अहमदाबाद
गुजरात के गिर में 2015 से 2018 के बीच ट्रेन से कटने से 6 शेर की मौत हो गई, 2 की सड़क दुर्घटना में और 13 की मौत खुले कुएं में गिरने से हुई। कुल मिलाकर गुजरात सरकार के डेटा के अनुसार, अलग-अलग हादसों में 50 शेरों की मौत हो चुकी है। और ये ऐसे हादसे थे जिन्हें टाला जा सकता था। पिछले कुछ हफ्तों में 23 शेरों की मौत गंभीर इंफेक्शन की वजह से हुई है।
सबसे अधिक शेरों की मौत 2016-17 में हुई। इस साल 99 शेर काल के गाल में समा गए। जनगणना 2015 के अनुसार, शेरों की संख्या 523 थी। डेटा के अनुसार, इनमें से 20 फीसदी शेरों की मौत 2015 से 2018 के बीच अलग-अलग हादसों में हुई जिसे टाला जा सकता था। गुजरात सरकार ने 2016-17 के बीच एक शिकार की घटना की बात भी मानी थी।
गिर में अभी भी 17 हजार से अधिक खुले कुएं
2008 में इलाके में सभी खुले कुएं को ऊपर से बंद करने के लिए संरक्षण का एक मास्टरप्लान बनाया गया था ताकि शेरों को दुर्घटनावश उसमें गिरने से रोका जा सके। हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद, गिर में अभी भी 17 हजार से अधिक खुले कुएं हैं। वहीं शेरों की मौत की एक वजह बिजली का झटका भी है। 9 शेरों की मौत बिजली के झटके के कारण हुई।
एक वन अधिकारी ने बताया, हम सरकार से इस बारे में विनती कर चुके हैं कि गिर अभ्यारण्य के आसपास कटीले तार लगाने की अनुमति न दी जाए। लेकिन प्रतिबंध लगाने के बजाय, सरकार ने वन विभाग से कटीले तार की बाड़ लगाने का अधिकार वापस लेकर कृषि विभाग को दे दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि किसान अपनी फसल सुरक्षा के लिए इन तारों में करंट दौड़ाने लगे और यह शेरों की मौत की वजह बना।
दुनियाभर में सिर्फ 4000 टाइगर ही बचे!
दूसरी ओर दुनियाभर में बाघों को लेकर कराए गए अध्ययन में काफी चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। अध्ययन के मुताबिक, बाघों की संख्या लगातार घट रही है और वर्तमान में इनकी केवल छह उप-प्रजातियां ही शेष रह गई हैं। वैज्ञानिकों ने गुरुवार को इसकी पुष्टि की। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि इस अध्ययन के नतीजों से विश्वभर में बचे करीब 4,000 बाघों को बचाने के प्रयास तेज करने में मदद मिलेगी।
छह उपप्रजातियों में बंगाल टाइगर, आमुर बाघ (साइबेरियाई बाघ), दक्षिणी चीन बाघ, सुमात्रा के बाघ, भारतीय-चीनी बाघ और मलाया के बाघ शामिल हैं। बाघ की अन्य तीन उप-प्रजातियां पहले से ही विलुप्त हो चुकी हैं जिनमें कैस्पियन, जावा के बाघ और बाली के बाघ शामिल हैं। बाघों को सबसे ज्यादा खतरा उनके निवास स्थान के खोने और अवैध शिकार से है। इन प्रजातियों को बेहतर ढंग से संरक्षित करने और नियंत्रित पर्यावरण एवं प्राकृतिक वास में प्रजनन को बढ़ावा दिए जाने का मुद्दा वैज्ञानिकों के बीच लंबे वक्त से चर्चा का विषय बना हुआ है।
गुजरात के गिर में 2015 से 2018 के बीच ट्रेन से कटने से 6 शेर की मौत हो गई, 2 की सड़क दुर्घटना में और 13 की मौत खुले कुएं में गिरने से हुई। कुल मिलाकर गुजरात सरकार के डेटा के अनुसार, अलग-अलग हादसों में 50 शेरों की मौत हो चुकी है। और ये ऐसे हादसे थे जिन्हें टाला जा सकता था। पिछले कुछ हफ्तों में 23 शेरों की मौत गंभीर इंफेक्शन की वजह से हुई है।
सबसे अधिक शेरों की मौत 2016-17 में हुई। इस साल 99 शेर काल के गाल में समा गए। जनगणना 2015 के अनुसार, शेरों की संख्या 523 थी। डेटा के अनुसार, इनमें से 20 फीसदी शेरों की मौत 2015 से 2018 के बीच अलग-अलग हादसों में हुई जिसे टाला जा सकता था। गुजरात सरकार ने 2016-17 के बीच एक शिकार की घटना की बात भी मानी थी।
गिर में अभी भी 17 हजार से अधिक खुले कुएं
2008 में इलाके में सभी खुले कुएं को ऊपर से बंद करने के लिए संरक्षण का एक मास्टरप्लान बनाया गया था ताकि शेरों को दुर्घटनावश उसमें गिरने से रोका जा सके। हाई कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद, गिर में अभी भी 17 हजार से अधिक खुले कुएं हैं। वहीं शेरों की मौत की एक वजह बिजली का झटका भी है। 9 शेरों की मौत बिजली के झटके के कारण हुई।
एक वन अधिकारी ने बताया, हम सरकार से इस बारे में विनती कर चुके हैं कि गिर अभ्यारण्य के आसपास कटीले तार लगाने की अनुमति न दी जाए। लेकिन प्रतिबंध लगाने के बजाय, सरकार ने वन विभाग से कटीले तार की बाड़ लगाने का अधिकार वापस लेकर कृषि विभाग को दे दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि किसान अपनी फसल सुरक्षा के लिए इन तारों में करंट दौड़ाने लगे और यह शेरों की मौत की वजह बना।
दुनियाभर में सिर्फ 4000 टाइगर ही बचे!
दूसरी ओर दुनियाभर में बाघों को लेकर कराए गए अध्ययन में काफी चिंताजनक तस्वीर सामने आई है। अध्ययन के मुताबिक, बाघों की संख्या लगातार घट रही है और वर्तमान में इनकी केवल छह उप-प्रजातियां ही शेष रह गई हैं। वैज्ञानिकों ने गुरुवार को इसकी पुष्टि की। ऐसी उम्मीद जताई जा रही है कि इस अध्ययन के नतीजों से विश्वभर में बचे करीब 4,000 बाघों को बचाने के प्रयास तेज करने में मदद मिलेगी।
छह उपप्रजातियों में बंगाल टाइगर, आमुर बाघ (साइबेरियाई बाघ), दक्षिणी चीन बाघ, सुमात्रा के बाघ, भारतीय-चीनी बाघ और मलाया के बाघ शामिल हैं। बाघ की अन्य तीन उप-प्रजातियां पहले से ही विलुप्त हो चुकी हैं जिनमें कैस्पियन, जावा के बाघ और बाली के बाघ शामिल हैं। बाघों को सबसे ज्यादा खतरा उनके निवास स्थान के खोने और अवैध शिकार से है। इन प्रजातियों को बेहतर ढंग से संरक्षित करने और नियंत्रित पर्यावरण एवं प्राकृतिक वास में प्रजनन को बढ़ावा दिए जाने का मुद्दा वैज्ञानिकों के बीच लंबे वक्त से चर्चा का विषय बना हुआ है।