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बीजापुर के लिए क्यों बेहद अहम है ये पुल, जिसका सुरक्षा बलों को भी इंतजार, पर नक्सलियों के बड़े नेताओं में दिख रहा खौफ

छत्तीसगढ़ के बीजापुर जिले में चिंतावागु नदी पर बन रहे पुल से नक्सली बौखला गए हैं। वहीं, सुरक्षाकर्मियों और ग्रामीणों को इस पुल से काफी उम्मीद है। सुरक्षाकर्मियों की टीम पर पिछले दिनों इसी जगह पर हमला हुआ था।

नवगुजरातसमय.कॉम 24 Jan 2021, 10:54 am

हाइलाइट्स

हाइलाइट्स
  • चिंतावागु नदी पर पुल निर्माण से बौखलाए हैं नक्सली
  • नदी पर पुल बनने से सुरक्षा बलों की एंट्री नक्सलियों के गढ़ में जाएगी
  • तेलंगाना के कई बड़े नक्सली नेता इस इलाके में लिए हुए हैं शरण
  • पुल नहीं होने की वजह ग्रामीणों को तेलंगाना के रास्ते पहुंचना होता है बाजार
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नवभारतटाइम्स.कॉम jpg
सांकेतिक तस्वीर
बीजापुर
छत्तीसगढ़ में चिंतावागु नदी पर पुल सुरक्षा बलों के लिए काफी महत्वपूर्ण है। बीजापुर जिले के पामेड़ और बसागुड़ा के बीच 44 किलोमीटर की दूरी को तय करने के लिए चिंतावागु नदी को पार करना होता है। इस कुलीन और बीहड़ इलाके में 2000 सुरक्षाकर्मी, नक्सलियों को नियंत्रित करते हैं। खास कर खूंखार नक्सली कमांडर हिडमा का घर भी इसी इलाके में है। सुरक्षाबलों ने 3 साल बाद पामेड़ इलाके में पहुंचने में कामयाबी हासिल की थी।

धरमाधरम तक पहुंच बनाने के लिए चिंतावागु नदी पर एक पुल का निर्माण करवाया जा रहा है। इससे नक्सली बौखला गए हैं। क्योंकि नदी के उस पार नक्सलियों के बड़े नेताओं का डेरा है। इस महीने की शुरुआत में सीएम भूपेश बघेल ने पुल निर्माण के लिए यहां नींव रखी थी।

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इस पुल निर्माण से नक्सलियों के बौखलाहट का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं कि कुछ दिन पहले उन लोगों ने सुरक्षा बलों पर हमला कर दिया था। एसडीओपी अभिषेक सिंह ने बताया कि कुछ सप्ताह पहले हम लोग ऑपरेशन पर थे, तब दूसरी तरफ से अंधाधुंध गोलियां चलने लगी। हम उनके करीब जाने की कोशिश कर रहे हैं लेकिन उन्हें यह पसंद नहीं है।

अंग्रेजी अखबार इंडियन एक्सप्रेस से बात करते हुए धरमाधरम के किसान श्रीणु बताते हैं कि यह पुल सुरक्षाबलों के साथ ही 64 गांवों के किसानों के लिए फायदेमंद होगा। पुल नहीं होने की वजह से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए 200 किलोमीटर का चक्कर लगाना होता है। साथ ही तेलंगाना से होकर गुजरना पड़ता है। ऐसे में चिंतावागुनदी पर पुल एक मील का पत्थर साबित होगा।

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पिछले ही साल किसान श्रीणु की शादी हुई है। मार्केट और बड़े बाजारों तक जाने के लिए उसे काफी दूरी तय करनी पड़ती है। मजबूरी में उसने धान को 1050 रुपये प्रति क्विंटल स्थानीय विक्रेताओं को दे दिया जबकि छत्तीसगढ़ में एमएसपी 2500 रुपये प्रति क्विंटल है। गांव तक सुविधाएं नहीं होने की वजह से उसके परिवार के अधिकांश लोग तेलंगाना चले गए हैं और उनके पास 18 एकड़ जमीन छोड़ दिया है।

