का मुख्यमंत्री बनाने की सिफारिश कर दी। बिहार विधानसभा में 39 सीटें जीतने वाली बीजेपी के समर्थन से 10 मार्च 1990 को लालू प्रसाद यादव पहली बार बिहार के मुख्यमंत्री बने। बीजेपी के सहयोगी से मुख्यमंत्री बने लालू प्रसाद यादव ने 23 सितंबर 1990 को समस्तीपुर में लालकृष्ण आडवाणी की रथ यात्रा रोक दी। बतौर सीएम यह फैसला लेकर लालू यादव कांग्रेस के करीब पहुंच गए। यहीं से लालू प्रसाद यादव और कांग्रेस की दोस्ती का सफर शुरू हुआ। दिलचस्प बात यह है कि लालू से दोस्ती शुरू होने के साथ ही कांग्रेस की राजनीतिक जमीन बिहार में खिसकने लगी। 1990 से पहले बिहार की सबसे मजबूत पार्टी लालू की परछाई बनी दिखने लगी। कांग्रेस+आरजेडी की दोस्ती के इस सिलसिले में कई बार दरारें आईं लेकिन वोटों के बिखराव को रोकने के लिए ये दोनों दल मजबूरी में ही सही लेकिन साथ मिलकर जनता के बीच जाते रहे।

जब लालू ने कहा था सोनिया गांधी विदेशी नहीं, देश की बहू

जब कांग्रेस के भीतर ही सोनिया गांधी को विदेशी मूल का बताकर शरद पवार सरीखे नेता अलग पार्टी बना चुके थे। उस वक्त लालू यादव ने सोनिया गांधी को देश की बहू बताया था। 2004 में जब केंद्र में यूपीए की सरकार बन रही थी तब भी लालू प्रसाद यादव चाहते थे कि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनें। लेकिन सोनिया के मनाने पर लालू यादव उस वक्त मनमोहन सिंह के चेहरे पर अपनी सहमती जता दी थी। बिहार में कांग्रेस की राजनीति को समझने के लिए इसे दो भागों में बांटकर समझना चाहिए। पहला 1990 से पहले और दूसरा 1990 के बाद की राजनीति।

-1951 में संयुक्त बिहार में पहला विधानसभा चुनाव हुआ था जिसमें कांग्रेस को 239 सीटें मिली थी। वहीं 1957 में कांग्रेस को 250 सीटें मिली थी। 1962 में 185 सीट, 1967 में 128 सीट, 1969 में 118 सीट, 1972 में 162 सीट, 1977 में कांग्रेस को केवल 57 सीट से संतोष करना पड़ा। 1980 में कांग्रेस 169 सीटों के साथ वापसी की। 1985 में कांग्रेस को 196 सीट और 1990 में कांग्रेस को 71 सीटें आईं।

लालू के साए में जनाधार खोती चली गई कांग्रेस

1990 में बिहार की राजनीति में लालू प्रसाद यादव के उदय के साथ ही कांग्रेस का पतन शुरू हो गया। कुछ ही साल बाद कांग्रेस ने मजबूरी में लालू प्रसाद यादव की राजनीतिक छाया में रहना कबूल कर लिया। सियासी जमीन बचाने के लिए कांग्रेस बिहार में लालू यादव की पिछलग्गू बनकर रह गई। वहीं लालू यादव ने बिहार में कांग्रेस की ऐसी जमीन जमीन खिसका दी कि वह अपने पैर पर उठने की हिम्मत ही नहीं जुटा पा रही है। लालू की छाया में आने के बाद कांग्रेस 1995 के बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस 29 सीटों पर सिमट गई। 2000 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस गठबंधन से अलग होकर 243 सीटों पर उम्मीदवार उतारे लेकिन केवल 23 विधायक जीत पाए। जबकि इसी चुनाव में आरजेडी को 124 सीटें आई थी। 2005 में कांग्रेस और आरजेडी फिर से मिलकर लड़े, लेकिन चारा घोटाले में लालू यादव का नाम आने के चलते दोनों को नुकसान उठाना पड़ा। पहली बार बिहार में नीतीश कुमार की अगुवाई में एनडीए की बहुमत वाली सरकार बनी।

कांग्रेस-आरजेडी अलग हुए तो दोनों ने भुगता खामियाजा

2004-2009 तक चली मनोमहन सरकार में लालू यादव रेलमंत्री रहे। 2009-14 तक चली मनमोहन सिंह की दूसरी सरकार में लालू यादव को जगह नहीं मिली। 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में लालू यादव ने कांग्रेस का हाथ झटककर रामविलास पासवान के साथ गठबंधन बनाया, लेकिन उन्हें करारी हार मिली। कांग्रेस 243 सीटों पर प्रत्याशी उतारकर 4 विधायक तो आरजेडी के 22 विधायक जीते। यह लालू यादव की राजनीतिक जीवन की सबसे बुरी हार रही। उनकी पार्टी बिहार विधानसभा में विपक्ष का दर्जा हासिल करने लायक सीटें भी नहीं जीत पाई।

आरजेडी क्यों कांग्रेस को लगाना चाहती है किनारे?

साल 2015 में जब नीतीश कुमार महागठबंधन में शामिल हुए तो यह आरजेडी और कांग्रेस के लिए संजीवनी साबित हुआ। आरजेडी 80 सीटों के साथ नंबर वन पार्टी बनी और कांग्रेस के खाते में भी 27 सीटें आईं। 2020 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस+आरजेडी+वाम दलों ने मिलकर गठबंधन में चुनाव लड़े। इस चुनाव में आरजेडी 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी। वहीं महागठबंधन की सरकार नहीं बनने के लिए कांग्रेस को दोषी ठहराया जाता है। क्योंकि चुनाव में कांग्रेस केवल 19 सीटें जीत पाई। सूत्र बताते हैं कि आरजेडी को लगता है कि कांग्रेस को साथ लेकर चलने से उन्हें नुकसान हो रहा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएम नरेंद्र मोदी और उनकी टीम कांग्रेस की नीतियों को लेकर आक्रामक रहे, जिसका नुकसान आरजेडी को भी हुआ। आरजेडी मानती है कि कांग्रेस की वजह से ही 2019 के लोकसभा चुनाव में उसके एक भी सांसद नहीं जीत पाए और एनडीए 39 सीटें जीतने में सफल रही। इसके अलावा 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी महागठबंधन की सरकार नहीं बनने के लिए कांग्रेस को ही जिम्मेवार माना जा रहा है।

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