वहीं, गाना सुन रही प्रिया कहती है कि मैं जब आखिरी बार शहर गई थी, तब अपने फोन में तेलगू गाना डाउनलोड किया था। हम दो युद्धरत ताकतों के बीच फंस गए हैं। ग्रामीणों को सुरक्षा बलों बेतरतीब तरीके से पीटते हैं और हमें हिरासत में लिया जाता है। प्रिया तेलंगाना के चेरला में रहती है। वह कहती है कि अगर हम पर संदेह हुआ तो नक्सली भी ऐसा ही हमारे साथ करते हैं।

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पुलिस से की है शिकायत
वहीं, धरमाधरम पंचायत स्थित 7 गांव के लोगों ने हाल ही में पुलिस क्रूरता के खिलाफ एसपी को चिट्ठी लिखी है। धरमाधरम की कामा गुंडी ने बताया कि जब हम अपने गांव से बाहर निकलते हैं तो पुलिस वाले हमसे रोक कर पूछताछ करते हैं। अगर कोई डर कर जवाब नहीं दे पाता है तो वे हमें नक्सली समर्थक बता कर पीटते हैं। इसे लेकर सैकड़ों लोगों ने बीजापुर में सीनियर अधिकारियों के समक्ष विरोध जताया है।

पामेड़ के एक दुकानदार ने कहा कि सुरक्षा बलों की जरूरत के साथ ही यह पुल पामेड़ के लिए ज्यादा जरूरी है। 2 महीने में इस इलाके में काफी बदलाव हुए हैं। नई सड़कें बनी हैं। साथ ही बिजली भी पहुंची है। 2019 तक इस इलाके में कोई अकेले नहीं निकलता था। सुरक्षा बल के जवान भी ग्रुप में ही निकलते थे। स्ट्रीट लाइट और बिजली की वजह से पामेड़ में अब दुकानें देर तक खुली रहती हैं। यहां एक छोटा सा होटल भी है क्योंकि तेलंगाना के मजदूर निर्माण काम में तेजी की वजह से यहां आते रहते हैं।

28 साल के संदीप ने इस इलाके में हाल ही में एक वाई-फाई डिवाइस की स्थापना की है। यहां लोग आधार का पंजीकरण करवाते हैं और बच्चे ऑनलाइन क्लास में भाग भी लेने आते हैं। उन्होंने इस डिवाइस को 12 हजार रुपये में खरीदा है। संदीप ने कहा कि कारोबार अच्छा चल रहा है और मैं चिंतावागु के दूसरी तरफ के ग्रामीणों की भी मदद करता हूं।


17 साल के गुड्डू ने बताया कि मैं तेलंगाना के बोर्डिंग स्कूल में 11वीं का छात्र हूं। कोविड की वजह से संस्थान बंद हैं तो घर आ गया हूं। 10वीं बोर्ड की परीक्षा में मैं स्कूल टॉपर था। गांव में रहने के दौरान में कनेक्टिविटी के लिए मुझे 30 किलोमीटर दूर चेरला का सफर तय करना होता है और फोन को पेड़ से लटकाना पड़ता है। मैंने जिला प्रशासन से मदद मांगी थी लेकिन कोई मदद नहीं मिली थी।

पानी की व्यवस्था करने के आदेश
10 जनवरी को सीएम भूपेश बघेल ने बीजापुर जिला प्रशासन से इस क्षेत्र में फिल्टर्ड पानी की व्यवस्था करने को कहा है। बीजापुर कलेक्टर रीतेश अग्रवाल ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि 2020 में हमने पानी का परीक्षण किया था, तो मौतें महुआ बनाने में यूरिया के अधिक उपयोग के कारण हुई थीं। ग्रामीण स्थानीय स्तर पर नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं। इसके लिए जागरूकता जरूरी है।

चिंतावागु नदी की दूसरी तरफ 14 ग्राम पंचायत और 64 गांव स्थित है। कलेक्टर ने कहा कि फरवरी तक चिंतावागु नदी पर पुल बनने का काम शुरू हो जाएगा और 15 रुपये के इस परियोजना को मानसून से पहले पूरा कर लिया जाएगा। अगर सारी चीजें सही होती तो स्थिति कई गुना बेहतर होती।

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